आयुध पूजा: जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्योहार, इसका महत्व और अन्य महत्वपूर्ण बातें
आयुध पूजा को अस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है और यह दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले औजारों और उपकरणों की पूजा से जुड़ा है। यह त्योहार नवरात्रि के नौवें दिन मनाया जाता है, जो कल यानी 23 अक्टूबर को है। इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। इस दिन विभिन्न अनुष्ठान होते हैं, जो सूर्योदय से शुरू होकर पूरे दिन चलते हैं। आइए आज हम आपको इस त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
आयुध पूजा की तिथि और शुभ मुहूर्त
आयुध पूजा में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को एकत्र करके उन्हें पूजा जाता है। नवमी तिथि 22 अक्टूबर को शाम 07:58 बजे से शरू होकर 23 अक्टूबर की शाम 05:44 बजे है, जबकि आयुध पूजा का विजय मुहूर्त दोपहर 01:58 बजे से लेकर दोपहर 02:43 बजे तक है। इसके अगले दिन दशहरा है, जो कि अबूझ मुहूर्त में मनाया जाता है। इसमें बिना किसी मुहूर्त के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
आयुध पूजा क्यों मनाया जाता है?
एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसके लिए देवी दुर्गा ने 9 दिनों की लड़ाई के दौरान कई देवताओं के कौशल और क्षमताओं का उपयोग किया और नवमी की पूर्व संध्या पर उन्हें जीत मिली। इस दिन को महानवमी के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में उनके द्वारा उपयोग किए गए औजारों के प्रति सम्मान दिखाने के लिए आयुध पूजा अनुष्ठान किया जाता है।
इस त्योहार का महत्व
आयुध पूजा केवल औजारों के बारे में नहीं है, बल्कि दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसे सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। वहां इसके अनुष्ठान का सार उपकरणों को उपयोग करने से पहले देवी को अर्पित करना और उनका आशीर्वाद लेना है। ऐसा माना जाता है कि यह कार्य व्यक्ति के काम और प्रयासों में सफलता और समृद्धि लाता है।
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार?
आयुध पूजा के लिए देवी-देवताओं, वस्तुओं और वाहनों को चंदन के लेप और सिंदूर से सजाया जाता है। देवी सरस्वती और लक्ष्मी की प्रतिमाओं को लाल और सफेद साड़ी पहनाई जाती है। साथ ही प्रतिमाओं को सजाने के लिए ताजे फूलों का उपयोग किया जाता है और देवी-देवताओं के सामने लेखन सामग्री, किताबें और लैपटॉप रखे जाते हैं। इस पूजा में प्रसाद के रूप में मुरमुरे, गुड़, मूंगफली के साथ-साथ फल, सफेद कद्दू और स्नैक्स भी चढ़ाए जाते हैं।