अंतरिक्ष में क्या होता है लो अर्थ ऑर्बिट?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और नासा समेत दुनिया की ज्यादातर अंतरिक्ष एजेंसियां और कंपनियां अपने बहुत से सैटेलाइट को पृथ्वी की निचली कक्षा में ही तैनात करती हैं। पृथ्वी की निचली कक्षा या लो अर्थ आर्बिट (LEO) हमारे ग्रह से 400 किलोमीटर की ऊंचाई से शुरू होकर 2,000 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक होती है। LEO को पृथ्वी के लिए सैटेलाइट स्थापित करने के लिए बेहतर जगह माना जाता है।
LEO में कितने सैटेलाइट्स कर रहे काम?
LEO में हजारों सैटेलाइट्स वर्तमान में सक्रिय रूप से कम कर रहे हैं, जिसके बारे में कोई सटीक आंकड़ा फिलहाल उपलब्ध नहीं है। हालांकि, इनकी संख्या अनुमानित तौर पर 10,000 से भी अधिक होगी, जिसमें अकेले 7,000 स्टारलिंक सैटेलाइट्स स्पेस-X के हैं। LEO सैटेलाइट तैनाती के लिए लोकप्रिय है, क्योंकि यह पृथ्वी से बहुत नजदीक है, जिससे संचार में कम देरी, बेहतर इमेजिंग रेजोल्यूशन और सैटेलाइट लॉन्च के लिए कम लागत की अनुमति मिलती है।
ISS भी यहीं करता है परिक्रमा
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) भी LEO में ही परिक्रमा करता है। यह वर्तमान में 402 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया है। ISS को पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाने में 90 मिनट लगते है यह लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से परिक्रमा करता है। LEO दुनिया की कई देशों की अर्थव्यवस्था में भी मददगार है, क्योंकि निजी कंपनियों के सैटेलाइट लॉन्च में आने से अंतरिक्ष क्षेत्र में काफी तेजी से निवेश भी बढ़ रहा है।