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    भारत में कोरोना वायरस के खतरे को कम कर सकती है भौगोलिक और मौसमी भिन्नता- स्टडी

    भारत में कोरोना वायरस के खतरे को कम कर सकती है भौगोलिक और मौसमी भिन्नता- स्टडी
    लेखन भारत शर्मा
    Aug 04, 2020, 05:13 pm 1 मिनट में पढ़ें
    भारत में कोरोना वायरस के खतरे को कम कर सकती है भौगोलिक और मौसमी भिन्नता- स्टडी

    दुनियाभर में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और भारत में भी इसकी रफ्तार बढ़ी हुई है। इसी बीच एक अध्ययन में सामने आया है कि भौगोलिक और मौसमी भिन्नता भारत में कोरोना के संक्रमण के खतरे को कम कर सकती है। इस अध्ययन ने भारत के लिए नई उम्मीद जगा दी है। यह अध्ययन देश के प्रमुख कैंसर अस्पताल टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के चिकित्सा विशेषज्ञों ने किया है। आइए पूरा मामला जानते हैं।

    संक्रमितों की जगह मृतकों की संख्या से किया जाना चाहिए प्रभाव का आंकलन

    TOI के अनुसार टाटा मेमोरियल अस्पताल के निदेशक डॉ राजेंद्र बडवे ने कहा भौगोलिक और मौसमी भिन्नता भारत में संक्रमण का खतरा कम कर सकती है और किसी भी बीमारी के प्रभाव का आंकलन मरीजों की संख्या की जगह मृतकों की संख्या से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका में कोरोना से 1.5 लाख मौत की तुलना में भारत में 38,135 लोगों की मौत हुई है और भारत की मृत्यु दर 2.2 प्रतिशत है जो कि बहुत कम है।

    ICMR की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है दृष्टिकोण

    टाटा मेमोरियल अस्पताल के इस दृष्टिकोण को ICMR की वेबसाइट पर ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा इसे कोरोना वायरस को लेकर इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तीसरे विशेष संस्करण में भी प्रकाशित किया जाएगा।

    टेस्ट की संख्या पर निर्भर है संक्रमितों की बढ़ती संख्या

    डॉ बडवे ने कहा कि कोरोना संक्रमितों की संख्या टेस्टों की संख्या पर निर्भर है। ऐसे में अन्य देशों से तुलना करना ठीक नहीं है। अध्ययन में कहा गया है कि कई जगहों पर अंडर-रिपोर्टिंग की शिकायतों के बावजूद कई देशों में मौतों का आंकड़ा पुख्ता हो सकता है। इसमें चीन, अमेरिका और यूरोप में शिरापरक थ्रोम्बोम्बोलिज्म को मौत का प्रमुख कारण माना गया है। इसमें पैर, कमर या बांह की नसों में रक्त के थक्के जमते हैं।

    गर्म जलवायु वाली जगहों पर कम होती है शिरापरक थ्रोम्बोम्बोलिज्म की समस्या

    अध्ययन में पाया गया कि शिरापरक थ्रोम्बोम्बोलिज्म की समस्या गर्म जलवायु और उच्च अक्षांशों पर कम होती है। भारत भी भूमध्य रेखा के करीब है और यहां की जलवायु गर्म है। ऐसे में यहां ठंडी जलवायु वाले देशों की तुलना में गर्म देशोें में शिरापरक थ्रोम्बोइम्बोलिज्म की परेशानी कम है। शिरापरक थ्रोम्बोइम्बोलिज्म की समस्या में मौसमी और भौगोलिक भिन्नता प्रमुख कारक होती है। इसी तरह कोरोना वायरस ने शरीर में एंटीफॉस्फोलिपिड एंटीबॉडी (aPL) को भी बढ़ाने का काम किया है।

    एंटीफॉस्फोलिपिड एंटीबॉडी से होगा भारत को फायदा

    डॉ बडवे ने कहा कि aPL शरीर में रक्तस्राव बढ़ा देता है। भारत के गर्म जलवायु वाल देश होने के कारण यहां aPL की संभावना अधिक है। इसके उलट ठंडी जलवायु वाले देशों में रक्तस्राव कम होता है। यही कारण है कि वहां रक्त के थक्के अधिक जम रहे हैं। भारत की गर्म जलवायु के कारण यहां लोगों में रक्त के थक्के नहीं जमते है। ऐसे में यहां अन्य प्रभावित देशों की तुलना में मृत्यु दर बहुत कम है।

    अध्ययन से सहमत नहीं है एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ जोशी

    कोरोना के लिए राज्य टास्क फोर्स के सदस्य और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ शशांक जोशी टाटा मेमोरियल अस्पताल के विशेषज्ञों के इस अध्ययन से सहमत नहीं है। उनके अनुसार भारत के कोरोना संक्रमित मरीजों में भी शिरापरक थ्रोम्बोइम्बोलिज्म की शिकायत देखी गई है। वॉकहार्ट हॉस्पिटल भायखला के डॉ केदार तोरस्कर ने कहा कि देश में ICU में भर्ती होने वाले संक्रमितों में से 25-30 प्रतिशत में शिरापरक थ्रोम्बोइम्बोलिज्म की शिकायत मिली है।

    भारत में यह है कोरोना संक्रमण की स्थिति

    भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 52,050 नए मामले सामने आए और 803 मरीजों ने इसकी वजह से दम तोड़ा। ये लगातार छठा ऐसा दिन है जब देश में 50,000 से अधिक नए मामले सामने आए हैं। इसी के साथ देश में कुल मामलों की संख्या 18,55,745 हो गई है, वहीं 38,938 लोगों को इस खतरनाक वायरस के संक्रमण के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है। सक्रिय मामलों की संख्या 5,86,298 हो गई है।

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