
75 रुपये में बिके फिल्म के टिकट तो उमड़ी भीड़, हमेशा के लिए कम होंगे दाम?
क्या है खबर?
काफी लंबे समय से सिनेमाघर दर्शकों की कमी से जूझ रहे हैं। कोरोना महामारी के बाद सिनेमाघरों का बिजनेस अब भी पटरी पर नहीं लौटा है।
इक्का-दुक्का फिल्मों को छोड़ दें तो कोई भी फिल्म दर्शकों की भीड़ जुटाने में सफल नहीं हुई।
हालांकि, इस शुक्रवार को अचानक दर्शक सिनेमाघरों में टूट पड़े। इसकी वजह थी कि इस दिन टिकट सिर्फ 75 रुपये में मिल रहे थे।
तो क्या टिकट सस्ते होने पर लौट आएगी सिनेमाघरों की रौनक?
सस्ते टिकट
23 सितंबर को 75 रुपये में दिखाई गई थीं फिल्में
23 सितंबर को राष्ट्रीय सिनेमा दिवस के मौके पर फिल्मों के टिकट 75 रुपये में बेचे गए थे। टिकट का दाम सस्ता देखकर लोगों ने 'ब्रह्मास्त्र' के टिकट खूब खरीदे।
जिन्हें 'ब्रह्मास्त्र' के टिकट नहीं मिल सके, वे भी शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म 'धोखा' और 'चुप' देखने पहुंचे।
इससे इंडस्ट्री में चर्चा छिड़ गई है कि अगर दर्शकों को सस्ते टिकट मिलेंगे तो वे कंटेंट से परे, फिल्में देखने पहुंचेंगे।
प्रतिक्रिया
दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर दाम कम करने पर छिड़ी चर्चा
नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सस्ते टिकट होने के कारण सिनेमाघर मालिकों को बढ़िया प्रतिक्रिया मिली है।
वेव सिनेमाज से वाइस प्रेसिडेंट योगेश रायजादा ने कहा कि हॉलीवुड की तर्ज पर भारत में भी सिनेमा दिवस मनाया गया और दर्शकों को सस्ते टिकट दिए गए। दर्शकों की प्रतिक्रिया को देखते हुए इंडस्ट्री में हर हफ्ते या हर महीने यह प्रयोग करने पर चर्चा चल रही है।
टिकट के दाम हमेशा के लिए कम करने पर भी चर्चा है।
डायनामिक मॉडल
डायनामिक मॉडल पर हो सकता है विचार
योगेश ने समझाया कि आमतौर पर अगर 30-40 फीसदी दर्शक आ जाएं तो माना जाता है कि नुकसान नहीं हुआ।
महामारी के बाद कोई भी फिल्म ऐसी नहीं रही जिसमें 60-70 फीसदी दर्शक पहुंचे हों। कई फिल्मों में तो 4-5 प्रतिशत दर्शकों के साथ ही शो चलाए गए। इसलिए टिकट के दाम हमेशा के लिए कम करना संभव नहीं है।
एयरलाइंस के तर्ज पर डिमांड के हिसाब से टिकट के दाम घटाने-बढ़ाने (डायनामिक मॉडल) का प्रयोग हो सकता है।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
बीते दिनों सिनेमाघर के शो 35-40 फीसदी दर्शकों के साथ चल रहे थे। सिनेमा दिवस के दिन सिनेमाघरों को 90 से 100 फीसदी तक दर्शक मिले। इसलिए टिकट सस्ते बिकने पर भी सिनेमाघरों को नुकसान नहीं उठाना पड़ा।
दक्षिण भारतीय फिल्में
दक्षिण भारतीय फिल्मों में क्यों जुट रहे दर्शक?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि भले ही सिनेमा दिवस पर दर्शकों की भीड़ देखने को मिली हो, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होगा। इसलिए, हमेशा के लिए टिकट सस्ते करने की बात बेमानी है।
दक्षिण भारतीय फिल्मों में दर्शकों में भीड़ जुटने पर एक्सपर्ट्स का राय है कि दक्षिण में प्रशंसक अपने स्टार्स को भगवान मानते हैं इसलिए वे फिल्म देखने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं, जबकि हिंदी के दर्शक वीकेंड पर ही फिल्म देखना पसंद करते हैं।
फिल्में
इस साल चंद फिल्में ही जुटा पाईं दर्शक
इस साल कम ही फिल्में ऐसी रहीं जो सिनेमाघरों में दर्शक जुटा सकीं।
जून में रिलीज हुई तमिल फिल्म 'विक्रम' के कुछ शो हाउसफुल रहे। इससे पहले मार्च में आई 'KGF: चैप्टर 2' के लिए सिनेमाघरों में भीड़ जुटी थी।
हिंदी फिल्मों की बात करें तो मई में आई कार्तिक आर्यन की 'भूल भुलैया 2' ने मंद पड़े मल्टीप्लेक्स बिजनेस में जान डालने का काम किया।
बीते दिनों आई 'ब्रह्मस्त्र' भी दर्शकों को खींचने में कामयाब रही।