
महान भारतीय फुटबॉलर पीके बनर्जी का 83 साल की उम्र में निधन
क्या है खबर?
भारत के पूर्व महान फुटबॉलर पीके बनर्जी का लंबे समय से बीमार रहने के बाद आज निधन हो गया है।
बनर्जी कोलकाता के एक अस्पताल में 02 मार्च से ही लाइफ सपोर्ट पर रखे गए थे और परिवार के एक व्यक्ति के मुताबिक उन्होंने आज दोपहर 12:40 पर अंतिम सांस ली।
न्यूमोनिया के कारण सांस लेने में तकलीफ झेल रहे बनर्जी को पर्किंसन, डेमेंशिया और दिल से संबंधित बीमारी भी थी।
जानकारी
बनर्जी के भाई हैं तृणमूल सांसद
पीके के छोटे भाई प्रसून बनर्जी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं। पीके की दो बेटियां हैं और वह उनके साथ ही रहते थे। उनकी बेटियां प्रसिद्ध अध्यापिकाए हैं।
शुरुआती मुश्किलें
बड़े परिवार को पालने में पिता ने झेली काफी मुश्किलें
नॉर्थ बंगाल के मोयनागुरी नामक छोटे से कस्बे में बनर्जी का जन्म 1936 में हुआ था।
उनके पिता प्रोवत बनर्जी अपनी नौकरी से इतनी कमाई नहीं कर पाते थे जिससे कि परिवार का दोनों समय का गुजारा हो सके।
उनका परिवार काफी बड़ा था जिसमें सात बच्चे, भाई-बहन, चाचा-चाची और तमाम लोग रहते थे।
भाई-बहनों में पीके सबसे बड़े थे और इसी कारण उन्हें परिवार की आर्थिक स्थिति का बोझ जल्दी समझ आया।
पहली नौकरी
135 रूपये की तनख्वाह में मिली थी पहली नौकरी
बंटवारे के बाद कलकत्ता आने के बाद उनके परिवार को और भी संघर्षों का सामना करना पड़ा और फिर उनके पिता की भी मौत हो गई।
पीके ने फुटबॉल के जरिए 15 साल की उम्र में अपनी पहली जॉब हासिल की जिसमें उन्हें 135 रूपये की तनख्वाह मिलती थी।
1953 में उन्हें भारतीय रेलवे में टिकट कलेक्टर की नौकरी दी गई जिसमें उनकी सैलरी पिछली से दो रूपये ज़्यादा थी।
यादगार लम्हा
फ्रांस के खिलाफ गोल बनर्जी के करियर का सबसे यादगार लम्हा
1958 से लेकर 1966 तक उन्होंने भारत को तीन एशियन गेम्स में लीड किया। 1962 एशियन गेम्स में भारत ने फुटबॉल में गोल्ड मेडल भी जीता था।
1956 समर ओलंपिक में उन्होंने 20 साल की उम्र में ओलंपिक में हिस्सा लिया, लेकिन भारत चौथे स्थान पर रहा।
1962 ओलंपिक में उन्होंने फ्रांस के खिलाफ अपने करियर का सबसे यादगार गोल दागा जब उन्होंने फ्रांस के खिलाफ बराबरी का गोल दागा।
अवार्ड्स
इन अवार्ड्स से सम्मानित हो चुके हैं बनर्जी
1961 में पहली बार अर्जुन अवार्ड हासिल करने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट में पीके भी शामिल थे।
1990 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनसे पहले केवल तीन भारतीय फुटबॉलर्स को ही यह सम्मान मिला था।
उन्हें 20वीं सदी का सबसे बेहतरीन फुटबॉल प्लेयर भी चुना गया था।
इसके अलावा 2004 में फीफा ने उन्हें अपना सबसे बड़ा सम्मान ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया था।