
कौन हैं भारतीय मूल के वैज्ञानिक निक्कू मधुसूदन, जिन्होंने एक ग्रह पर ढूंढे जीवन के संकेत?
क्या है खबर?
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने हाल ही में पृथ्वी से 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित ग्रह K2-18b के वातावरण में जीवन के संकेत होने की संभावना जताई है।
इस टीम का नेतृत्व भारतीय मूल के खगोल वैज्ञानिक डॉक्टर निक्कू मधुसूदन ने किया।
उन्होंने नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) के डाटा का विश्लेषण कर वहां डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) नामक अणु की उपस्थिति दर्ज की, जो पृथ्वी पर केवल जैविक गतिविधियों से बनता है, विशेषकर समुद्री शैवाल द्वारा।
परिचय
कौन हैं डॉक्टर निक्कू मधुसूदन?
डॉक्टर मधुसूदन का जन्म भारत में 1980 में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से की, जहां से उन्होंने प्रौद्योगिकी स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए और प्रतिष्ठित MIT से ग्रह विज्ञान में मास्टर और डॉक्टरेट दोनों की डिग्री हासिल की।
MIT में उन्होंने प्रसिद्ध एक्सोप्लैनेट विशेषज्ञ डॉक्टर सारा सीगर के साथ काम किया, जिसने उनके शोध जीवन की दिशा तय की।
करियर
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, हाइसीन ग्रहों के जनक
वर्तमान में डॉक्टर मधुसूदन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनका शोध एक्सोप्लैनेट्स के वायुमंडल, उनकी संरचना और जीवन की संभावनाओं पर केंद्रित है।
उन्होंने 'हाइसीन ग्रहों' की परिकल्पना प्रस्तुत की, जो हाइड्रोजन युक्त वायुमंडल वाले महासागर से ढके ग्रह होते हैं।
2023 में उनके नेतृत्व में हुए एक अध्ययन ने K2-18b पर DMS की उपस्थिति की पुष्टि की, जिससे वैज्ञानिक समुदाय में हलचल मच गई और यह खोज जीवन की संभावना के सबसे मजबूत संकेतों में गिनी गई।
खोज
ब्रह्मांड में जीवन की तलाश में एक क्रांतिकारी कदम
डॉक्टर मधुसूदन की यह खोज फर्मी विरोधाभास को नए सिरे से चर्चा में लाती है।
अगर ब्रह्मांड जीवन से भरा है तो हम अब तक किसी बुद्धिमान जीवन से क्यों नहीं मिले? शोधकर्ताओं का मानना है कि K2-18b पर पाए गए संकेत ब्रह्मांड में जीवन की खोज को नई दिशा दे सकते हैं।
आने वाले वर्षों में जेम्स वेब टेलीस्कोप इस ग्रह का गहराई से अध्ययन करेगा और भविष्य की वेधशालाएं इस दिशा में और सटीक जानकारी जुटा सकती हैं।