फ्रांस और मुस्लिम देशों के बीच किस बात को लेकर विवाद चल रहा है?
पिछले कुछ दिनों से फ्रांस और मुस्लिम देश आमने-सामने हैं। दरअसल, यह विवाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बयान के बाद शुरू हुआ था। इस बयान के बाद तुर्की और पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देश फ्रांस की आलोचना कर रहे हैं। साथ ही इन देशों में फ्रांसीसी सामानों के बहिष्कार की भी अपील की जा रही है। आइये, जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है और मैक्रों के किस बयान से यह शुरू हुआ?
कार्टून दिखाने के बाद हुई थी शिक्षक की हत्या
दरअसल, फ्रांस में एक 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी ने अपनी कक्षा में छात्रों को पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे। ये कार्टून व्यंग्यात्मक साप्ताहिक पत्रिका शार्ली हेब्दो में छपे कार्टून की कॉपी थे। इसके कुछ दिन बाद ही 16 अक्टूबर को 18 वर्षीय चेचन शरणार्थी ने पैटी की गला काटकर हत्या कर दी थी। मैक्रों ने इसे 'इस्लामिक आतंकवादी' हमला कहा और उनकी सरकार ने 'इस्लामिक आतंकवाद' के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी।
कई कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ हुई कार्रवाई
मैक्रों ने अपने बयान में इस्लामिक कट्टरपंथी संगठनों पर कार्रवाई की भी बात कही थी। तब से लेकर अब तक कई संगठनों को निशाना बनाया है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है।
कार्टून को लेकर मैक्रों के बयान के बाद बढ़ा गुस्सा
इसके बाद मैक्रों ने कहा था कि वो पैगबंर मोहम्मद के कार्टून को लेकर पीछे हटने वाले नहीं है। उनके इस बयान के बाद उनके खिलाफ इस्लाम को लेकर दिए गए एक और बयान के बाद व्याप्त गुस्सा और बढ़ गया। दरअसल, पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बयान और उनके चित्र को दिखाना मुसलमानों के लिए धार्मिक रूप से संवेदनशील मामला है। इसकी वजह यह है कि इस्लामी परंपरा में मोहम्मद और अल्लाह की तस्वीरों को दिखाने की मनाही है।
पहला बयान क्या था?
पैटी की हत्या से कुछ दिन पहले भी मैक्रों ने इस्लाम को लेकर एक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, "इस्लाम एक ऐसा धर्म है, जो आज पूरी दुनिया में संकट में है।" इसके अलावा मैक्रों एक कानून सख्त करने की भी बात कह रहे हैं, जो राज्य को चर्च से अलग यानी धर्म को सरकार से अलग करने के लिए लाया गया था। उनका कहना है कि 'इस्लामी अलगाववाद' और 'धर्मनिरपेक्ष मूल्यों' के बचाव के लिए यह जरूरी है।
कानून पारित होने के बाद क्या बदलाव आएगा?
बीते 2 अक्टूबर को अपने भाषण में मैक्रों ने 1905 में लाए गए इस कानून को मजबूत करने की बात कही। अगर यह कानून पारित हो जाता है तो फ्रांस में छोटे बच्चों को घरों में इस्लामी शिक्षा नहीं दी जा सकेगी और विदेशी के इमाम देश की मस्जिदों में इमामत नहीं कर पाएंगे। बीबीसी के मुताबिक, मैक्रों का कहना है कि कानून का उद्देश्य फ्रांस में ऐसे इस्लाम को बढ़ावा देना है जो आत्मज्ञान के अनुकूल हो।
पश्चिम यूरोप की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी फ्रांस में
फ्रांस में पश्चिमी यूरोप की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी रहती है जो देश की कुल आबादी का 9-10 प्रतिशत है। ये लोग ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मोरक्को और माली से आकर फ्रांस में बसे हैं।
अर्दोआन ने मैक्रों से कही दिमाग का इलाज कराने की बात
मैक्रों के बयानों और फ्रांस के इस्लामी कट्टरपंथ को लेकर कड़े रूख के कारण विवाद गहराता जा रहा है। इसे लेकर कई मुस्लिम देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन ने तो यहां तक कह दिया था कि मैक्रों को अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए। अर्दोआन ने कहा कि अगर फ्रांस में मुसलमानों का दमन होता है तो दुनिया के नेताओं को मुसलमानों की सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए।
जोर पकड़ रहा है फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का आंदोलन
सोमवार को टीवी पर प्रसारित संदेश में अर्दोआन ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध से पहले जैसा अभियान यहूदियों के खिलाफ चलाया गया था, वैसा ही अभियान इन दिनों फ्रांस में मुसलमानों के खिलाफ चलाया जा रहा है। अपने भाषण में उन्होंने लोगों से फ्रांसीसी सामानों का बहिष्कार करने का भी आह्वान किया। इसके बाद कतर, बांग्लादेश, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत जैसे देशों फ्रांस मं बने सामानों का बहिष्कार करने का अभियान जोर पकड़ चुका है।
ईरान और पाकिस्तान ने मैक्रों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया
सोमवार को ही पाकिस्तान और ईरान की संसद ने मैक्रों के बयान के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। ईरान का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान फ्रांस के रवैये पर सवाल उठाता है। मुस्लिम देश इस अपमान के खिलाफ खड़े होंगे। वहीं पाकिस्तानी संसद ने फ्रांस से अपना राजदूत वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन बाद में पता चला कि फ्रांस में पाकिस्तानी राजदूत है ही नहीं।