अमेरिकी डाटाबेस के जरिए अफगान नागरिकों को निशाना बनाने में जुटा तालिबान, पाकिस्तान कर रहा मदद
तालिबान ने अमेरिका और उसके सहयोगियों की मदद करने वाले लोगों की तलाश के लिए अपनी अल ईशा यूनिट को काम पर लगाया है। यह यूनिट अमेरिकी उपकरणों और आंकड़ों की मदद से उन लोगों का पता लगा रही है। इसके ब्रिगेड कमांडर नवाजुद्दीन हक्कानी ने एक इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका, अफगान सुरक्षा एजेंसियों और भारतीय की खुफिया एजेंसी RAW की कठपुतलियों को छोड़ा नहीं जाएगा। उन पर लगातार नजर रखी जा रही है।
अमेरिकी डाटाबेस की मदद से हो रहा काम
एक इंटरव्यू में हक्कानी ने कहा कि अल ईशा यूनिट अमेरिका में बने हैंड-स्कैनर और इसके डाटाबेस की मदद से उन लोगों का पता लगा रही है, जिन्होंने अमेरिका और उसके सहयोगियों की मदद की या भारतीय खुफिया एजेंसी के साथ काम किया था।
डाटाबेस में 12 सालों का डाटा स्टोर
अमेरिका द्वारा इस्तेमाल किया गया बायोमेट्रिक डाटा तालिबान के हाथ लगना इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि इसमें उन सभी लोगों की पूरी जानकारी स्टोर है, जिन्होंने पिछली सरकार या अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के लिए काम किया था। इस डाटाबेस में उन ड्राइवरों, नर्सों, ट्रांसलेटरों और दूसरे लोगों का डाटा है, जो पिछले 12 सालों के दौरान किसी न किसी समय अमेरिकी सेना की मदद कर चुके हैं। तालिबान इसी आधार पर उन्हें निशाना बना सकता है।
अमेरिकी सेना के पास थे 7,000 हैंड स्कैनर
रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के पास 7,000 हैंड स्कैनर थे और अभी तक अमेरिका ने यह नहीं बताया है कि उसने कितने स्कैनर यहीं छोड़ दिए हैं। गौरतलब है कि अमेरिका अरबों के उपकरण अफगानिस्तान में छोड़कर जा रहा है। अमेरिका ने 2009 में तीन लाख अफगान नागरिकों डाटा जुटाया था। इनमें कैदियों और सैनिकों का डाटा शामिल था। अगले साल यानी 2010 में उसने बायोमेट्रिक सेंटर खोला था।
आतंकियों की पहचान के लिए बनाया गया था डाटाबेस
बायोमेट्रिक डाटाबेस की शुरुआत तालिबानी घुसपैठियों और बम धमाकों को अंजाम देने वाले आतंकियों की पहचान के लिए की गई थी। बाद में अमेरिका सेना के साथ काम करने वाले लोगों का डाटा भी जुटाया गया था।
अल ईशा को सौंपा गया काउंटर इंटेलीजेंस का काम- हक्कानी
हक्कानी ने इंटरव्यू में कहा कि काबुल पर कब्जे के बाद अब उनका ध्यान काउंटर इंटेलीजेंस पर हैं। अधिकतर ब्रिगेड अलग-अलग मदरसों में आराम कर रही हैं, लेकिन अल ईशा यह डाटा प्रोजेक्ट संभाल रही है। हक्कानी ने दावा किया कि अल ईशा यूनिट उन लोगों पर केवल नजर रख रही है, जिन्होंने अमेरिका और पूर्व सरकार की खुफिया एजेंसियों के लिए काम किया था। इसकी मदद से लोगों को निशाना बनाने की खबरें गलत हैं।
पाकिस्तान की भूमिका पर क्या बोला हक्कानी?
जब नवाजुद्दीन हक्कानी से इस प्रोजेक्ट में पाकिस्तान की भूमिका पूछी गई तो उसने कहा कि अगर भारत से संबंधित कोई खुफिया जानकारी मिलती है तो पाकिस्तान इसे इस्तेमाल कर सकता है। वहीं अफगान की सेना के एक कमांडर ने कहा कि यह बायोमेट्रिक उपकरणों को चलाना और डाटाबेस की जांच अकेले तालिबान के बस का काम नहीं है। हर सर्च पार्टी पाकिस्तानी अधिकारी या हक्कानी नेटवर्क के सदस्य की देखरेख में काम कर रही है।
अल ईशा यूनिट में करीब 1,000 लड़ाके
अल ईशा यूनिट में करीब 1,000 लड़ाके शामिल हैं और यह अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में फैली हुई है। यह खलील हक्कानी ब्रिगेड के तहत काम करती है। खलील हक्कानी के सिर पर लाखों रुपये का ईनाम घोषित है और फिलहाल वह तालिबान की बद्री 313 यूनिट का नेतृत्व कर रहा है। वह तालिबान सरकार में मंत्री रह चुके जलालुद्दीन हक्कानी का भाई है और उसने ही नवाजुद्दीन को काउंटर इंटेलीजेंस का काम सौंपा है।