
#NewsBytesExclusive: किसानों को AI से जोड़ने की कोशिश में लगे अमित और अंकित
क्या है खबर?
भारत में सबसे ज्यादा आबादी कृषि से जुड़ी है और यहां फसलों के अलावा फल और सब्जियों का खूब उत्पादन होता है लेकिन निर्यात की बात करें तो भारत मजबूत दावेदारी पेश नहीं करता।
फसलों की गुणवत्ता इसके लिए जिम्मेदार है और किसानों को वैज्ञानिक तरीके आजमाने की जरूरत है।
किसानों के लिए क्वॉलिटी कंट्रोल कितना जरूरी और फायदेमंद है, यह समझने के लिए न्यूजबाइट्स ने InfyU लैब्स के को-फाउंडर्स अमित श्रीवास्तव और अंकित चौहान से बात की।
शुरुआत
किसानों को AI और मशीन लर्निंग से जोड़ने की कोशिश
अंकित ने बताया कि उनके परिवार का बैकग्राउंड खेती से जुड़ा होने के चलते उन्होंने किसानों की परेशानियों को समझा और अमित के साथ मिलकर उनपर काम किया।
IIT में पढ़ाई के बाद दोनों ने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग और मशीन मॉडलिंग को क्वॉलिटी कंट्रोल और किसानों के उत्पादों से जोड़ने की कोशिश की।
शुरुआती रिसर्च और फाइनल प्रोडक्ट तैयार होने के बाद किसानों और ग्राहकों दोनों के लिए ही InfyU लैब्स की टेक्नोलॉजी फायदेमंद साबित हुई।
समस्या
अच्छी पैदावार, लेकिन गुणवत्ता का मानक नहीं
अंकित ने कहा, "किसानों के लिए एक बड़ी समस्या उनकी फसल का दाम तय करने की है क्योंकि बिना गुणवत्ता समझे बिचौलिए मंडी में अपना दाम लगाते हैं।"
उन्होंने कहा, "ग्राहकों को भी पता नहीं होता कि वे जो फल या सब्जी खा रहे हैं, वह ऑर्गेनिक और सुरक्षित है या नहीं।"
अमित ने बताया कि केवल ज्यादा उत्पादन ही महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि फसल की गुणवत्ता उसकी कीमत तय करती है, इसलिए क्वॉलिटी कंट्रोल जरूरी पहलू बन जाता है।
सैंपलिंग
अभी मुश्किल और लंबा है सैंपलिंग का तरीका
अमित ने बताया, "किसानों से फसल (फल और सब्जियां) खरीदने वाले सैंपल टेस्टिंग के लिए कुछ फल और सब्जियां लेकर उन्हें काटते हैं, जिससे उनकी क्वॉलिटी चेक की जाए और उनकी कीमत तय की जा सके।"
उन्होंने कहा, "इस तरह की टेस्टिंग के लिए किसानों को लंबी लाइनों में लगना पड़ता है और दो-तीन दिन तक का वक्त लग जाता है।"
इसके अलावा कई टन फल और सब्जियां सैंपलिंग और इसमें लगने वाले वक्त के दौरान खराब हो जाती हैं।
जानकारी
किसानों को फेंकनी पड़ जाती है पैदावार
अंकित ने बताया कि सैंपल टेस्टिंग के लिए ही 20 से 30 लाख रुपये कीमत के फल काट दिए जाते हैं। वहीं, इंतजार के दौरान फसल खराब होने की वजह से कई बार किसानों को पूरी फसल फेंकनी पड़ जाती है।
समाधान
इन्फाइजर के तौर पर आया आसान सॉल्यूशन
इन्फाइजर डिवाइस मार्केट में उतारने का जिक्र करते हुए अंकित ने कहा, "हमारा डिवाइस इस सैंपल टेस्टिंग के विकल्प के तौर पर आया। यह डिवाइस बिना फल या सब्जियों को काटे या छीले उनकी क्वॉलिटी चेक कर सकता है और एक फल का स्कैन चार सेकेंड लेता है।"
उन्होंने कहा, "इस तरह ना सिर्फ सैंपल टेस्टिंग में लगने वाला वक्त कम हुआ बल्कि इसकी प्रक्रिया भी आसान हो गई। पहले लगने वाली दो-तीन किलोमीटर लंबी लाइन भी छोटी हो गई।"
डिवाइस
इस तरह काम करता है इन्फाइजर डिवाइस
अंकित ने बताया, "हम सिंगल डिवाइस मल्टिपल फ्रूट्स कस्टमर सॉल्यूशन दे रहे हैं, जो अलग-अलग एल्गोरिद्म की मदद से काम करता है।"
डिवाइस हार्डवेयर डिजाइन करने वाले अमित ने बताया, "लंबी रिसर्च करने के बाद हमने अलग-अलग फलों के लिए मॉडल्स तैयार किए और बिना फल को काटे हम इन्फ्रारेड स्कैनिंग के जरिए उनका कंपोजीशन समझ सकते हैं।"
यह डिवाइस स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसे तरीके इस्तेमाल कर ट्रांसपैरेंट इकोसिस्टम का हिस्सा बना है।
उम्मीद
भारत से बढ़ाया जा सकता है निर्यात
अंकित बताते हैं कि AI से जुड़ी नई टेक्नोलॉजी किसी फल को काटे बिना उसके अंदर का हाल बता सकती है।
वह कहते हैं, "फसल बेचने वाले किसान को तय मानकों पर उसकी फसल की गुणवत्ता पता चल जाती है, जिससे वह सही कीमत मांग सकता है।"
उन्होंने कहा, "मार्केट में बेहतर क्वॉलिटी के फल आने से ना सिर्फ ग्राहकों को फायदा होगा बल्कि इन फलों का निर्यात भी बढ़ाया जा सकेगा।"
संभावनाएं
'मेक इन इंडिया' के साथ मिल सकता है बढ़ावा
अमित ने बताया कि डिवाइस और इसके सेंसर्स की कॉस्ट कम करने के लिए 'मेक इन इंडिया' से जुड़ी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
उन्होंने कहा, "हम ग्राहकों को फलों पर हमारे डिवाइस से मिले क्वॉलिटी रिजल्ट्स दिखाने की शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा हम नए फलों और सब्जियों के मॉडल्स अपने सिस्टम में शामिल कर सकते हैं, जिससे सेब, अमरूद और कीवी के अलावा ढेरों अन्य फलों को भी इन्फाइजर की मदद से स्कैन किया जा सके।"