जानिए रोते हुए शिशु को कैसे शांत कराया जा सकता है
जब एक महिला किसी नन्ही सी जान को दुनिया में लाती है तो वह अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए अपनी मां पर निर्भर होता है। बच्चों को बोलना सीखने में एक से दो साल लग सकते हैं और इस दौरान वह अन्य दूसरे तरीकों से खुद को अभिव्यक्त करते हैं। इन तरीकों में शामिल है रोना। चलिए फिर जानते हैं शिशुओं के रोने के कारण और उन्हें शांत कराने के तरीके।
भूख लगना
शिशु सबसे अधिक भूख लगने पर रोते हैं। दरअसल, शिशुओं का पेट ज्यादा समय तक आहार को संग्रह करके नहीं रख सकता है और वह जल्द खाली हो जाता है। अगर आप शिशु को स्तनपान कराती हैं तो उसे फिर से दूध पिलाकर देखें। लेकिन अगर आप शिशु को फॉर्मूला दूध पिलाती हैं तो दूध पिलाने के दो घंटे बाद तक शिशु को और दूध पिलाने की जरुरत नहीं पड़ती।
डायपर से असहज महसूस करना
आजकल कई माता-पिता अपने शिशु के जन्म से ही उसे डायपर पहनाने लगते हैं जो कि उनके लिए सही नहीं है क्योंकि कई बार डायपर के कारण शिशु असहज महसूस करने लग जाता है और रूक-रूककर रोने लगता है। इसलिए कम से कम एक या दो सप्ताह तक शिशु को डायपर न पहनाएं। इसके अलावा जब आप उसका लंगोट बदलने लगे तो उस समय कोई गाना गाकर या खिलौना दिखाकर अपने शिशु का ध्यान बंटाएं ताकि वह रोए नहीं।
अत्यधिक गर्मी या सर्दी महसूस होना
शिशु अपने शरीर का तापमान आसानी से नियंत्रित नहीं कर सकता, इसलिए गर्मी या सर्दी लगने पर वह रोना शुरू कर देता है। हालांकि इसका पता आप शिशु के पेट, हाथ या पैरों से हाथ लगाकर लगाया जा सकता है। अगर शिशु का शरीर ज्यादा गर्म लगे तो समझ जाइए कि वह गर्मी लगने के कारण रो रहा है। वहीं अगर शरीर ठंडा लगे तो उसे सर्दी लग रही है। इन परिस्थितियों के हिसाब से बच्चे की देखभाल करें।
तबियत खराब होना
अगर शिशु की तबियत ठीक न हो तो वह अपने सामान्य से अलग स्वर में रोएगा। यह स्वर कमजोर, अधिक आग्रहपूर्ण, लगातार या फिर ऊंचा हो सकता है। ऐसे में शिशु के डॉक्टर से संपर्क करें या जांच के लिए किसी निजी अस्पताल में ले जाएं क्योंकि शिशु का शुरूआती दिनों में बीमार पड़ना उसके लिए घातक हो सकता है। इसलिए शिशु की तबियत थोड़ी सी भी खराब होने पर उसका डॉक्टरी इलाज कराएं।