COP26 अध्यक्ष ने भारत-चीन पर उठाए सवाल, जानिए क्या है मामला
क्या है खबर?
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में कोयले का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद करने संबंधी बयान की भाषा को कमजोर करने के लिए भारत और चीन पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं।
आयोजन के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने रविवार को कहा कि भारत और चीन को स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने कोयले का प्रयोग बंद करने के प्रयासों को कमजोर क्यों किया।
हालांकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मामले में दोनों देशों का बचाव किया है।
बयान
किस बयान के कारण घेरे में हैं भारत और चीन?
शनिवार को खत्म हुए COP26 में कोयले के उपयोग से संबंधित बयान में पहले कोयले के इस्तेमाल को "धीरे-धीरे खत्म करने" को कहा जाना था, लेकिन भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के दबाव के कारण इसे "धीरे-धीरे कम करना" कर दिया गया।
ये दोनों ही देश अपनी अर्थव्यवस्था को चलाए रखने के लिए कोयले पर अत्यधिक निर्भर हैं और इनके लिए कोयले का उपयोग बिल्कुल कम करना संभव नहीं है।
बयान
भारत और चीन को खुद को स्पष्ट करना होगा- आलोक शर्मा
भारत और चीन के इस रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि चीन और भारत को इस विषय पर खुद को स्पष्ट करना होगा। लंदन में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने ये बात कही।
बयान
जॉनसन ने कहा- भाषा में खास अंतर नहीं, दिशा लगभग वही
यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मामले पर शर्मा से अलग रुख अपनाया है।
उन्होंने कहा, "भाषा चाहे 'धीरे-धीरे कम करना' हो या 'धीरे-धीरे खत्म करना', एक इंग्लिश स्पीकर होने के नाते मुझे नहीं लगता कि इससे कोई खास फर्क पड़ता है। दिशा लगभग समान ही है... कूटनीति ऐसी ही होती है। हम पैरवी कर सकते हैं, मना सकते हैं, प्रोत्साहित कर सकते हैं, लेकिन संप्रभु राष्ट्रों को वो करने पर मजबूर नहीं कर सकते जो वो नहीं चाहते।"
बयान
COP26 ने बजाई कोयला ऊर्जा के लिए मौत की घंटी- जॉनसन
जॉनसन ने कहा कि COP26 ने कोयले से ऊर्जा के उत्पादन को कम करने को कहा है और व्यक्तिगत काउंटीज ऐसा कर रही हैं।
उन्होंने कहा, "अगर आप इस सब को एक साथ जोड़ कर देखते हैं तो ये सवालों से परे है कि ग्लासगो ने कोयला ऊर्जा के लिए मौत की घंटी बजा दी है।"
हालांकि उन्होंने सम्मेलन में किसी ठोस समझौते पर न पहुंचने पर निराशा व्यक्त की।
सम्मेलन
ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन से नहीं निकला कुछ ठोस
बता दें कि जलवायु परिवर्तन पर कुछ ठोस कदम उठाने के लिए स्कॉटलैंड के ग्लासगो में लगभग दो हफ्ते का जलवायु सम्मेलन (COP26) हुआ था।
इसमें देश वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखने का प्रयास करने पर सहमत हुए, हालांकि इस दिशा में कोई ठोस समझौता नहीं हुआ।
40 देश बिजली के उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल न करने के लिए राजी भी हुए, लेकिन इनमें कोई बड़ा देश नहीं था।