ओलंपिक खेलों में कैसे हुई थी मशाल जलाने की शुरुआत? जानिए इसके पीछे की कहानी
ओलंपिक खेलों की शुरुआत में उसके प्रवेश द्वार पर एक बड़ी मशाल जलाई जाती है। यह मशाल पूरे ओलंपिक के दौरान जलती रहती और समापन समारोह के दिन इसे बुझाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं इस परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई थी और इसके पीछे क्या उद्देश्य था? दरअसल, इस मशाल को जलाने के पीछे कोई अहम उद्देश्य नहीं है, लेकिन फिर भी यह परंपरा बन गई है। आइए इसके पीछे का कारण जानते हैं।
1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक से हुई थी मशाल जलाने की शुरुआत
28 जुलाई 1928, आधुनिक ओलिंपिक का 8वां संस्करण डच देश नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में शुरू हुआ था। उस दौरान ओलिंपिक स्टेडियम के सामने एक बड़े से टावर पर एक मशाल में आग जलाई गई थी। उसके पीछे कोई अहम कारण नहीं था और उसे केवल लोगों को ओलंपिक खेलों के आयोजन स्थल की जानकारी देने के लिए जलाया गया था। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समित को यह तरीका पसंद और फिर उसके बाद से हर ओलंपिक में इसे जलाया जाता है।
1936 में पहली बार आयोजित की गई थी मशाल रिले
ओलंपिक मशाल रिले पहली बार 1936 के बर्लिन ओलंपिक में आयोजित की गई थी। प्राचीन ग्रीस में मशाल दौड़ के विचार को पुनर्जीवित करने और खेलों के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजन समिति के महासचिव कार्ल डायम ने प्रस्ताव रखा कि ओलंपिया में एक मशाल जलाई जाए और फिर उसे पैदल बर्लिन लाया जाए। उसके बाद 7 देशों के 3,000 से अधिक एथलीटों ने इसमें भाग लिया। तब से ओलंपिक खेलों में मशाल रिले आयोजित की जा रही है।
ओलंपिक खेलों में समापन समारोह की शुरुआत
ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में जहां सभी खिलाड़ी अपने देश के अन्य खिलाड़ियों के साथ चलते हैं, वहीं समापन समारोह अलग-अलग देशों के एथलीट के साथ मार्च करते हैं। सपमापन समारोह की शुरुआत सबसे पहले 1956 मेलबर्न ओलिंपिक में हुई थी, लेकिन इसके पीछे एक बड़ी घटना का हाथ है। यह घटना सोवियत यूनियन और हंगरी के बीच खेले गए वॉटरपोलो के सेमीफाइनल के दौरान घटी थी। उसके बाद ओलंपिक में समापन समारोह की प्रथा शुरू हुई थी।
समापन समारोह की शुरुआत के पीछे की घटना क्या है?
दरअसल, उस समय शीत युद्ध चल रहा था। जर्मनी में नाजियों की हार के बाद हंगरी पर सोवियत यूनियन शासन करता था। वॉटरपोलो मैच के कुछ हफ्तों पहले सोवियत यूनियन की सेना ने हंगरी में पनप रहे छात्रों के विरोध को मजबूती से कुचल दिया था। इसमें कुछ छात्रों की मौत हो गई थी। ये छात्र सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट विचारधारा का विरोध कर रहे थे। इसके चलते हंगरी के नागरिकों समेत खिलाड़ियों में भी इसके लिए गुस्सा भरा था।
सेमीफाइन मैच में आपस में भिड़ गए थे खिलाड़ी
वॉटरपोलो के सेमीफाइनल में जब दोनों टीमें सामने आई तो खिलाड़ियों का गुस्सा फूट पड़ा और वो आपस में भिड़ गए। इसमें एक खिलाड़ी चोटिल हो गया, जिससे पूल में खून फैल गया था। उस घटना को अखबरों ने 'ब्लड इन द वॉटर' नाम दिया था। इसके बाद जॉन विंग नाम के एक ऑस्ट्रेलियाई विद्यार्थी ने ओलिंपिक समिति को पत्र लिखकर आयोजन के अंतिम दिन एक समापन समारोह आवश्यक रूप से आयोजित करने का सुझाव दिया था।
ओलंपिक समिति ने सुझाव के बाद शुरू किया समापन समारोह
ऑस्ट्रेलियाई छात्र ने सुझाव दिया था कि समारोह में सभी खिलाड़ी एक टीम की तरह मार्च करेंगे, जिससे खेल भावना का विस्तार होगा। ओलंपिक समिति ने सुझाव मान लिया और उसी साल समापन समारोह आयोजित कर दिया। उसके बाद से यह आज तक जारी है।