अलविदा 2024: ISRO ने इस साल लॉन्च किए ये बड़े अंतरिक्ष मिशन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2024 में कई महत्वपूर्ण मिशनों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इनमें एक्सपोसैट, इनसैट-3DS, EOS-08 और प्रोबा-3 जैसे प्रमुख सैटेलाइट शामिल हैं। इन मिशनों के माध्यम से ISRO ने न केवल स्वदेशी सैटेलाइट्स को लॉन्च किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए पेलोड्स भी अंतरिक्ष में तैनात किए। यह साल ISRO के लिए विशेष रूप से सफलता और प्रगति का रहा, जिसमें अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया।
PSLV-C58/एक्सपोसैट था साल का पहला मिशन
ISRO ने इस साल 1 जनवरी को PSLV-C58 रॉकेट का उपयोग कर एक्सपोसैट सैटेलाइट को लॉन्च किया। यह ISRO का पहला समर्पित सैटेलाइट है, जिसका उद्देश्य आकाशीय स्रोतों से निकलने वाले एक्स-रे उत्सर्जन के अंतरिक्ष-आधारित ध्रुवीकरण माप पर शोध करना है। इसके प्रमुख पेलोड्स में POLIX और XSPECT शामिल हैं, जो क्रमशः एक्स-रे ध्रुवीकरण और स्पेक्ट्रोस्कोपी के अध्ययन में सहायक हैं। POLIX 50 संभावित ब्रह्मांडीय स्रोतों से एक्स-रे के ध्रुवीकरण को मापता है।
एक्सपोसैट मिशन का उद्देश्य
एक्सपोसैट मिशन का प्रमुख उद्देश्य ब्रह्मांडीय एक्स-रे स्रोतों का दीर्घकालिक अध्ययन और उनके व्यवहार को समझना है। यह सैटेलाइट XSPECT पेलोड के जरिए 0.8-15keV ऊर्जा बैंड में स्पेक्ट्रोस्कोपिक और टाइमिंग अध्ययन करता है। वैज्ञानिक इससे एक्स-रे स्रोतों की उत्पत्ति, ध्रुवीकरण और उनके अन्य रहस्यों को जान सकते हैं। यह खगोलशास्त्र और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में नई जानकारियां प्रदान करेगा, जिससे ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों को समझने में मदद मिलेगी।
INSAT-3DS मिशन 17 फरवरी को हुआ था लॉन्च
ISRO ने 17 फरवरी को INSAT-3DS मिशन को GSLV-F14 रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया गया और जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित किया गया। यह सैटेलाइट बेहतर मौसम संबंधी अवलोकन, भूमि और महासागर की सतहों की निगरानी, आपदा चेतावनी और सटीक मौसम पूर्वानुमान के लिए डिजाइन किया गया है। INSAT-3D और INSAT-3DR के साथ समन्वय में काम करते हुए, यह भारत में मौसम संबंधी सेवाओं को और उन्नत बनाता है, जिससे देश की आपदा प्रबंधन क्षमताओं में सुधार होता है।
INSAT-3DS का उद्देश्य क्या है?
INSAT-3DS का उद्देश्य सटीक डाटा प्रदान करना है, जिसका उपयोग IMD, IITM, और NIOT जैसे सरकारी विभागों द्वारा किया जा रहा है। यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी, जलवायु अध्ययन और सतह निगरानी में सहायक है। इसका डाटा मौसम पूर्वानुमान की सटीकता को बढ़ाता है और आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करता है। यह भारत की उन्नत मौसम विज्ञान प्रणाली का एक अहम हिस्सा है, जो विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करता है।
अगस्त में EOS-08 माइक्रोसैटेलाइट हुआ लॉन्च
इस साल 16 अगस्त को ISRO ने SSLV-D3 रॉकेट से EOS-08 माइक्रोसैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इस लॉन्च ने SSLV परियोजना के विकास को पूरा करने और वाणिज्यिक मिशनों के संचालन की नींव रखी। EOS-08 में 3 मुख्य पेलोड थे: EOIR, जो मिड-वेव और लॉन्ग-वेव इंफ्रारेड बैंड में इमेज कैप्चर करता है और GNSS-R, जो बाढ़ का पता लगाने और समुद्री हवाओं का अध्ययन करने के लिए GPS सिग्नल का उपयोग करता है।
EOS-08 का उद्देश्य
EOS-08 का उद्देश्य अंतरिक्ष आधारित पर्यावरणीय और आपदा प्रबंधन को सशक्त बनाना है। इसका SiC UV डोसिमीटर पेलोड, गगनयान मिशन की तैयारी के लिए, UV विकिरण जोखिम का अध्ययन करता है। यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं का पता लगाने, सटीक पर्यावरणीय डाटा प्रदान करने और समुद्र विज्ञान के लिए अत्याधुनिक जानकारी प्रदान करता है। NSIL और भारतीय उद्योगों के लिए यह मिशन आत्मनिर्भर अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ावा देने में सहायक है।
ESA का प्रोबा-3 मिशन भी हुआ लॉन्च
ISRO ने 5 दिसंबर 2024 को अपने PSLV-C59 रॉकेट से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के प्रोबा-3 मिशन को लॉन्च किया। इस विशेष अंतरिक्ष मिशन में 2 सैटेलाइट (कोरोनाग्राफ और ऑकल्टर) शामिल हैं, जो सूर्य के कोरोना (सूर्य की बाहरी परत) का अध्ययन करेंगे। ऑकल्टर सैटेलाइट सूर्य की चमकदार डिस्क को ब्लॉक करके एक नकली सूर्य ग्रहण बनाएगा और कोरोनाग्राफ इस छाया में रहकर अपने टेलीस्कोप से कोरोना का निरीक्षण करेगा।
प्रोबा-3 मिशन क्यों है खास?
यह मिशन सूर्य के कोरोना की संरचना और गतिविधियों को समझने में मदद करेगा। यह बताएगा कि सूर्य की सतह की तुलना में कोरोना ज्यादा गर्म क्यों है और सौर हवा की गति कैसे बढ़ती है। इसके साथ ही, यह अंतरिक्ष में संरचित उड़ान तकनीकों को बेहतर बनाने में योगदान देगा। इस अध्ययन से अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं को समझना आसान होगा, जो पृथ्वी की संचार प्रणालियों और बिजली ग्रिड पर प्रभाव डाल सकती हैं।
ISRO का 2024 का अंतिम मिशन होगा स्पेडएक्स
ISRO 2024 के अंत में स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (स्पेडएक्स) मिशन लॉन्च करने जा रहा है। इसे PSLV-C60 रॉकेट के जरिए 700 किलोमीटर ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा। इस मिशन में 2 सैटेलाइट (चेजर और टारगेट) शामिल हैं, जो आपस में जुड़ने की क्षमता का प्रदर्शन करेंगे। ISRO प्रमुख एस सोमनाथ के अनुसार, यह मिशन भारत के अंतरिक्ष तकनीक में एक और उपलब्धि साबित होगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई संभावनाओं को खोलेगा।
मिशन का उद्देश्य और महत्व
इस मिशन का उद्देश्य पृथ्वी की कक्षा में सटीकता के साथ 2 सैटेलाइट्स को जोड़ना है। यह तकनीक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने, अंतरिक्ष में संसाधन साझा करने और मानवयुक्त अभियानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अब तक, यह तकनीक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने हासिल की है। भारत का यह मिशन भविष्य में गहरे अंतरिक्ष अभियानों और गगनयान मिशन को सफल बनाने के लिए नई राह तैयार करेगा। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में तकनीकी मजबूती को दर्शाता है।