
सर्च इंजन गूगल से नाराज हैं भारतीय समाचार कंपनियां, जानें इसकी वजह
क्या है खबर?
ऑनलाइन खबरें पढ़ने के लिए लाखों इंटरनेट यूजर्स सर्च इंजन गूगल का इस्तेमाल करते हैं।
जो खबरें खोजने, रिपोर्ट करने और पब्लिश करने के लिए समाचार कंपनियां मेहनत करती हैं और पैसे खर्च करती हैं, गूगल वह कंटेंट अपने चैनल्स पर दिखा देती है।
इस बात से भारतीय समाचार कंपनियां खुश नहीं हैं कि गूगल की वजह से उनकी कमाई पर असर पड़ रहा है।
बता दें, भारत पहला देश नहीं है, जहां गूगल पर ऐसे सवाल उठे हैं।
नियंत्रण
गूगल रैंकिंग पर निर्भर होती हैं कंपनियां
बेशक मौजूदा बिजनेस मॉडल में रीडर्स को इंटरनेट पर ऑनलाइन खबरें पढ़ने को मिलती हैं लेकिन गणित सिर्फ इतना सा नहीं है।
समाचार कंपनियां उनकी वेबसाइट्स पर दिखने वाले विज्ञापनों की मदद से कमाई करती हैं, जिसके लिए उनकी खबरों के लिंक पर क्लिक किया जाना जरूरी होता है।
गूगल की रैंकिंग में ऊपर दिखने वाले लिंक पर ज्यादा रीडर्स क्लिक करते हैं और मीडिया कंपनियां इस पोजीशन पर बने रखने के लिए लगातार कोशिश करती रहती हैं।
चिंता
गूगल की कमाई का बड़ा जरिया हैं विज्ञापन
न्यूज वेबसाइट्स की लोकप्रियता के आधार पर एडवर्टाइजर्स मीडिया कंपनियों को विज्ञापन दिखाने के लिए बदले पैसे देते हैं।
खुद गूगल की कमाई का एक बड़ा जरिया विज्ञापन ही हैं और टेक कंपनी के साथ गूगल दुनिया की सबसे बड़ी एडवर्टाइजमेंट कंपनी भी है।
मौजूदा प्रोडक्ट्स के साथ गूगल के पास पहले ही बड़ा यूजरबेस है और यूजर्स को ज्यादा विज्ञापन दिखाने के लिए कंपनी का फोकस उनसे ज्यादा से ज्यादा 'स्क्रीन टाइम' लेने पर होता है।
कंटेंट
गूगल को खबरों पर नहीं करना होता खर्च
बड़ी समाचार कंपनियों का कंटेंट पहले ही सर्च इंजन की रैंकिंग और लिस्टिंग में दिखता है इसलिए गूगल को खुद खबरों पर खर्च नहीं करना पड़ता।
गूगल न्यूज की शुरुआत 2000 के दशक में बिना एक भी रिपोर्टर या कैमरा के हुई और अब इसका एल्गोरिद्म नियंत्रित करता है कि कौन सी वेबसाइट की खबरें सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स पढ़ेंगे।
अब किसी स्टोरी के गूगल पर रैंक ना करने का मतलब है कि उसे ना के बराबर रीडर्स पढ़ते हैं।
नुकसान
भारतीय समाचार कंपनियों की कमाई पर असर
गूगल ऑनलाइन दुनिया में खबरों को नियंत्रित करने लगी है और वेबसाइट्स पर दिखने वाले विज्ञापनों को भी मैनेज करती है।
अब गूगल फैसला करती है कि कंपनियों को विज्ञापनों से होने वाली कमाई का कितना हिस्सा मिलेगा।
मीडिया कंपनियों से जुड़े संगठन डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) की मानें तो वेबसाइट पब्लिशर्स को विज्ञापनों के लिए एडवर्टाइजर्स की ओर से किए जाने वाले खर्च का केवल 51 प्रतिशत हिस्सा मिलता है।
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में कंपनियों को भुगतान करती है गूगल
गूगल की मनमानी के चलते समाचार कंपनियों को होने वाले नुकसान को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया खास कानून लेकर आई है।
ऑस्ट्रेलिया में नया कानून लागू होने से पहले गूगल ने इसका विरोध किया था और ऑस्ट्रेलिया में अपनी सेवाएं ना देने तक की बात कही थी।
हालांकि, ऑस्ट्रेलिया की सरकार इसके बावजूद नया कानून लेकर आई और दोनों कंपनियों को वहां की मीडिया कंपनियों के साथ पार्टनरशिप करने और उन्हें भुगतान करने की बात माननी पड़ी।
भारत
फिलहाल भारत में भुगतान से जुड़ा नियम नहीं
बीते दिनों भारत सरकार ने कन्फर्म किया है कि इस तरह का कोई नियम भारत में लाने और फेसबुक-गूगल से स्थानीय पब्लिशर्स को भुगतान करने के लिए कहने की कोई योजना नहीं है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सरकार से पूछा था कि क्या सरकार ऑस्ट्रेलिया जैसा कोई कानून भारत में लाने पर विचार कर रही है, जिसके साथ फेसबुक और गूगल को न्यूज कंटेंट के लिए भुगतान करना पड़े।
जवाब में सरकार ने ऐसी संभावनाओं से इनकार किया है।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस
अगर आप समाचार कंपनियों की विज्ञापन के चलते होने वाली कमाई को प्रभावित नहीं करना चाहते तो इंटरनेट ब्राउजर में ऐड ब्लॉकर एक्सटेंशन का इस्तेमाल ना करें। आप समाचार कंपनियों का प्रीमियम पेड सब्सक्रिप्शन भी ले सकते हैं।