एक सदी से लापता गुस्ताव क्लिम्ट द्वारा बनाई गई पेंटिंग 250 करोड़ रुपये में नीलाम हुई
दुनिया में मशहूर चित्रकारों की बनाई गई पेंटिंग लोग बड़े शौक से खरीदते हैं। इसी कड़ी में अब ऑस्ट्रेलिया के चित्रकार गुस्ताव क्लिम्ट द्वारा बनाई गई पेंटिंग लगभग 250 करोड़ रुपये में नीलाम हुई है। इस पेंटिंग का शीर्षक 'फ्राउलिन लिसर का पोर्ट्रेट' है, जो करीब एक सदी से लापता थी। माना जा रहा है कि यह क्लिम्ट का बनाया हुआ आखरी चित्र था। इन दिनों यह चित्र दुनियाभर के कला प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
200 करोड़ रुपये से शुरू हुई चित्र की नीलामी
क्लिम्ट द्वारा बनाई गई इस ऐतिहासिक पेंटिंग की नीलामी 3.2 करोड़ डॉलर (लगभग 250 करोड़ रुपये) से शुरू हुई थी। यह राशि पहले की अनुमानित रकम के मुकाबले काफी कम थी, जो 260 करोड़ रुपये से 400 करोड़ रुपये के बीच तक थी। क्लिम्ट की 'लेडी विद ए फैन' नामक एक अन्य पेंटिंग की तुलना में इसका मूल्य काफी कम है, जो पिछले साल लंदन में 8,900 करोड़ रुपये में बिकी थी।
कई सालों से लापता था यह चित्र
क्लिम्ट की इस पेंटिंग को कई सालों से लापता माना जा रहा था, जिसे ऑस्ट्रिया के एक नागरिक के निजी संग्रह में पाया गया। वियना स्थित नीलामी घर 'इम किन्स्की' ने बिक्री से पहले अपनी वेबसाइट पर एक बयान के जरिए चित्र के दोबारा मिलने के बारे में जानकारी दी थी। इस कलाकृति को क्लिम्ट के काम के कैटलॉग में दर्ज किया गया था, लेकिन इसे लोगों ने केवल काले और सफेद रंग में देखा था।
अब तक नहीं हो सकी है चित्र की सटीक पहचान
क्लिम्ट ने चित्र की प्रेरणा एक धनी ऑस्ट्रियाई यहूदी परिवार से ली थी, जो वियना के उच्च समाज का हिस्सा था। यह पेंटिंग मार्गरेट कॉन्स्टेंस नामक एक किशोरी की हो सकती है, जिसे उसके पिता एडॉल्फ लेसर ने बनवाया था। हालांकि, कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं कि जस्टस नामक व्यक्ति की पत्नी लिली ने अपनी एक बेटी की तस्वीर बनाने के लिए क्लिम्ट को काम पर रखा था। अब तक चित्र की सटीक पहचान नहीं की जा सकी है।
क्लिम्ट के निधन के बाद भी उनके स्टूडियो में मौजूद थी पेंटिंग
नीलामी घर के अनुसार, चित्र में मौजूद किशोरी ने अप्रैल और मई 1917 में 9 बार क्लिम्ट के स्टूडियो का दौरा किया। उस साल मई में यह पेंटिंग शुरू करने से पहले क्लिम्ट ने कम से कम 25 प्रारंभिक अध्ययन किए थे। फरवरी 1918 में क्लिम्ट के निधन के बाद भी यह पेंटिंग उनके स्टूडियो में कुछ हद तक अधूरी रखी हुई थी, जिसे लिसर परिवार को सौंप दिया गया था।
अपने गुमनाम ऑस्ट्रियाई मालिक की ओर से बेची गई पेंटिंग
पेंटिंग को उसके गुमनाम ऑस्ट्रियाई मालिक और एडॉल्फ और हेनरीट लेसर के कानूनी उत्तराधिकारियों की तरफ से बेचा गया था, जो 1998 के वाशिंगटन सिद्धांतों के अनुरूप था। इन सिद्धांतों को नाजी द्वारा जब्त की गई कलाओं को उनके सही मालिकों को वापस करने के लिए स्थापित किया गया था। नीलामी घर में आधुनिक कला के विशेषज्ञ क्लाउडिया मोर्थ-गैसर ने कहा कि उन्होंने ऑस्ट्रिया में सभी संभव तरीकों से इस पेंटिंग के इतिहास की जांच की थी।