राष्ट्रपति की 'शाही बग्घी' की कहानी: सिक्का उछालकर पाकिस्तान से जीती गई थी यह सवारी
क्या है खबर?
हर साल की तरह इस बार भी गणतंत्र दिवस पर काफी कुछ अलग हुआ। इन्हीं में राष्ट्रपति की बग्घी भी शामिल है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 75वें गणतंत्र दिवस समारोह में जाने के लिए लिमोजिन की जगह बग्घी का इस्तेमाल करते हुए 250 साल पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया है।
खास बात यह है कि बटवारे के समय सिक्का उछालकर यह फैसला लिया गया था कि यह बग्घी किसके हिस्से में जाएगी, जिसमें भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था।
मामला
सिक्का उछालने पर तय हुआ था बग्घी का भविष्य
जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उस दौरान इस बग्घी पर दोनों देशों ने दावा किया था।
हालांकि, इस झगड़े को सुलझाने के लिए कोई अधिकारी नहीं था, इसलिए दोनों देशों ने सिक्का उछालकर बग्घी का फैसला लेने पर सहमति जताई थी।
भारत के लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के साहबजादा याकूब खान ने मिलकर इसमें हिस्सा लिया, जिसके बाद यह टॉस भारत ने जीता और इसके साथ ये बग्घी भारत की हो गई।
इस्तेमाल
राष्ट्रपति द्वारा इस्तेमाल की जाती थी शाही बग्घी
जानकारी के मुताबिक, बग्घी जीतने के बाद इसका इस्तेमाल शपथ ग्रहण समारोह के लिए राष्ट्रपति भवन से संसद तक जाने के लिए निर्वाचित राष्ट्रपति द्वारा किया जाने लगा क्योंकि यह बहुत ही खास और शाही होती है।
इसमें राष्ट्रीय प्रतीक, अशोक चक्र, सोने से उभरा हुआ है। इसके अलावा बग्घी पर सोने की परत भी चढ़ी हुई है।
यह बग्घी भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों की मिश्रित नस्ल द्वारा खींची जाती है। इसे खींचने में कुल 6 घोड़े लगाए जाते हैं।
सुरक्षा कारण
सुरक्षा कारणों की वजह से बंद हुआ था बग्घी का इस्तेमाल
साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा कारणों से इस बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था।
उसके बाद 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इस बग्घी में सवार होकर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में पहुंचे थे।
इस बार राष्ट्रपति मुर्मू ने 40 साल बाद गणतंत्र दिवस समारोह में जाने के लिए इस बग्गी की सवारी की है। इस दौरान उनके साथ फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी इस बग्घी पर सवार थे।
जानकारी
'झंडा फहराना' और 'ध्वजारोहण' के बीच का अंतर
भारत में 2 तरह से झंडे को फहराया या लहराया जाता है, जिसके बीच के अंतर को हमे जानना चाहिए।
जब तिरंगे को एक पोल के शीर्ष पर बांधा जाता है और उसको खोलकर फहराते हैं, तो इसे 'झंडा फहराना' कहते हैं। यह गणतंत्र दिवस के मौके पर होता है।
दूसरी ओर जब तिरंगे को ऊपर की तरफ खींचकर फहराया जाता है तो उसे 'ध्वजारोहण' कहते हैं। यह स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर होता है।