कैसे रूस-यूक्रेन युद्ध से प्रभावित हो रहे गुजरात के हीरा कर्मचारी?
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर दुनियाभर में देखने को मिल रहा है और कई देशों में महंगाई अनियंत्रित होती जा रही है। गुजरात का हीरा उद्योग भी इस युद्ध के असर से अछूता नहीं है और इस उद्योग में काम करने वाले लाखों कर्मचारी युद्ध से प्रभावित हुए हैं। सौराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के हीरा कर्मचारियों पर इस युद्ध का सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है। आइए जानते हैं कि यूक्रेन युद्ध इन हीरा कर्मचारियों को कैसे प्रभावित कर रहा है।
गुजरात में हीरा उद्योग में कितने लोग काम करते हैं?
गुजरात में प्रोसेसिंग और पॉलिशिंग के लिए रूस से बड़े पैमाने पर छोटे हीरे आयात किए जाते हैं। इस उद्योग में लाखों लोग काम करते हैं। द हिंदू अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के ग्रामीण इलाकों में लगभग पांच लाख और शहरी इलाकों में लगभग 12 लाख लोग हीरा काटने और पॉलिश करने का काम करते हैं। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत कर्मचारी गुजरात के हैं, वहीं बाकी कर्मचारी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और केरल के हैं।
किस शहर में होता है सबसे ज्यादा काम?
रिपोर्ट्स के अनुसार, हीरा उद्योग में काम करने वाले लगभग आधे कर्मचारी छोटे हीरों की प्रोसेसिंग और पॉलिशिंग का काम करते हैं। छोटे हीरों का अधिकांश काम ग्रामीण इलाकों में होता है और अकेला सूरत शहर में दुनियाभर के 90 प्रतिशत हीरों को आकार दिया जाता है। यहां हीरा कटिंग और पॉलिश करने वाली लगभग 6,000 फैक्ट्री हैं जिनमें लगभग 10 लाख कर्मचारी काम करते हैं। इसका टर्नओवर 1.6-1.7 लाख करोड़ रुपये रहता है।
गुजरात के कर्मचारियों और रूस के हीरों का क्या संबंध?
द हिंदू के अनुसार, गुजरात का हीरा उद्योग अपना 100 प्रतिशत कच्चा माल रूस, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और कांगो जैसे अफ्रीकी देशों से आयात करता है। इसमें से छोटे हीरों का लगभग 70 प्रतिशत कच्चा माल रूस से आता है। युद्ध से पहले पॉलिशिंग के लिए गुजरात आ रहे 30 प्रतिशत छोटे हीरे रूस की हीरा माइनिंग कंपनी 'अलरोसा' से आ रहे थे। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि छोटे हीरो का उद्योग रूस पर कितना निर्भर है।
यूक्रेन युद्ध का क्या असर पड़ा?
हीरों के लगभग 75 प्रतिशत उत्पादों की खपत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से अमेरिका में होती है, लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका ने रूस की हीरा कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका रूस की कंपनियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है और उन्होने छोटे हीरों की सप्लाई बेहद कम कर दी है। इस कारण गुजरात के हीरा कारोबारियों को अपना कच्चा माल अफ्रीकी देशों से निर्यात करना पड़ रहा है।
ऊंची कीमत पर माल निर्यात करने से कम हो रहा मुनाफा
हीरा कारोबारी अफ्रीकी देशों से ऊंची कीमत पर कच्चा माल निर्यात कर रहे हैं, जिसके कारण उनका मुनाफा कम हो रहा है। परिणामस्वरूप उन्होंने अपने कर्मचारियों के काम करने के घंटे कम कर दिए हैं, जिससे कर्मचारियों की आजीविका प्रभावित हुई है। इस पूरे घटनाक्रम का भावनगर, राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ के कर्मचारियों पर सबसे बुरा असर पड़ा है। छोटी यूनिट्स पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा है। हालांकि घाटे के बावजूद उत्पादक काम जारी रख रहे हैं।
आगे क्या?
अभी ये कहना मुश्किल है कि यूक्रेन युद्ध कब खत्म होगा। कई विशेषज्ञ इसके महीनों और सालों खिंचने का अनुमान लगा चुके हैं। अगर युद्ध खत्म हो जाता है तो भी रूस पर लगी आर्थिक पाबंदियां लंबे समय तक बरकरार रहेंगी। इसलिए यह कहना सुरक्षित होगा कि छोटे हीरों के कच्चे माल की कमी लंबे समय तक रह सकती है। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, गेम्स एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने केंद्र सरकार से दखल देने को कहा है।
क्या समस्या का कोई समाधान है?
हीरा कारोबारियों के पास रूस से कच्चे माल की कमी की पूर्ति करने का एक तरीका है। वे चाहें तो रूस से आने वाली हीरों की जगह लैब में बनाए जाने वाली हीरों का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि दोनों हीरों की पॉलिशिंग तकनीक लगभग समान होती है। हालांकि ये तात्कालिक समाधान नहीं है क्योंकि लैब लगाने में छह-आठ महीने लगते हैं और उत्पादन एक साल बाद शुरू होता है।