NMMS के कारण मनरेगा में आ रहीं तमाम दिक्कतें, मजदूरों की मेहनत जा रही बेकार
इस साल के बजट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए कम बजट आंवटित किया गया है और पीपल्स एक्शन फॉर एंप्लॉयमेंट गारंटी (PAEG) और नरेगा संघर्ष मोर्चा ने इसका विरोध किया है। संगठनों ने कहा कि केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए पर्याप्त फंड देने की जगह बेवजह की तकनीकी छेड़छाड़ का सहारा लिया। उन्होंने कहा कि श्रमिकों की उपस्थिति के लिए राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (NMMS) एप्लिकेशन एक ऐसा ही श्रमिक विरोधी हस्तक्षेप है।
डिजिटलीकरण के चलते मनरेगा का प्राथमिक उद्देश्य हुआ प्रभावित
संस्थाओं और संगठनों का आरोप है कि डिजिटलीकरण और भ्रष्टाचार को खत्म करने के प्रयासों के चलते मनरेगा अपने प्राथमिक उद्देश्य से भटक गया है और इसकी बड़ी वजह NMMS है। बताया जा रहा है कि शुरुआती टेस्टिंग के बाद इस ऐप के प्रभावों का मूल्यांकन किए बिना ही ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1 जनवरी से श्रमिकों की उपस्थिति के लिए NMMS के उपयोग को अनिवार्य कर दिया था।
NMMS ऐप से हो रही हैं ये मुश्किलें
NMMS ऐप के साथ ही काफी कुछ बदल गया है। इसमें टाइम-स्टैंप और जियोटैग के साथ मजदूरों की 2 तस्वीरों को काम के तारीख वाले दिन अपलोड किया जाना अनिवार्य है। पहला समय सुबह 6 से 11 बजे के बीच शेड्यूल है और दूसरा दोपहर 2 से 6 बजे के दौरान का समय है। अब इस काम में कई बार तकनीकी दिक्कत आती है और मजदूरों की एक दिन की आय और काम बर्बाद चला जाता है।
ऐप के जरिए उपस्थिति दर्ज करने में आ रही दिक्कत
101 रिपोर्टर्स ने कुछ पीड़ितों के हवाले से बताया कि मजदूरों को काम का भुगतान तभी मिलेगा जब एक दिन में 2 बार उपस्थिति दर्ज होगी। अब तकनीकी दिक्कत से यदि एक बार की भी उपस्थिति ऐप में नहीं दर्ज हो पा रही है तो उस दिन की मजदूरी भी नहीं मिलेगी और सालभर में 100 दिन मिलने वाले काम में एक दिन का काम भी घट जाता है।
आधार आधारित भुगतान प्रणाली से भी हो रही है मुश्किल
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को भी अनिवार्य कर दिया है। इसका मतलब बैंक खातों और जॉब कार्ड दोनों को आधार कार्ड से जोड़ना है। समस्या तब होती है जब मनरेगा वेबसाइट आधार लिंकेज के आधार पर काम तलाश करने वालों की पहचान करने और उन्हें रिजेक्ट करने के लिए एक ऑटोमैटिक प्रक्रिया का उपयोग करती है। ये कभी-कभी उन लोगों को रिजेक्ट कर देती है, जिनके खाते पहले से ही आधार से जुड़े हुए हैं।
सरपंच ने मनरेगा को बताया तकनीकी रूप से आत्मघाती कार्यक्रम
101 रिपोर्टर्स ने पद्मपुर ब्लॉक के पूर्व अध्यक्ष कैलाश क्रास्का के हवाले से बताया कि इन तकनीकी कमियों के चलते लोग काम पाने और मजदूरी पाने के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इसके लिए श्रमिकों के पास कोई उपाय नहीं है। अखुसिंगी के नायब सरपंच देवासीस महापात्रा ने रिपोर्टर्स को बताया कि मनरेगा अब जन-उन्मुख योजना नहीं है और यह तकनीकी रूप से आत्मघाती कार्यक्रम है। तकनीक के चलते मजदूरों को भुगतान में दिक्कतें आ रही हैं।
प्रोफेसर ने NMMS को बताया अनावश्यक हस्ताक्षेप
रिपोर्ट में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर राजेंद्रन नारायणन ने कहा, "महामारी और लॉकडाउन के दौरान मनरेगा की जो क्षमता देखने को मिली, उसमें और सुधार की बजाय सरकार इसे खत्म कर रही है। NMMS एक अनावश्यक हस्तक्षेप है। इसके जरिए मजदूरों को हतोत्साहित किया जा रहा है।" बता दें कि मनरेगा के बजट को 2023-24 में घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2022-23 में ये 73,000 करोड़, वहीं 2021-22 में 98,000 करोड़ रुपये था।