#NewsBytesExplainer: क्या है उत्तर प्रदेश का मधुमिता हत्याकांड, जिसमें रिहा हुए पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2003 में मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बाद भूचाल आ गया था। इस हत्याकांड का आरोप तत्कालीन बसपा सरकार के कद्दावर मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर लगा था। मामले में 2007 से उम्रकैद की सजा काट रहे अमरमणि और उनकी पत्नी को अब उत्तर प्रदेश सरकार ने रिहा करने का आदेश जारी किया है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगाने से इनकार कर दिया। आइए मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कौन थीं मधुमिता शुक्ला?
मधुमिता शुक्ला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की रहने वाली कवयित्री थीं। उन्होंने 15-16 साल की उम्र से ही कवि सम्मेलनों में वीर रस की कविताओं का पाठ शुरू कर दिया था। मधुमिता राजनीतिक कविताएं पढ़ती थीं, जिससे उन्हें खूब शोहरत मिली और उनकी चर्चा लखनऊ के सियासी गलियारों में होने लगी। इसके बाद वह लखीमपुर खीरी से निकलकर लखनऊ शिफ्ट हो गईं। वह लखनऊ के निशातगंज स्थित पेपर मिल कॉलोनी में रहा करती थीं।
कैसे अमरमणि के संपर्क में आईं मधुमिता?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमरमणि की मां को मधुमिता की कविताएं बहुत पसंद थीं और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ उनके कवि सम्मेलनों में जाया करती थीं। इसके बाद धीरे-धीरे अमरमणि की बहनों की दोस्ती मधुमिता से हो गई और मधुमिता का उनके घर आना-जाना शुरू हो गया। इस दौरान अमरमणि और मधुमिता भी दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए। शादीशुदा होने के बावजूद अमरमणि के साथ मधुमिता के शारीरिक संबंध बने और वह गर्भवती हो गईं।
मधुमिता की क्यों हुई हत्या?
कवयित्री मधुमिता के गर्भवती होने से अमरमणि की राजनीति पर असर पड़ सकता था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि ने मधुमिता पर गर्भपात का दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने गर्भपात कराने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद अमरमणि ने मधुमिता की हत्या की साजिश रची। इसके बाद 9 मई, 2003 को मधुमिता की लखनऊ स्थित उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड के वक्त मधुमिता 7 माह की गर्भवती थीं।
कैसे पकड़ा गया अमरमणि?
इस हत्याकांड के वक्त मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं और अमरमणि सरकार में मंत्री थे। मधुमिता हत्याकांड की जब जांच शुरू हुई तो सबसे पहले पुलिस का शक अमरमणि पर गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हत्याकांड की जांच मुख्यमंत्री मायावती ने CBCID को सौंपी थी। मधुमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके गर्भवती होने का जिक्र था और DNA जांच में अमरमणि का पर्दाफाश हो गया। इसके बाद मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया गया।
अमरमणि को 7 महीने बाद मिल गई थी जमानत
यह केस CBI को सौंपे जाने के बाद ही अमरमणि को गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, उन्हें केवल 7 महीने बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई। CBI जांच के दौरान मधुमिता के परिवार ने अमरमणि पर गवाहों को धमकाने के आरोप लगाए, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले को देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट को स्थानांतरित कर दिया गया। हत्याकांड की जांच में अमरमणि और उनकी पत्नी के अलावा 2 आरोपियों की भूमिका भी सामने आई।
2007 में देहरादून कोर्ट ने आरोपियों को सुनाई उम्रकैद की सजा
देहरादून फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामला 6 महीने से भी कम चला। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने 79 गवाह पेश किए, जिनमें से 12 ने गवाही दी, जबकि अमरमणि ने 4 चार गवाह पेश किए। देहरादून कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 2007 को अमरमणि, उनकी पत्नी मधुमणि, भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को मधुमिता हत्याकांड का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद से ही सभी आरोपी जेल में अपनी सजा काट रहे थे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने क्यों किया अमरमणि को रिहा?
उत्तर प्रदेश सरकार ने जेल में अच्छे आचरण के कारण अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि की बाकी की सजा रद्द करते हुए उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया है। इस आदेश को आज मधुमिता की बहन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मधुमिता की बहन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल से रिहाई आदेश को रद्द करने की अपील की है।
कैसे रहा अमरमणि का राजनीति सफर?
अमरमणि की गिनती उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेताओं में होती है। वह महाराजगंज की नौतनव विधानसभा सीट से कई बार विधायक रहे हैं। अमरमणि कल्याण सिंह की सरकार में पहली बार मंत्री बने थे, लेकिन एक अपहरण कांड में नाम सामने आने के बाद उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। अमरमणि ने उत्तर प्रदेश में 2002 में मायावती की सरकार बनाने और 2003 में उसे गिराने में भी हम भूमिका निभाई थी।