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    गरारे करने से लगेगा कोरोना संक्रमण का पता, इजराइल में तैयार हुई तकनीक

    गरारे करने से लगेगा कोरोना संक्रमण का पता, इजराइल में तैयार हुई तकनीक

    लेखन प्रमोद कुमार
    Aug 20, 2020
    02:01 pm

    क्या है खबर?

    इजराइल के वैज्ञानिक कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण का पता लगाने के लिए एक नए, तेज और आसान टेस्ट पर काम कर रहे हैं।

    फिलहाल इसका ट्रायल जारी है और अभी तक इसने 95 प्रतिशत सटीकता दिखाई है।

    इसमें मरीज को गरारे कर खास माउथवॉश को एक ट्यूब में थूकना होता है। फिर मशीन महज एक सेकंड में इस बात की पुष्टि कर देगी कि वह व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या नहीं।

    आइये, इस बारे में विस्तार से जानते हैं।

    उम्मीद

    कामयाब रहने पर साल के अंत तक बाजार में उपलब्ध होगा टेस्ट

    वैज्ञानिकों ने एशट्रे के आकार की USB से चलने वाली एक मशीन बनाई है। यह मरीज द्वारा थूके गए माउथवॉश का लाइट एनालिसिस कर महज एक सेकंट में संक्रमण की पुष्टि कर देती है।

    फिलहाल इजराइल के सबसे बड़े अस्पताल शेबा मेडिकल सेंटर में 400 लोगों पर इसका ट्रायल चल रहा है।

    अगर इसकी सटीकता इसी स्तर पर बनी रही तो साल के अंत तक यह टेस्ट दुनियाभर के बाजारों में उपलब्ध हो जाएगा।

    बयान

    PCR टेस्ट की जगह ले सकती है यह तकनीक- टीम

    टेस्ट तैयार करने वाली टीम का कहना है कि इस तकनीक में PCR टेस्टिंग का स्थान लेने की क्षमता है।

    फिलहाल कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए PCR टेस्ट को सबसे भरोसेमंद माना जाता है। इनकी सटीकता 80 प्रतिशत के आसपास होती है।

    PCR टेस्ट करना काफी पेचीदा काम होता है और इसमें काफी समय भी लगता है, जिससे कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट आने में समय लगता है। साथ ही यह काफी महंगा भी होता है।

    बयान

    बड़ी आबादी की स्क्रीनिंग के लिए उपयुक्त है यह टेस्ट- एलि

    'गार्गल एंड स्पिट' टेस्ट के बारे में बताते हुए ट्रायल के प्रमुख प्रोफेसर एलि शवार्ट्ज कहते हैं कि यह बेहद सस्ता और भरोसेमंद हैं।

    उन्होंने कहा कि बड़ी आबादी के टेस्ट करने के साथ-साथ हवाई अड्डों, अस्पतालों और यहां तक की घर पर टेस्ट करने के लिए यह उपयुक्त है।

    उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य PCR टेस्ट की जगह लेना है, खासकर उन जगहों पर, जहां बड़े स्तर पर टेस्टिंग की जरूरत होती है।

    तकनीक

    कैसे काम करता है यह टेस्ट?

    मरीजों को 10 मिली खास माउथवॉश के गरारे कर एक ट्यब में थूकना होता है। फिर यह सैंपल एक मशीन में रखा जाता है, जो इसका विश्लेषण करती है।

    मशीन इस सैंपल को कोरोना संक्रमित व्यक्ति के सैंपल से मिलाकर संक्रमण की पुष्टि करती है।

    मशीन को स्पैक्ट्रालिट (SpectraLIT) के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि मशीन को न तो रसायन की और न ही इसे चलाने के लिए किसी मेडिकल कौशल की जरूरत होती है।

    तकनीक

    सैंपल के 'स्पेक्ट्रल सिग्नेचर' का पता लगाती है मशीन

    इस ट्रायल में न्यूसाइड इमेजिंग कंपनी भी मदद कर रही है। न्यूसाइट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एली असूलिन ने टाइम्स ऑफ इजराइल को बताया कि मशीन सैंपल और एक खास चिप पर लाइट फेंकती है। जब लाइट इस सैंपल के अंदर से जाती है तो उसके कुछ हिस्से को यह सोख लेता है और बाकी हिस्सा चिप के सेंसर तक पहुंच जाता है।

    इस प्रक्रिया से सैंपल के 'स्पेक्ट्रल सिग्नेचर' का पता लगाया जाता है।

    फायदा

    घर पर ही टेस्ट कर सकेंगे लोग

    आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से वैज्ञानिक कोरोना संक्रमित और स्वस्थ व्यक्ति के मुंह से निकले माउथवॉश में अंतर पता कर लेते हैं, जिससे संक्रमित की पहचान आसान हो जाती है।

    शवार्ट्ज कहते हैं कि अगर यह टेस्ट कामयाब रहता है और इसका इस्तेमाल बढ़ता है तो यह 'जीवन बचाने' वाला साबित हो सकता है। लोग इसकी मदद से शुरुआत में ही संक्रमण की जांच कर आइसोलेट हो जाएंगे, जिससे कोरोना वायरस दूसरों तक नहीं फैलेगा।

    जानकारी

    लगभग 15,000 रुपये हो सकती है टेस्ट की कीमत

    असूलिन ने बताया कि इसका पेटेंट दायर कर दिया गया है। टेस्ट को मंजूरी मिलते ही इसका उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। बाजार में उपलब्ध होने पर मशीन समेत इस पूरे टेस्ट की कीमत लगभग 15,000 रुपये के आसपास हो सकती है।

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