'शाबाश मिट्ठू' रिव्यू: टिपिकल संघर्ष की कहानी से अलग है यह स्पोर्ट्स बायोपिक
श्रीजित मुखर्जी की फिल्म 'शाबाश मिट्ठू' 15 जुलाई को बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई। फिल्म में तापसी पन्नू मुख्य भूमिका में हैं। उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज की भूमिका निभाई है। फिल्म में उनके साथ विजय राज, ब्रिजेन्द्र काला, मुमताज सरकार जैसे चेहरे नजर आए हैं। बाल कलाकार इनायत वर्मा ने तापसी के बचपन की भूमिका में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। आइए, आपको बताते हैं कैसी है यह फिल्म।
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म की खास बात यह है कि इसकी कहानी कोई संघर्ष की कहानी नहीं है। यह सिर्फ और सिर्फ मिताली और उनके खेल के बारे में है। अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाली खिलाड़ियों के अपने संघर्ष हैं। किसी के घर में गरीबी है तो कोई प्रैक्टिस के लिए घंटों का सफर करके अकैडमी पहुंचती है। मुख्य किरदार मिताली ही हैं जो पढ़ी लिखी हैं, अंग्रेजी में बात करती हैं। अपने जुनून और अपने खेल के जरिए वह आगे बढ़ती हैं।
बाल कलाकारों ने जीता दिल
पहले हाफ को दो बाल कलाकारों ने अपने नाम कर लिया। छोटी मिताली (इनायत) और मिताली की दोस्त नूरी (कस्तूरी जंगम) के अभिनय ने शुरुआत में ही फिल्म में जान ला दी। इन दोनों ने पूरी खूबसूरती के साथ फिल्म को धीमे-धीमे आगे बढ़ाया है। आम स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्मों की तरह फिल्म में बिना किसी भारी-भरकम डायलॉगबाजी के दिल छू जाने वाली बातें शामिल हैं। पहला हाफ रोमांच और थ्रिल की बजाय दोस्ती, रिश्ते और मासूमियत के नाम है।
महिला क्रिकेट टीम पर केंद्रित रहा सेकेंड हाफ
कई बार फिल्म एक ढर्रे पर चलती और कमजोर होती लगती है, लेकिन तभी वहां कुछ भावुक ट्विस्ट आ जाते हैं। खासकर, फिल्म में मिताली का नैशनल के लिए सेलेक्शन और पहला अंतरराष्ट्रीय मैच के समय ऐसे ट्विस्ट जोड़े गए जिसके लिए दर्शक बिल्कुल तैयार नहीं थे। फिल्म का दूसरा हाफ महिला क्रिकेट टीम की पहचान की लड़ाई की ओर मुड़ जाता है। महिला खिलाड़ी, टीम की आंतरिक राजनीति और मूलभूत सुविधाओं के लिए अधिकारियों से जूझती दिखती हैं।
पर्दे पर दिखाई दी तापसी की मेहनत
पर्दे के पीछे की गई तापसी की मेहनत पर्दे पर दिखाई देती है। क्रिकेटर की चाल-ढाल लिए बल्लेबाजी के लिए वह पूरी तैयारी के साथ कैमरे के सामने आई हैं। कोच 'संपत सर' की भूमिका में विजय राज पूरी तरह ढल गए। वहीं छोटे से स्क्रीन स्पेस में ब्रिजेन्द्र काला के अभिनय का जौहर देखने को मिला है। दर्शकों को उन्हें फिल्म में थोड़ा और देखने का मन करता है। खिलाड़ियों के रूप में पूरी स्टारकास्ट ने बेहतरीन प्रदर्शन किया।
फिल्म का संगीत और संवाद कर देंगे पैसा वसूल
संवाद और संगीत फिल्म की जान हैं। फिल्म के डायलॉग प्रिया अविन और विजय मौर्य ने लिखे हैं। क्रिकेट में सबसे जरूरी है दोस्ती और ये मैदान भी जिंदगी की तरह है, यहां कोई दर्द बड़ा नहीं होता, बस खेल बड़ा होता है जैसे संवाद दिल छूने वाले हैं। अमित त्रिवेदी के संगीत और स्वानंद किरकिरे के बोल के साथ फिल्म के गाने भी दमदार हैं। स्वानंद के अलावा फिल्म के गाने रोमी और चरण ने भी लिखे हैं।
कहां रह गई कमी?
'शाबाश मिट्ठू' बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है। सेकेंड हाफ बहुत लंबा और उबाऊ लगने लगता है। आखिर में विश्व कप टूर्नामेंट दिखाया गया है। इसके मैच सीक्वेंस देखकर कोई रोमांच नहीं होता और वे बोझिल लगते हैं। विश्व कप से पहले मिताली टीम को प्रेरित करती हैं, लेकिन उनकी बातें सुनकर आपको 'चक दे इंडिया' में शाहरुख खान की '70 मिनट' वाली स्पीच याद आएगी। दो घंटे 36 मिनट की इस फिल्म को छोटा किया जा सकता था।
न्यूजबाइट्स प्लस
फिल्म में विश्व कप टूर्नामेंट बिना किसी रोमांच के काफी लंबा खींच दिया गया। ऐसे में दर्शक विश्व कप खत्म होने को फिल्म खत्म होना समझ लेते हैं, लेकिन अगर आपने फिल्म आखिरी दृश्य तक नहीं देखी, तो इसके असल क्लाइमैक्स से चूक जाएंगे।
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- अगर तापसी या मिताली के प्रशंसक हैं तो बिना कुछ सोचे फिल्म की टिकट ले सकते हैं। स्पोर्ट्स ड्रामा और प्रेरक फिल्में पसंद हैं तो भी इस फिल्म को समय दे सकते हैं। क्यो नहीं देखें?- बिना मेल स्टार वाली फिल्में नहीं देख सकते हैं तो फिल्म देखने न जाएं। वहीं अगर स्लो फिल्में देखना पसंद नहीं हैं तो यह फिल्म आपको शायद अच्छी नहीं लगेगी। न्यूजबाइट्स स्टार: 3.5