
विद्या बालन बोलीं- मुझे 'बलि का बकरा' बनाया, 'मनहूस' समझकर रातों-रात 8-9 फिल्मों से निकाला
क्या है खबर?
विद्या बालन उन अभिनेत्रियों में शुमार रही हैं, जिन्होंने अपने हटके किरदारों से दर्शकों के बीच अपनी एक खास जगह बनाई है। वह कई लोकपिय फिल्मों का हिस्सा रहीं। बॉलीवुड में कदम रखने से पहले विद्या ने कुछेक साउथ की फिल्में की थीं। हाल ही में उन्होंने खुलासा किया कि साउथ इंडस्ट्री में उन्हें लोगों ने कितना जलील किया। हालत ये थी कि उन्होंने करियर का दूसरा विकल्प खोज लिया था।
खुलासा
ये थी विद्या की पहली फिल्म
एक हालिया इंटरव्यू में विद्या बोलीं, "मेरी पहली फिल्म 'चक्रम' थी, जिसके हीरो माेहनलाल थे। ये फिल्म फिल्म बंद हो गई थी, जिसका ठीकरा मुझ पर फोड़ा गया। कहा गया कि ये मेरी परफॉर्मेंस की वजह से ठप हुई, जबकि ऐसा मोहनलाल और निर्देशक के बीच हुए रचनात्मक मतभेदों की वजह से हुआ था। मैं पहले ही साउथ की 8-9 फिल्में साइन कर चुकी थी, लेकिन रातों-रात सारे प्रस्ताव मेरे हाथ से निकल गए।"
दर्द
मुझे बिना बताए फिल्मों से निकाल दिया
विद्या बोलीं, "चक्रम को 6 दिन की शूटिंग के बाद अचानक बंद कर दिया गया। लोगों ने मुझे मनहूस समझना शुरू कर दिया। जो निर्माता-निर्देशक मेरे साथ काम करने वाले थे, सबने हाथ पीछे खींच लिए और 8-9 फिल्में छूट गईं। मुझे खामखा बलि का बकरा बना दिया गया, जबकि मेरा कोई कसूर ही नहीं था। निर्माता मुझे लेकर कनाफूसी करने लगे। बिना बताए मुझे फिल्मों से बाहर कर दिया, क्योंकि मेरी मौजूदगी को अपशकुन मान लिया गया था।"
अहसास
"मैं खुद को स्टार समझने लगी थी"
विद्या बोलीं, "मेरे पास इतने प्रस्ताव थे कि मैं खुद को स्टार समझ रही थी। एक तमिल निर्माता ने मेरे माता-पिता से कहा था कि मैं कहां से हीरोइन की तरह लगती हूं? इस टिप्पणी ने मुझे तोड़ दिया था। 6 महीने तक मैं अपनी शक्ल शीशे में नहीं देख पाई थी। मुझ पर जादू-टोना हुआ था। एक ज्यातिगत मामले के कारण ऐसा हुआ था, जिसमें किसी को मुझसे दिक्कत थी, लेकिन मैं आज एकदम सही सलामत हूं।"
बदलाव
'परिणीता' ने पलटी विद्या की किस्मत
विद्या ने बताया कि दिल टूटने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। इस मुश्किल वक्त में उनकी बहन ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें अमिताभ बच्चन जैसे सितारों का उदाहरण दिया, जिन्होंने रिजेक्शन के बाद खुद को स्थापित किया। विद्या ने समाज शास्त्र में स्नातक की डिग्री भी ले ली थी ताकि उनके पास करियर के लिए एक और विकल्प रहे। इसके 3 साल बाद वह निर्देशक प्रदीप सरकार से मिलीं, जिन्होंने उन्हें उनकी पहली सफल हिंदी फिल्म 'परिणीता' दी।