एक साल में दोगुनी हुई भाजपा की आय, कांग्रेस की आमदनी भी 361 प्रतिशत बढ़ी
क्या है खबर?
पिछले एक साल में भाजपा की आय बढ़कर दोगुनी से अधिक हो गई है।
2017-18 में जहां उसकी आय 1,027 करोड़ रुपये थी, वहीं 2018-19 में ये 134 प्रतिशत बढ़ कर 2,410 करोड़ रुपये हो गई।
इसका लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा चुनावी बॉन्ड के जरिए आया, जिसकी पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
इस दौरान कांग्रेस की आय भी चार गुना बढ़ी। हालांकि कांग्रेस की आय भाजपा की आय के आधे से भी कम है।
ऑडिट रिपोर्ट
भाजपा को चुनावी बॉन्ड से मिले 1,450 करोड़ रुपये
राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग को सौंपी गईं उनकी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में ये आंकड़े सामने आए हैं।
भाजपा की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में उसकी 2,410 करोड़ रुपये की आमदनी में से 1,450 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए आए।
ये भाजपा की कुल आय का लगभग 60 प्रतिशत है।
2017-18 में भाजपा को चुनावी बॉन्ड के जरिए 210 करोड़ रुपये मिले थे, यानि चुनावी बॉन्ड के जरिए हुई उसकी आय में लगभग छह गुना इजाफा हुआ।
खर्च
भाजपा के खर्च में भी हुआ 32 प्रतिशत इजाफा
अगर खर्च की बात करें तो 2018-19 में भाजपा ने 1,005 करोड़ रुपये खर्च किए जो 2017-18 में 758 करोड़ रुपये के खर्च से 32 प्रतिशत अधिक है।
ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा ने 2018-19 में 792.4 करोड़ रुपये चुनावी और आम प्रोपगैंडा पर खर्च किए। वहीं 2017-18 में उसने 567 करोड़ रुपये चुनावी और आम प्रोपगैंडा पर खर्च किए थे।
बता दें कि भाजपा को सभी राजनीतिक पार्टियों में सबसे अधिक चंदा मिलता है।
कांग्रेस आय
कांग्रेस की आय में 361 प्रतिशत का इजाफा
वहीं अगर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की बात करें तो 2018-19 में उसकी आय 918 करोड़ रुपये रही।
इससे पहले 2017-18 में उसकी आय मात्र 199 करोड़ रुपये थी, यानि एक साल में उसकी आय में 361 प्रतिशत का इजाफा हुआ।
चुनावी बॉन्ड के जरिए उसकी 383 करोड़ रुपये की आय हुई जो कुल आय की लगभग 48 प्रतिशत है। 2017-18 में उसे मात्र पांच करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त हुए थे।
चुनावी बॉन्ड
क्या होते हैं चुनावी बॉन्ड?
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है और इन पर नोटों की तरह कीमत छपी होती है।
चुनावी बॉन्ड्स एक हजार, दस हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के मल्टीपल्स में खरीदे जा सकते हैं और ये ब्याज मुक्त होते हैं।
कोेई भी व्यक्ति या कंपनी ये चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है और उसे 15 दिन के अंदर इसे अपनी मनपसंद राजनीतिक पार्टी को देना होता है।
जानकारी
क्यों है चुनावी बॉन्ड पर विवाद?
चुनावी बॉन्ड की पूरी प्रक्रिया में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी केवल बैंक के पास होती है और राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे की जानकारी देने की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती हैं। इससे पारदर्शिता घटेगी और राजनीति में कालेधन के उपयोग की संभावना बढ़ जाएगी।