फसलों से जुड़े हैं सर्दियों में मनाए जाने वाले ये प्रसिद्ध भारतीय त्योहार
नए साल में फसल की पहली पैदावार किसानों के लिए खुशियां और उम्मीदें लेकर आती है, इसलिए इसके आसपास कई त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी और माघ बिहू जैसे त्योहार शामिल हैं, जिन्हें भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है। आइए आज हम आपको सर्दियों के दौरान आने वाले फसल उत्सवों के बारे में बताते हैं।
लोहड़ी (14 जनवरी)
लोहड़ी सर्दियों में बोई जाने वाली रबी फसलों की कटाई से जुड़ा त्योहार है। इसी वजह से लोहड़ी के अलाव में किसान रबी फसल डालते हैं। इस तरह से देवताओं को फसलों का भोग लगाया जाता है और धन, समृद्धि के साथ-साथ फसलों की अच्छी उपज के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है। इसके अतिरिक्त इस अवसर पर अनुष्ठान के तौर पर आग के चक्कर लगाते हुए उसमें रेवड़ी, मूंगफली, फुल्ले और गजक भी डाली जाती हैं।
मकर संक्रांति (15 जनवरी)
लोहड़ी के ठीक बाद मकर संक्रांति आती है और इसे भी फसल उत्सव माना जाता है। आमतौर पर मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को पड़ती है, लेकिन लीप वर्ष में यह 15 जनवरी को पड़ती है और 2024 लीप वर्ष ही है। यह सर्दियों के अंत और सूर्य के उत्तर की ओर बढ़ने के साथ लंबे दिनों की शुरूआत का प्रतीक है। इसे कुछ लोग फसल उत्सव भी कहते हैं क्योंकि इसमें लोग नई उपज की पूजा करते हैं।
पोंगल (15 से 18 जनवरी)
जिस तरह उत्तर भारत में मकर संक्रांति मनाई जाती है, वैसे ही दक्षिण भारत में पोंगल का त्योहार मनाया जाता है। यह 4 दिवसीय फसल उत्सव तमिल महीने थाई के साथ मेल खाता है। त्योहार के दौरान भरपूर पैदावार के लिए आभार व्यक्त करने के लिए फसल को देवताओं को चढ़ाया जाता है। इस त्योहार के पहले दिन को भोगी पोंगल, दूसरे दिन को सूर्य पोंगल, तीसरे दिन को मट्टू पोंगल और चौथे दिन को कन्नुम पोंगल कहा जाता है।
माघ बिहू (16 जनवरी)
द्रिक पंचांग के अनुसार, माघ बिहू 16 जनवरी से शुरू हो रहा है। यह फसल उत्सव असम में मनाया जाता है। यह त्योहार इलाके में कटाई के मौसम के अंत का प्रतीक है और एक हफ्ते तक चलता है। माघ बिहू में पहले दिन उरुका मनाया जाता है। मेजी बनाना इस त्योहार की प्रमुख रिवाज है और इसके लिए बांस, घास-फूस और स्थानीय कच्चे माल का उपयोग किया जाता है। त्योहार में मेजी को जलाया भी जाता है।