सलमान रुश्दी ने हमले में गंवाई एक आंख, नसें कटने से हाथ भी प्रभावित- रिपोर्ट
अगस्त में जानलेवा हमले में घायल हुए मशहूर लेखक सलमान रुश्दी को अपनी एक आंख गंवानी पड़ी है। उनके एजेंट ने स्वास्थ्य की जानकारी देते हुए बताया कि रुश्दी की गर्दन पर तीन घाव आए हैं। नसें कटने के कारण उनका एक हाथ काम नहीं कर रहा है। इसके अलावा उनकी शरीर के ऊपरी हिस्से में 15 अन्य घाव हैं। बता दें इस हमले में रुश्दी बुरी तरह घायल हो गए थे और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
न्यूयॉर्क में हुआ था हमला
लोकप्रिय और विवादास्पद लेखक सलमान रुश्दी पर अगस्त में न्यूयॉर्क में एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान जानलेवा हमला किया गया था। जैसे ही वह अपना संबोधन शुरू करने के लिए आगे बढ़े, दर्शकों के बीच काला मास्क पहनकर बैठा हमलावर छलांग लगाकर स्टेज पर आ गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावर ने महज 20 सेकंड के अंदर 10-15 वार किए। हमलावर की पहचान न्यू जर्सी के फेयरव्यू इलाके के रहने वाले 24 वर्षीय हादी मतर के तौर पर हुई है।
रुश्दी की मौजूदा लोकेशन की जानकारी नहीं
रुश्दी के एजेंट एंड्रयू वेलिस ने उनके मौजूदा ठिकाने की जानकारी नहीं दी। उन्होंने न तो यह बताया कि लेखक अस्पताल में हैं या वो किसी अन्य जगह स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। वेलिस ने कहा कि वो जिंदा हैं और यही सबसे जरूरी है।
भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक हैं रुश्दी
रुश्दी भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक हैं। उन्होंने कई प्रमुख मुद्दों पर 15 उपन्यास लिखे हैं। उन्हें स्वतंत्रता के बाद भारत पर उनकी पुस्तक 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के लिए 1981 में 'बुकर पुरस्कार' मिला था। वह 'द सैटनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद कई वर्षों तक लोगों की नजरों से दूर रहे। इस किताब को लेकर खूब विवाद हुआ था और भारत में भी इस किताब पर प्रतिबंध लगाया गया था।
ईरान ने रुश्दी के खिलाफ जारी किया था फतवा
1988 में रुश्दी की 'द सैटनिक वर्सेज' नामक किताब प्रकाशित हुई थी। इससे मुस्लिम समुदाय आक्रोशित हो गया। किताब में लिखी बातों को ईशनिंदा करार दिया गया और कई देशों में रुश्दी के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। इन प्रदर्शनों में 59 लोगों की मौत हुई थी। विरोध के चलते रुश्दी नौ सालों तक छिपे रहे थे। किताब से भड़के ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया। इससे कूटनीतिक संकट बढ़ गया।
खुमैनी ने किया था ईनाम का ऐलान
सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा जारी करते हुए खुमैनी ने दुनियाभर के मुस्लिमों से किताब के लेखक और प्रकाशक को मारने की अपील की थी। उनका कहना था कि इसके बाद किसी की भी इस्लाम के पवित्र मूल्यों का अपमान करने की हिम्मत नहीं होगी। रुश्दी पर ईनाम की घोषणा करते हुए खुमैनी ने कहा था कि उन्हें मारने के बाद जिसे मौत की सजा होगी, वह 'शहीद' समझा जाएगा और सीधा जन्नत में जाएगा।
किताब पर पाबंदी लगाने वाला पहला देश था भारत
द सैटनिक वर्सेज सितंबर, 1988 में प्रकाशित हुई थी। प्रकाशन के एक महीने बाद ही भारत में इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उस वक्त राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे। देश में किताब के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हुए थे। भारत इस पर पाबंदी लगाने वाला पहला देश था। इसके बाद पाकिस्तान और फिर दूसरे मुस्लिम देशों ने इस पर पाबंदी लगाना शुरू कर दिया। दक्षिण अफ्रीका में भी इस किताब पर पाबंदी लगी थी।