व्हाट्सऐप का चौंकाने वाला खुलासा, भारतीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई थी जासूसी
फेसबुक के मालिकाना हक वाली व्हाट्सऐप ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया है कि भारत में कई पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी की गई थी। इस काम के लिए इजरायल का खुफिया सॉफ्टवेयर पेगासस (Pegasus) इस्तेमाल किया गया था। मंगलवार को अमेरिका की एक अदालत में मुकदमा करते हुए व्हाट्सऐप ने आरोप लगाया कि इजरायल के एक NSO ग्रुप ने पेगासस की मदद से उसके लगभग 1,400 यूजर्स की जासूसी की है।
व्हाट्सऐप ने किया था सर्विलांस पर रखे लोगों से संपर्क
व्हाट्सऐप ने अभी तक उन पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की पहचान जाहिर नहीं की है, लेकिन कंपनी के प्रवक्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि व्हाट्सऐप को इस बात की जानकारी थी कि किन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और कंपनी ने उन लोगों से संपर्क भी किया था। उन्होंने कहा, "भारतीय पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सर्विलांस पर रखा गया था। मैं उनकी पहचान और संख्या नहीं बता सकता, लेकिन ये काफी थे।"
दो दर्जन पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी का संदेह
बताया जा रहा है कि व्हाट्सऐप ने कम से कम दो दर्जन शिक्षाविद, वकील, दलित कार्यकर्ता और पत्रकारों से संपर्क कर उन्हें सावधान रहने को कहा था। कंपनी ने कहा कि मई से पहले दो सप्ताह तक उनके फोन को सर्विलांस पर रखा गया था।
व्हाट्सऐप ने इन कंपनियों के खिलाफ किया केस
व्हाट्सऐप ने NSO ग्रुप और Q साइबर टेक्नोलॉजीस के खिलाफ मुकदमे में कहा है कि इन कंपनियों ने अमेरिका और कैलिफॉर्नियों केे कानूनों और व्हाट्सऐप की शर्तों के नियमों का उल्लंघन किया है। कंपनी ने कहा कि इन फोन में मिस्ड कॉल के जरिए पेगासस स्पाईवेयर को इंस्टॉल किया गया था। व्हाट्सऐप ने कहा कि कम से कम 100 लोगों को निशाना बनाया गया था। अगर और पीड़ित सामने आते हैं तो यह संख्या और भी बढ़ सकती है।
NSO ग्रुप ने किया आरोपों का खंडन
वहीं NSO ग्रुप ने व्हाट्सऐप के इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ये आरोप निराधार हैं और वो पूरी मजबूती से कानूनी लड़ाई लड़ेगी। कंपनी ने कहा, "हमारी तकनीक पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन नहीं की गई है।" NSO ग्रुप ने कहा कि वह केवल सरकारी एजेंसियों को पेगासस बेचती है। वहीं इस पर भारत सरकार की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया है।
पेगागस की मदद से किया गया था जमाल खशोगी को ट्रैक
NSO ग्रुप ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब से अपने सारे समझौते रद्द कर दिए थे। दरअसल जांच में पता चला था कि खशोगी की हत्या से पहले उन्हें ट्रैक करने के लिए पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया था।
कैसे काम करता है पैगासस स्पाईवेयर?
किसी टारगेट को मॉनिटर करने के लिए पेगासस ऑपरेटर उसके पास एक लिंक भेजता है। इस लिंक पर क्लिक होते ही यूजर के फोन में पेगासस स्पाईवेयर इंस्टॉल हो जाता है और यूजर को इसका पता भी नहीं चलता। डाउनलोड होने के बाद पेगासस अपने ऑपरेटर की कमांड पर चलता है। यह कमांड देने पर टारगेट के पासवर्ड, कॉन्टैक्ट, लिस्ट, कैलेंडर इवेंट, टेक्सट मैसेज, वॉइस कॉल समेत पर्सनल डाटा ऑपरेटर के पास भेजता रहता है।
मिस्ड वीडियो कॉल से इस्टॉल किया जा सकता है पेगासस
स्पाईवेयर की मदद से ऑपरेटर टारगेट के फोन का कैमरा और माइक्रोफोन भी ऑन कर सकता है, जिससे उसे टारगेट के आसपास की हलचलों का पता लग सकता है। कई बार फोन में स्पाईवेयर डाउनलोड करने के लिए लिंक पर क्लिक की भी जरूरत नहीं होती। टारगेट को व्हाट्सऐप पर मिस्ड वीडियो कॉल मिलती है। अगर यूजर्स इस पर कोई रिस्पॉन्स भी नहीं देता है तब भी स्पाईवेयर उसके फोन में डाउनलोड हो जाता है।