
सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले हादी मतार को हुई 25 साल की सजा
क्या है खबर?
प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर 2022 में किए गए हमले के दोषी हादी मतार को 25 साल जेल की सजा सुनाई गई है।
समाचार एजेंसी AP के मुताबिक, चौटाउक्वा काउंटी कोर्ट ने रुश्दी पर हमला करने के लिए मतार को 25 साल और एक अन्य को घायल करने के लिए 7 साल की सजा सुनाई है। दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
अमेरिका की एक अदालत ने फरवरी में मतार को हत्या के प्रयास और हमले के आरोप में दोषी ठहराया था।
सुनवाई
सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ था?
सुनवाई के दौरान चॉटोक्वा काउंटी के जिला अटॉर्नी जेसन श्मिट ने रुश्दी पर हुए हमले का वीडियो चलाया। उन्होंने कहा कि चाकू मारने का कृत्य जानबूझकर और हमले के इरादे से किया गया था।
वहीं, बचाव पक्ष ने कहा, "मतार पर रुश्दी की प्रसिद्धि के कारण अधिक आरोप लगाए गए। मतार ने बंदूक या बम के बजाय चाकू का इस्तेमाल किया था और रुश्दी के महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान नहीं पहुंचाया था।
हमला
रुश्दी पर न्यूयॉर्क में हुआ था हमला
अगस्त, 2022 में न्यूयॉर्क में एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान रुश्दी पर हमला किया गया था।
जैसे ही वह अपना संबोधन शुरू करने के लिए आगे बढ़े, दर्शकों के बीच काला मास्क पहनकर बैठा हमलावर छलांग लगाकर स्टेज पर आ गया। हमलावर ने महज 20 सेकंड के अंदर 10-15 वार किए।
हमले में रुश्दी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उन्हें हैलीकॉप्टर से अस्पताल ले जाया गया। हमले में रुश्दी को एक आंख गंवानी पड़ी थी।
परिचय
कौन हैं सलमान रुश्दी?
रुश्दी का जन्म 19 जून, 1947 को मुंबई में एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार में हुआ था। हालांकि, कुछ सालों बाद ही उनका परिवार ब्रिटेन चला गया।
उन्होंने रग्बी स्कूल और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और लंदन में ही नौकरी करने लगे।
1975 में रुश्दी ने 'ग्राइमस' नाम से पहली किताब प्रकाशित की।
उन्हें उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के लिए 1981 में बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वे 30 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं।
विवाद
'द सैटनिक वर्सेज' किताब पर हुआ था खूब बवाल
1988 में रुश्दी की 'द सैटनिक वर्सेज' नामक किताब प्रकाशित हुई थी। इस किताब पर ईशनिंदा के आरोप लगे और दुनियाभर का मुस्लिम समुदाय आक्रोशित हो गया।
विवाद इतना बढ़ा कि किताब छापने वालों और अनुवादकों तक की हत्या कर दी गई। रुश्दी पर जानलेवा हमले हुए। इस पूरे विवाद के दौरान दुनियाभर में करीब 60 लोग मारे गए।
तत्कालीन भारत सरकार ने भी किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था।