बंटवारे में छिने थे मां-बाप, एथलेटिक्स के जरिए दुनिया को जीतने वाले मिल्खा की कहानी
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर दिग्गज धावक मिल्खा सिंह ने 91 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। पिछले महीने कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद से वह लगातार अस्वस्थ चल रहे थे। मिल्खा का जीवन कड़े संघर्षों वाला रहा, लेकिन उन्होंने एथलेटिक्स के जरिए दुनिया को जीत लिया था। आइए जानते हैं कैसे शुरु हुआ था मिल्खा के फ्लाइंग सिख बनने का शानदार सफर।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे में अनाथ हो गए थे मिल्खा
मिल्खा का जन्म गोविंदपुरा गांव में हुआ था जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान का हिस्सा हो गया था। बंटवारे के बाद खूब दंगे हो रहे थे और इससे उनका गांव और परिवार भी नहीं बच पाया था। दंगों में मिल्खा के माता-पिता के अलावा उनके भाईयों और बहनों की भी हत्या कर दी गई थी। इस दौरान लगभग 18 साल के रहे मिल्खा ने किसी तरह खुद को बचाया था।
दिल्ली आकर रहने लगे थे मिल्खा
दंगों से बचकर भागने के बाद मिल्खा दिल्ली आकर अपनी बहन के साथ रहने लगे थे। वहीं से उन्होंने भारतीय सेना के बारे में सुना और फिर तीसरे प्रयास में उन्हें सेना में भर्ती मिल गई थी। सेना में जाने के बाद मिल्खा को एथलेटिक्स के बारे में पहली बार पता चला था और उन्होंने रेस ट्रैक देखा था। मिल्खा की क्षमता को देखने के बाद उन्हें अच्छी ट्रेनिंग दी जाने लगी थी।
1958 में दुनिया ने देखा मिल्खा का जादूू
मिल्खा ने सेना के साथ एथलेटिक्स की भरपूर ट्रेनिंग ली और 200 से लेकर 400 मीटर की रेस में अपना जलवा बिखेरने लगे। 1958 में हुए एशियन गेम्स में मिल्खा ने 200 और 400 मीटर दोनों में स्वर्ण पदक जीता। 100 मीटर में पाकिस्तान के अब्दुल खालिक चैंपियन थे और 400 मीटर में मिल्खा तो 200 मीटर की रेस में इन दोनों में एशिया का सबसे तेज धावक चुना जाना था जिसमें मिल्खा ने बाजी मारी थी।
रोम ओलंपिक में टूटा मिल्खा का दिल
1960 रोम ओलंपिक में मिल्खा ने अदभुत प्रदर्शन किया था और 400 मीटर में अपने ही रिकॉर्ड को 45.8 सेकेंड के समय के साथ सुधारा था। फाइनल रेस से पहले तक उन्हें स्वर्ण पदक का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा था। मिल्खा ने इस रेस में 0.1 सेकेंड के अंतर से पदक गंवा दिया था और चौथे नंबर पर रहे थे। इस लम्हे को मिल्खा अपने माता-पिता की मौत के बाद दूसरा सबसे दुखदायी लम्हा मानते थे।
1962 में फिर की शानदार वापसी
रोम ओलंपिक में पदक जीतने का मौका गंवाने के बाद मिल्खा ने खेलों से दूरी बनाने का निर्णय लिया था, लेकिन उन्होंने 1962 एशियन गेम्स में वापसी की और दो स्वर्ण पदक अपने नाम किए थे। मिल्खा ने तीन ओलंपिक में हिस्सा लिया था, लेकिन वह एक भी ओलंपिक पदक हासिल नहीं कर सके थे। उन्होंने अपने करियर में चार एशियन गेम्स और एक कॉमनवेल्थ गेम्स स्वर्ण जीता था।
इस तरह पड़ा था फ्लाइंग सिख नाम
रोम ओलंपिक के बाद पाकिस्तान ने अपने यहां एक इवेंट का आयोजन किया था और मिल्खा को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया था। मिल्खा ने वहां जाकर पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक को मात दी थी जिससे तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने कहा था कि मिल्खा दौड़े नहीं बल्कि उड़े हैं। उन्होंने ही मिल्खा को फ्लाइंग सिख की उपाधि दी थी।