कोरोना वायरस: वेंटिलेटर की कब जरूरत पड़ती है और इसे बनाने के लिए क्या-क्या चाहिए?
पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसके कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। कोरोना वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए मरीजों को सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। वहीं भारत के अस्पताल जनसंख्या के अनुपात में वेंटिलेटर की भारी कमी से जूझ रहे हैं। इसे देखते हुए सरकार ने वेंटिलेटर का निर्माण तेज करने का फैसला किया है।
वेंटिलेटर क्या होता है?
वेंटिलेटर एक ऐसी मशीन होती है जो तब काम आती है, जब मरीज खुद से सांस नहीं ले पाता है। वेंटिलेटर में ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। यह ऑक्सजीन के साथ दूसरी गैसों को मिलाकर निश्चित मात्रा में मरीज के फेफड़ों तक हवा पहुंचाता है।
वेंटिलेटर की जरूरत क्यों पड़ती है?
कोरोना वायरस के मरीजों को निमोनिया होता है। वायरस के शरीर में जाने के बाद मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है, जिसे ब्रांकिओल्स बोला जाता है। इससे सांस लेते समय फेफड़ों और उन सभी नसों में जलन होती है, जहां से हवा गुजरती है। कई बार हालत इतनी खराब हो जाती है कि मरीज न सांस ले पाता है और न ही सांस छोड़ पाता है। ऐसी स्थिति में संक्रमित व्यक्ति के लिए वेंटिलेटर की जरूरत होती है।
कितने प्रकार के होते हैं वेंटिलेटर?
अलग-अलग मोड में हवा देने के लिए अलग प्रकार के वेंटिलेटर आते हैं। इन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है- पिस्टन वेंटिलेटर, टर्बाइन वेंटिलेटर और एक्सटर्नल एयर ड्रिवन वेंटिलेटर।
कोरोना संक्रमितों के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं ये वेंटिलेटर
जानकारों का कहना है कि कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए एक्सटर्नल एयर ड्रिवन वेंटिलेटर सबसे उपयुक्त होते हैं। ऐसे मरीजों के लिए टर्बाइन वेंटिेलेटर भी काम में लाए जा सकते हैं, लेकिन यह कम प्रभावी होते हैं। जानकारों के मुताबिक, कोरोना संक्रमित मरीजों के फेफड़े अपेक्षाकृत कठोर हो जाते हैं और हवा गुजरने वाली नसें सूज जाती है। इसलिए उन्होंने ज्यादा प्रेशर और तेज बहाव वाली हवा की जरूरत होती है।
वेंटिलेटर बनाने में किन-किन चीजों की जरूरत होती है?
सेंसर- प्रेशर को मॉनिटर, कंट्रोल करने के लिए और सही मात्रा में ऑक्सीजन देने के लिए सेंसर। डिस्प्ले- अलग- अलग मापदंडों पर नजर रखने के लिए LCD मॉनिटर जैसा डिस्प्ले। सेल्योनॉयड वॉल्व- यह हवा की दिशा और बहाव नियंत्रित करती है। इनके अलावा वेंटिलेटर बनाने में ट्यूबिंग और प्रेशर रेगुलेटर, फेफड़ों में हवा देने और निकालने के लिए इन्सेपेरेट्री और एक्सपेरेट्री वॉल्व, सॉफ्टवेयर और प्रिंटेड सर्किट बोर्ड और टर्बाइन अथवा ब्लोअर की जरूरत होती है।
भारत के पास कितने वेंटिलेटर हैं?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के सरकारी अस्पतालों में कुल 14,220 ICU वेंटिलेटर है। इसके अलावा सरकारी और कुछ प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोना वायरस मरीजों के लिए 6,000 वेंटिलेटर का इंतजाम किया है। भारत के कुल वेंटिलेटर में से केवल 10 प्रतिशत ही स्वदेश निर्मित है। भारत में महामारी को देखते हुए रेलवे और कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी भी वेंटिलेटर निर्माण में जुटी है ताकि बढ़ती जरूरत को समय रहते पूरा किया जा सके।