जूते के डब्बे में मिला दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस्तेमाल होने वाला कबूतर का पैराशूट
पुराने समय में लोग बात-चीत करने के लिए पत्र लिखा करते थे, जिन्हें कबूतरों की मदद से एक-दूसरे तक पहुंचाते थे। बॉलीवुड समेत कई विदेशी फिल्मों में भी कबूतरों को खत ले जाते हुए दिखाया गया है। इन कबूतरों को छोटे पैराशूट पहनाए जाते थे, जिनमें पत्रों को बांध दिया जाता था। हाल ही में ऐसा ही एक कबूतर का पैराशूट इंग्लैंड की एक महिला के घर पर पाया गया था। आइए इस खबर को विस्तार से जानते हैं।
80 साल बाद जूते के डिब्बे में मिला यह पैराशूट
श्रीमती एलिंगटन नामक स्वर्गीय महिला के घर पर यह दुर्लभ कबूतरों का पैराशूट पाया गया है। जानकारी के मुताबिक, इसे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान संदेश पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। अब करीब 80 साल बाद यह पैराशूट एलिंगटन के घर पर पड़े एक पुराने जूते के डिब्बे में पाया गया है। उनके परिवार ने हाल ही में इंग्लैंड के एसेक्स स्थित हाउस ऑन द हिल नामक टॉय म्यूजियम को यह दुर्लभ वस्तु दान में दे दी है।
6 जून 1944 को इस्तेमाल किया गया था यह पैराशूट
एलिंगटन के एक रिश्तेदार को सफाई करते समय यह कबूतरों का पैराशूट मिला था, जिसके साथ विश्व युद्ध से जुड़े कुछ दस्तावेज भी मौजूद थे। ऐसा माना जा रहा है कि इस पैराशूट का उपयोग 6 जून, 1944 को लैंडिंग से पहले किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के समय प्रौद्योगिकी प्रगति तेजी से हो रही थी, फिर भी लोग आपातकालीन स्थितियों में कबूतरों द्वारा संदेशों का आदान-प्रदान करते थे।
2,000 साल पहले रोम में शुरू हुई थी कबूतरों द्वारा संदेश भेजने की प्रथा
अंतरराष्ट्रीय सैन्य प्राचीन वस्तुएं (IMA) के अनुसार, कबूतरों की मदद से संदेश पहुंचाने की प्रथा सदियों पहले बेहद आम थी। इस तरकीब का उपयोग मूल रूप से 2,000 साल पहले और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रोम के लोगों द्वारा किया गया था। IMA ने बताया, "जनरल जॉन पर्शिंग के आग्रह पर अमेरिका की सेना के ने साल 1917 में कबूतरों द्वारा संदेश पहुंचाने की शुरुआत की थी।" कबूतर हमेशा सेना, तटरक्षक-बल या नौसैनिकों के साथ मौजूद होते थे।
विशेष नाम व संख्या से की जाती थी कबूतरों की पहचान
IMA के मुताबिक कबूतरों की पहचान आम तौर पर एक विशेष नाम या संख्या से की जाती थी और वे पैराशूट में कई तरह की जानकारी ले जाते थे। कंपनी की वेबसाइट पर लिखा गया है, "कबूतरों को दुश्मन की सेना के करीब भेजा जाता था, जिसके बाद वे उनकी ताकत, हमलों की रणनीतियों समेत अन्य जरूरी जानकारी पर समाचार लेकर लौटते थे।" कबूतरों वाले पैराशूट रेडियो सिग्नल के कमजोर होने पर संदेश पहुंचाने के लिए बेहद कारगर होते थे।
पहले पिंजरों में लगे पैराशूट से संदेश ले जाते थे कबूतर
हाउस ऑन द हिल टॉय म्यूजियम में प्रदर्शित कबूतर का पैराशूट कथित तौर पर काफी बाद का मॉडल था। पहले के वर्षों में कबूतरों को संदेश पहुंचाने के लिए पैराशूट लगे एक लकड़ी के पिंजरे से जोड़ा जाता था। IMA के अनुसार, जून 1944 में नॉर्मंडी आक्रमण से पहले पैराशूट से कबूतरों ने जर्मन सैनिकों के ठिकाने के बारे में फ्रांसीसी नागरिकों को सचेत करने के लिए ग्रामीण इलाकों में संदेश गिराए थे।