'शाकुंतलम' रिव्यू: देव मोहन के सामने फीकी पड़ीं सामंथा, सुंदर होकर भी दमदार नहीं लगती फिल्म
क्या है खबर?
सामंथा रुथ प्रभु और देव मोहन की फिल्म 'शाकुंतलम' लंबे समय से टलते-टलते आखिरकार 14 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।
यह फिल्म कालिदास की रचना 'अभिज्ञान शाकुंतलम' पर आधारित है।
फिल्म में राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी को दिखाया गया है।
निर्देशक गुनाशेखर की यह फिल्म तेलुगु, हिंदी, तमिल मलयालम और कन्नड़ में रिलीज हुई है।
आइए जानते हैं पौराणिक प्रेम कहानी पर आधारित यह फिल्म हिंदी में कैसी है।
कहानी
राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी
विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुंतला एक आश्रम में पली-बढ़ी है।
इसी आश्रम में एक दिन जब राजा दुष्यंत आते हैं, तो दोनों में प्रेम होता है। दोनों बिना किसी को बताए शादी कर लेते हैं और शकुंतला गर्भवती हो जाती है।
राजकाज के लिए दुष्यंत जल्द ही शकुंतला को अपने साथ ले जाने का वादा करके अपने महल लौट जाते हैं।
इसके बाद ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण वह शकुंतला को भूल जाते हैं।
सेट
इन तत्वों से सुंदर लगती है फिल्म
फिल्म देखने के अनुभव को अगर एक शब्द में कहना हो, तो वह है- 'सुंदर'।
फिल्म का भव्य सेट, VFX से बनाए गए पहाड़ और जंगल बेहद सुंदर हैं।
पौराणिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, फिल्म के कॉस्ट्यूम भी इस सुंदरता को बढ़ाते हैं।
चाहे दुष्यंत और शकुंतला का रोमांस हो या फिर युद्ध के दृश्य, फिल्म 3D में एक बेहतरीन सिनेमाई अनुभव देती है।
फिल्म का भव्य सेट आपको 'बाहुबली' और 'मगधीरा' जैसी फिल्मों की याद दिलाएगा।
सामंथा रुथ प्रभु
'शकुंतला' का प्रेम दिखाने में असफल रहीं सामंथा
'सुंदर' होने के बावजूद फिल्म में कोई ऐसा दृश्य नहीं है, जिसे दमदार कहा जा सके।
फिल्म शकुंतला पर केंद्रित है, लेकिन निराश करने वाली बात ये है कि इस किरदार पर सामंथा का व्यक्तित्व नहीं जमता है।
भव्य सेट और कॉस्ट्यूम के कारण 'शकुंतला' सुंदर लगती है, लेकिन सामंथा का अभिनय उसका प्रेम दिखाने में असफल रहा।
सामंथा शकुंतला की तकलीफ दिखाने में सफल रहीं, लेकिन रोमांटिक दृश्यों में कमजोर रह गईं। हिंदी डबिंग ने इसे और कमजोर किया।
देव मोहन
देव मोहन ने किया आकर्षित
देव मोहन ने दुष्यंत के किरदार के साथ न्याय किया है।
जब वह शकुंतला पर मोहित होते हैं, तो दर्शक भी शकुंतला से प्यार कर बैठते हैं। जब वह उससे दूर होते हैं, तो दर्शक भी भावुक हो जाते हैं।
एक दयालु राजा की सौम्यता, एक योद्धा का शौर्य उनके हाव-भाव से सहजता से झलकता है।
वह 'शकुंतला' को भूल जाने के अपराधबोध में दर्शकों को भावुक करते हैं और बच्चे से बातें करते हुए वह कोमल बन जाते हैं।
निर्देशन
यह भूल कर बैठे निर्देशक
निर्देशक यह मानने की भूल कर बैठे कि फिल्म में दिखाई जा रही पौराणिक कथा से दर्शक परिचित होंगे।
फिल्म में एक कहानी से जुड़ी दूसरी कई कहानियां सतही तौर पर बता दी जाती हैं।
इनमें से कुछ कहानियों की जरूरत नहीं थी।
जो दर्शक इन पौराणिक किरदारों से परिचित नहीं हैं, उनके लिए फिल्म पहेली बनकर रह जाएगी।
कहानी इतने टुकड़ों में आगे बढ़ती है कि जो लोग इनसे परिचित हैं, वे भी इसकी कड़ियां जोड़ते रह जाते हैं।
जानकारी
क्या इस हड़बड़ी में थे निर्देशक?
ऐसा लगता है कि निर्देशक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' का हर दृश्य पर्दे पर उतार देने की हड़बड़ाहट में हैं। फिल्म में कई दृश्य गैर-जरूरी हैं और फिल्म लंबी लगने लगती है। ऐसे दृश्यों को हटाकर इस ढाई घंटे की फिल्म को रोचक बनाया जा सकता था।
संगीत
संगीत ने मिटाई भाषा की सीमा
सामंथा के कमजोर अभिनय और उलझे हुए निर्देशन के बावजूद अगर कुछ फिल्म की मूल भावना को पकड़े रहता है, तो वह है इसका संगीत।
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक ही फिल्म में भाषा की सीमा को मिटाता है। फिल्म में रोमांस हो या फिर दुख, गुस्सा हो या रोमांच, म्यूजिक हर भावना से दर्शकों को जोड़ने का काम करता है।
ऐसे में उलझी हुई कहानी के बाद भी दर्शक फिल्म से जुड़े रहते हैं।
निष्कर्ष
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- यह फिल्म एक 3D में बेहतरीन सिनेमाई अनुभव देती है, जिसका आप परिवार के साथ आनंद ले सकते हैं।
क्यों न देखें?- पौराणिक कहानियों में दिलचस्पी नहीं है या फिर टिपिकल रोमांटिक ड्रामा फिल्मों से परहेज है, तो यह फिल्म आपको बोर करेगी।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
फिल्म के आखिर में भरत के किरदार में एक नन्हीं सी बाल कलाकार सबको आकर्षित करती है। यह बच्ची कोई और नहीं सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की बेटी अल्लू अरहा है।