कोरोना वैक्सीन से लोगों में बढ़ा मस्तिष्क और हृदय संबंधी रोगों का खतरा- रिपोर्ट
ग्लोबल वैक्सीन डेटा नेटवर्क (GVDN) ने कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर बड़ा खुलासा किया है। GVDN ने कोरोना वायरस की वैक्सीन लेने के बाद 13 विभिन्न चिकित्सीय दशाओं में हुए बदलावों की निगरानी के बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका जैसी कंपनियों की वैक्सीन लगवाने के बाद कई लोगों में मस्तिष्क, रक्त और हृदय संबंधी मामले बढ़े हैं। ये रिपोर्ट 9.90 करोड़ लोगों पर शोध के बाद प्रकाशित की गई है।
8 देशों के 9.90 करोड़ लोगों पर किया गया अध्ययन
इस अध्ययन में 8 देशों को शामिल किया गया था, जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड और स्कॉटलैंड शामिल हैं। इन देशों में वैक्सीन लगवाने वाले 9.90 करोड़ लोगों पर अध्ययन किया गया। रिपोर्ट में सामने आया है कि mRNA वैक्सीन लगवाने वालों में मस्तिष्क, रक्त और हृदय संबंधी मामलों में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई। दूसरी तकनीक से बनी वैक्सीन लगवाने वालों में ये संख्या कम थी।
अध्ययन में क्या सामने आया?
रिपोर्ट में सामने आया है कि फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना की mRNA वैक्सीन की पहली, दूसरी और तीसरी खुराक के बाद मायोकार्डिटिस (हृदय की मांसपेशियों में सूजन) का खतरा बढ़ा है। मॉडर्ना वैक्सीन की दूसरी खुराक के बाद ऐसे मामलों की उच्चतम दर देखी गई। एस्ट्राजेनेका की 3 खुराक लेने वालों में यह खतरा 6.9 गुना बढ़ गया, जबकि मॉडर्ना की पहली और चौथी खुराक के बाद इस तरह के जोखिम में क्रमशः 1.7 गुना और 2.6 गुना वृद्धि हुई।
अध्ययन में और क्या सामने आया?
रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका की खुराक लेने वालों में मस्तिष्क में खून के थक्के बनने का खतरा 3.2 गुना था और गुइलेन-बैरी सिंड्रोम (एक तरह का न्यूरोलॉजिकल संबंधी रोग) का खतरा भी अधिक पाया गया। अध्ययन के अनुसार, मॉडर्ना वैक्सीन लेने के बाद न्यूरोलॉजिकल संबंधी रोग (एक्यूट डिसेमिनेटेड एन्सेफेलोमाइलाइटिस) के विकसित होने का खतरा 3.8 गुना अधिक था, जबकि एस्ट्राजेनेका की खुराक के बाद यह 2.2 गुना अधिक था।
विशेषज्ञों का इस पर क्या कहना है?
हालांकि, विशेषज्ञों ने वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा और लाभ पर जोर दिया है। बायोटेक्नोलॉजी कंपनी सेंटिवैक्स के कार्यकारी निदेशक जैकब ग्लेनविले ने फोर्ब्स को बताया कि वैक्सीन के दुष्प्रभाव से जुड़ी घटनाएं कोरोना के कारण उत्पन्न हुई स्थिति से काफी कम हैं। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के एक नए अध्ययन में सामने आया है कि कोरोना से बचने वाले भारतीयों में यूरोपीय और चीनियों की तुलना में फेफड़ों और श्वसन संबंधी मामले बढ़े हैं।