विकास दुबे ही नहीं, ये पांच पुलिस एनकाउंटर भी रहे हैं काफी विवादित
कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस ने आज सुबह उज्जैन से कानपुर वापस लाते वक्त एनकाउंटर में ढेर कर दिया। घटना में चार पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं। पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे एनकाउंटर विवादों के घेरे में है। भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत से एनकाउंटर हुए हैं जिनको लेकर विवाद हुए हैं। आइए इन्हीं में से कुछ पर नजर डालते हैं।
ऐसे हुआ विकास दुबे का एनकाउंटर
उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार, स्पेशल टास्ट फोर्स (STF) की जिस गाड़ी में वह सवार था, वह कानपुर के बर्रा में अचानक पलट गई। हादसे में विकास और चार पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। इसी बीच विकास ने मौका पाकर STF के एक अधिकारी की पिस्टल छीन ली और भागना शुरू कर दिया। पुलिस ने घेराबंदी कर उसे आत्मसमर्पण के लिए कहा, लेकिन उसने फायरिंग कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में गोली लगने से उसकी मौत हो गई।
साल 2019 में हैदराबाद में गैंगरेप के चार आरोपियों का एनकाउंटर
दिसंबर 2019 में, तेलंगाना पुलिस ने हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक से गैंगरेप और हत्या कर जलाने के मामले में गिरफ्तार किए चार आरोपियों को मार गिराया था। पुलिस ने इसे एनकाउंटर करार देते हुए दलील दी थी कि वह आरोपियों को घटना स्थल की पहचान कराने के लिए हैदराबाद-बेंगलुरु राजमार्ग पर एक अंडरपास पर ले गई थी। उसी दौरान उन्होंने भागने के लिए पुसिल पर पथ्राव कर दिया। आत्मरक्षा में पुलिस को उन पर गोली चलानी पड़ी।
मामले की जांच के लिए गठिन किया गया था आयोग
इस एनकाउंटर पर काफी विवाद हुआ था और मानवाधिकारी आयोग ने भी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया था।
खासा चर्चित रहा था साल 2008 में हुआ बटला हाउस एनकाउंटर
बटला हाउस एनकाउंटर 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली के जामियानगर में हुआ था। इसमें इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा सहित इंडियन मुजाहिदीन के दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गए थे। इस घटना के बाद पुलिस का जमकर विरोध हुआ था। खासतौर पर जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के छात्रों और शिक्षकों ने विरोध किया था। तमाम राजनीतिक दलों ने भी एनकाउंटर की जांच की मांग की थी। बाद में 2009 में मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की सूचना पर हुई थी कार्रवाई
13 सितम्बर, 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल ब्लास्ट के बाद स्पेशल सेल ने पांच आतंकियों के बटला हाउस में छिपे होने की सूचना दी थीं। पुलिस ने घेराबंदी की और आतंकियों से हुई मुठभेड़ में दो को मार गिराया और दो गिरफ्तार किया था।
साल 2005 में गुजरात पुलिस ने किया था सोहराबुद्दीन शेख का एनकाउंटर
सोहराबुद्दीन शेख अंडरवर्ल्ड से जुड़ा अपराधी था, जिसकी 26 नवंबर, 2005 को पुलिस कस्टडी में मौत हुई थी। मौत के दिन वह अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद से महाराष्ट्र जा रहा था। उसी बीच गुजरात पुलिस की ATS शाखा ने बस को रुकवाया और उसे और उसकी बीवी को उतार लिया। तीन दिन बाद सोहराबुद्दीन अहमदाबाद के बाहर एक कथित एनकाउंटर में मारा गया। इसमें उसके भाई ने मीडिया के जरिए काफी दबाव बनाया था।
मामले में कई पुलिसकर्मियों को हुई थी जेल की सजा
मामले में बढ़ते दबाव के कारण CBI को जांच सौंपी गई थी। जिसमें कई पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया था। जिसके कारण कई पुलिस अधिकारियों को जेल की सजा सुनाई गई थी। मामले में वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह की भी गिरफ्तारी हुई थी।
साल 2004 का इशरत जहां एनकाउंटर
मुंबई से ताल्लुक रखने वाली 19 साल की लड़की इशरत जहां को तीन अन्य के साथ मुठभेड़ में मार गिराया गया था। पुलिस के मुताबिक 15 जून, 2004 को इशरत के साथ जीशान जोहार, अमजद अली राणा और प्रनेश पिल्लई एनकाउंटर में मारे गए थे। उन पर लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े होने तथा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश रचने का आरोप था। इस एनकाउंटर को लेकर भी खासा विवाद हुआ था।
जांच में दोषी साबित हुई थी गुजरात पुलिस
इस एनकाउंटर की SIT जांच कराई गई थी, जिसमें खुलासा हुआ था कि इशरत के साथ चारों की हत्या जान बूझकर की गई थी। गुजरात सरकार ने इस रिपोर्ट को हाईकोर्ट में चुनौती दी थीं। जिसके बाद मामले की जांच CBI को सौंपी गई थीं। CBI ने भी इशरत मुठभेड़ को फर्जी बताया था और चार्जशीट में ADGP पीपी पांडे और DIG बंजारा का नाम लिया था। साल 2013 में CBI ने अहमदाबाद कोर्ट में पहली चार्जशीट पेश की थी।
तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर भी रहा था खासा चर्चित
2006 में हुए तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर पर भी खासा विवाद रहा है। तुलसीराम प्रजापति को मुख्य रूप से सोहराबुद्दीन शेख का एसोसिएट बताया जाता था। प्रजापति को भी सोहराबुद्दीन शेख की ही तरह पुलिस कस्टडी में मारा गया था। कहा जाता है कि तुलसीराम ही सोहराबुद्दीन के मारे जाने का अकेला चश्मदीद था और सरकार को तकलीफ न हो और आगे की जांच में कोई परेशानी नहीं आए, ऐसे में उसका एनकाउंटर करा दिया गया।
साल 2011 में शुरू हुई थी मामले की CBI जांच
कड़े विरोध के कारण इस मामले की भी SIT जांच कराई गई थी। जिसमें पूरे सिस्टम में कमियां उजागर हो गई थी। यह मामला सरकार के लिए नासूर साबित हुआ था और पांच साल बाद यानी 2011 में इसकी CBI जांच शुरू कराई गई थी।