आंध्र प्रदेश: सड़क निर्माण के लिए ग्रामीणों ने बेच दिए अपने गहने, जुटाए 10 लाख रुपये
आपने एक कहावत तो सुनी होगी कि 'जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो जनाजे उठा करते हैं'। इसे चरितार्थ किया है आंध्र प्रदेश के चिंतामला गांव के ग्रामीणों ने। तमाम प्रयासों के बाद भी सरकार और प्रशासन ने जब गांव में सड़क का निर्माण नहीं कराया तो ग्रामीणों ने अपने ही दम पर सड़क निर्माण का बीड़ा उठा दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने अपने गहने तक बेचकर 10 लाख रुपये जमा कर लिए।
मानसून में मुख्य शहरों से कट जाता है कोडमा पंचायत क्षेत्र
इंडिया टुडे के अनुसार आंध्र प्रदेश-ओडिशा सीमा पर स्थित आदिवासियों के 150 घरों वाली सलुरु मंडल की कोडमा पंचायत आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। गांव में वाहनों के योग्य कोई भी सड़क नहीं है। ऐसे में मानसून के दौरान यह पंचायत मुख्य शहर सगुमरी से कट जाती है। इससे ग्रामीणों का जीवन कठिन हो जाता है। चिकित्सा आपात स्थिति में हालत सबसे बुरी होती है। समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण लोगों की मौत हो जाती है।
पांच किलोमीटर पैदल चलने के बाद मिलता है वाहन
ग्रामीणों ने बताया कि मानसून में सबसे ज्यादा परेशानी गर्भवती महिलाओं और गंभीर बीमार मरीजों को अस्पताल ले जाने में होती है। गर्भवती और बीमारों को करीब पांच किलोमीटर तक पीठ पर बांधकर पहाड़ी पर जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। उसके बाद एम्बुलेंस के जरिए उन्हें अस्प्ताल पहुंचाया जाता है। इसके कारण कई बार तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही गर्भवती महिलाओं और मरीजों की मौत तक हो जाती है।
अथक प्रयासों के बाद भी गांव में नहीं है मूलभूत सुविधाएं
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने गांव में मूलभूत सुविधाओं के लिए पिछले 73 सालों में कई जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के चक्कर लगाए हैं। पहले तो आदिवासी ग्रामीणों से कोई मिलता ही नहीं है और चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं तो उन्हें बड़े-बड़े सपने दिखा दिए जाते हैं। इसके बाद भी आज तक यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं किया गया। ऐसे में ग्रामीणों ने अब हार मानते हुए 'आत्मनिर्भर' बनने का फैसला किया है।
बैठक में किया प्रत्येक परिवार से 2,000 रुपये एकत्र करने का निर्णय
गांव में सड़क निर्माण के लिए गत दिनों ग्रामीणों की एक बैठक आयोजित हुई थी। इसमें प्रत्येक घर से 2,000 रुपये एकत्र करने का निर्णय किया था। इससे अब तक तक करीब 10 लाख रुपए एकत्र हो चुके हैं। कुछ ग्रामीणों ने तो पैसे नहीं होने के कारण अपने गहने तक बेच दिए। ग्रामीणों ने बताया कि सड़क बनने के बाद उनका गांव सगुमरी गांव से जुड़ जाएगा। वहां से राज्य के अन्य हिस्सों को जाने वाली सड़के निकलती है।
मदद के लिए आगे आई आदिवासी विकास एजेंसी
ग्रामीणों के आत्मनिर्भर प्रयास को देखते हुए अब एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी भी उनकी मदद के लिए आगे आ गई है। इस एजेंसी ने गांव में सड़क, पेयजल और स्वच्छता सुविधाओं के लिए 10 लाख रुपये देने का वादा किया है।