
सैन्य टकराव के मुहाने पर अमेरिका और ईरान, जानें दोनों देशों में दुश्मनी का पूरा इतिहास
क्या है खबर?
अमेरिका के हवाई हमले में ईरान के बड़े सैन्य अधिकारी कासिम सुलेमानी की मौत के बाद दोनों देश एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं और सैन्य टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।
ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामनेई ने अमेरिका से बदला लेने की बात कही है।
अमेरिका और ईरान में दुश्मनी नई नहीं है और इसका एक लंबा इतिहास है।
आइए आपको इसी इतिहास और दोनों देशों के संबधों की पूरी कहानी बताते हैं।
शुरूआत
1953 में ईरान के प्रधानमंत्री के तख्तापलट से शुरू होती है कहानी
अमेरिका और ईरान के जटिल रिश्तों की शुरूआत 1953 से होती है जब अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA ने लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए ईरान के प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेक का तख्तापलट करवा दिया।
इसके बाद मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने अमेरिका की मदद से ईरान की सत्ता संभाली।
बदले में शाह तेल की कमाई से ईरान को होने वाली कमाई का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका को देने लगा। अमेरिका को अन्य आर्थिक फायदे भी दिए गए।
इस्लामिक क्रांति
इस्लामिक क्रांति के साथ हुआ शाह के राज का अंत
इसके अलावा शाह के राज में ईरान में पश्चिमी सभ्यता भी खूब फलने-फूलने लगी और आम लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए गए।
इन सभी कारणों से जनता में पैदा हुए असंतोष का फायदा उठाते हुए 1979 में आयतुल्लाह रुहोल्लाह खामनेई के नेतृत्व में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई जिसमें शाह की सरकार को उखाड़ फेंका गया।
इसके बाद अमेरिका और ईरान की दुश्मनी की असल कहानी शुरू होती है।
तेहरान बंधक संकट
तेहरान में अमेरिकी दूतावास में भीड़ ने बनाया अमेरिकी लोगों को बंधक
इस्लामिक क्रांति के दौरान 1979 में ईरान की राजधानी तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर भीड़ ने हमला कर दिया और 66 अमेरिकी लोगों को बंधक बना लिया गया।
ये संकट बेहद लंबे समय तक लगा और 52 अमेरिकी लोगों को 444 दिन बंदी बनाए जाने के बाद 20 जनवरी, 1981 को छोड़ा गया।
इस घटना ने अमेरिका और ईरान के संबंधों को इतना खराब कर दिया कि उसके बाद वो कभी ठीक नहीं हुए।
जानकारी
ईरान-इराक युद्ध में अमेरिका ने दिया इराक का साथ
इस्लामिक क्रांति के बाद 1980 में इराक ने भी ईरान पर हमला कर दिया और दोनों देशों के बीच आठ साल यानि 1988 तक युद्ध चला। माना जाता है कि इस दौरान अमेरिका ने ईरान के खिलाफ इराक की मदद की थी।
आर्थिक प्रतिबंध
आर्थिक प्रतिबंधों ने तोड़ी ईरान की कमर
अमेरिका के साथ दुश्मनी का ईरान को भी वही खामियाजा भुगतना पड़ा जो अक्सर अन्य देशों को भुगतना होता है।
अमेरिका ने उसे व्यापारिक जगत में अलग-थलग कर दिया और उसकी अर्थव्यवस्था गड्ढे में जाने लगी।
इसके बाद 2002 में खबर आई कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है।
इस खबर के बाद अमेरिका के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इन प्रतिबंधों से ईरान की कमर टूट गई।
ईरान परमाणु संधि
जुलाई 2015 में परमाणु संधि के साथ हुआ आर्थिक प्रतिबंधों का अंत
इस बीच 2010 के दशक में मध्य-पूर्व में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) के उभार और यूरोप और अमेरिका तक उसकी पहुंच के कारण अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य बदला।
अमेरिका ने पांच अन्य देशों, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस और चीन, के साथ मिलकर ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बात करना शुरू किया, ताकि IS के खिलाफ लड़ाई में उसका सहयोग हासिल किया जा सके।
इन छह देशों और ईरान के बीच जुलाई 2015 में परमाणु संधि पर हस्ताक्षर हुए।
शर्तें
ये थी परमाणु संधि की शर्तें
इस परमाणु संधि के तहत ईरान को अपने यूरेनियम के भंडार को कम करना था।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को अगले 10 से 25 साल तक ईरान के परमाणु संयंत्रों की जांच करने की स्वतंत्रता भी दी गई ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान संधि के नियमों का पालन करता है।
बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने पर राजी हुए थे।
परमाणु संधि
ट्रम्प ने तोड़ी परमाणु संधि
इस परमाणु संधि के बाद अमेरिका और ईरान के संबंधों में एक नए दौर की शुरूआत होने की उम्मीद जगी। लेकिन जल्द ही ये उम्मीद टूट गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मई 2018 में अमेरिका के इस संधि से अलग होने की घोषणा की।
संधि तोड़ने के पीछे की वजह बताते हुए ट्रम्प ने कहा था कि ईरान अभी भी उसे मिल रही परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए कर रहा है।
जानकारी
परमाणु संधि खत्म होने के बाद लगातार खराब हुए दोनों देशों के संबंध
इसके बाद से दोनों देशों के संबंध लगातार खराब होते चले गए। जून 2019 में ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) द्वारा अपनी सीमा के पास अमेरिका के निगरानी ड्रोन को मार गिराने के बाद तो सैन्य टकराव की नौबत आ गई थी।
क्षेत्रीय राजनीति
मध्य-पूर्व की क्षेत्रीय राजनीति भी खटास का कारण
अमेरिका और ईरान के संबंधों की खटास में मध्य-पूर्व की क्षेत्रीय राजनीति भी एक अहम कारण है।
दरअसल, शिया बहुल ईरान और सुन्नी बहुल सउदी अरब में मध्य-पूर्व के क्षेत्र में प्रभुत्व जमाने की लड़ाई चलती रहती है। ये मुस्लिमों में शिया बनाम सु्न्नी लड़ाई का ही एक हिस्सा है।
सउदी अरब अमेरिका का अहम सहयोगी है और अमेरिका उसके जरिए पूरे मध्य-पूर्व को नियंत्रित करना चाहता है।
यही समीकरण अमेरिका और ईरान के संबंधों को और जटिल बनाता है।
जानकारी
सउदी अरब की तेल रिफाइनरियों पर हमले के लिए अमेरिका ने ठहराया ईरान को जिम्मेदार
सितंबर 2019 में यमन के हूती विद्रोहियों ने जब सउदी अरब की दो तेल रिफाइनरियों पर ड्रोन से हमला किया था, तब भी अमेरिका ने इस हमले के पीछे ईरान का हाथ होने और उसके हूती विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप लगाया था।
मौजूदा स्थिति
सुलेमानी की मौत से फिर सैन्य टकराव की स्थिति में पहुंचे दोनों देश
बीते एक-डेढ़ साल में पैदा हुए इस तनाव के बीच अब अमेरिकी हमले में सुलेमानी के मारे जाने की घटना ने अमेरिका और ईरान को सैन्य टकराव की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।
माना जा रहा है कि अमेरिका ने ये हमला पिछले हफ्ते बगदाद में उसके दूतावास पर भीड़ के हमले के जवाब में किया है।
अमेरिका ने आरोप लगाया था कि ये हमला ईरान के इशारे पर हुआ है।