नये संसद भवन के शिलान्यास के बीच योजना पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को देश के नए संसद भवन की आधारशिला रख दी है। इस मौके पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि देश में भारतीयता के विचारों के साथ नई संसद का निर्माण होने जा रहा है। देश जब आजादी के 75वें साल का जश्न मनाएगा, तब संसद की इमारत उसकी प्रेरणा होगी। हालांकि, इस योजना पर कई सवाल उठ रहे हैं और इस पर काम अभी शुरू नहीं हो सकेगा क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद हुआ शिलान्यास
देश की नई संसद के निर्माण को लेकर कई आपत्तियां जताई जा रही है। साथ ही इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी दायर हैं, जिन पर सुनवाई चल रही है। पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सिर्फ इमारत के शिलान्यास की मंजूरी दी थी। कोर्ट ने सरकार के परियोजना शुरू करने के तरीके पर नाराजगी जताते हुए मामले से जुड़ी याचिकाओं पर अंतिम फैसला आने तक किसी भी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी।
सेंट्रल विस्टा है पूरे प्रोजेक्ट का नाम
नए संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय समेत कई नई इमारतों के निर्माण के इस पूरे प्रोजेक्ट को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के नाम से जाना जा रहा है। इसमें राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच नए संसद भवन समेत 10 इमारतों का निर्माण किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में दायर है कई याचिकाएं
इस प्रोजेक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हैं। बीबीसी के अनुसार, इनमें से एक याचिका वकील राजीव सूरी की है, जिसमें उन्होंने इमारतों के निर्माण और जमीन के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने अपनी याचिका में जमीन के इस्तेमाल को लेकर किए गए कई बदलावों पर आपत्ति दर्ज करते हुए अधिकारियों पर सवाल उठाए हैं। बाकी याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी है कि संसद भवन के पास निर्माण कार्यों पर रोक लगी हुई है।
पर्यावरण संबंधी आपत्तियों को लेकर भी दायर है याचिका
अन्य याचिकाओं में सेंट्रल विस्टा कमेटी की तरफ से जारी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट करने और पर्यावरण संबंधी सवालों पर मंजूरी देने से जुड़ी आपत्तियां जताई गई हैं। एक याचिकाकर्ता का कहना है कि नए संसद भवन की इमारत के निर्माण को उचित ठहराने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है। साथ ही यह भी साबित नहीं किया गया है कि मौजूदा संसद भवन की इमारत में ऐसी क्या खामी है, जिसके चलते उसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
"सरकार को फैसला लेने में पारदर्शिता बरतनी चाहिए थी"
एक याचिकाकर्ता के वकील श्याम दीवान कहते हैं कि सरकार को यह फैसला लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता बरतनी चाहिए थी। साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ राय-मशविरा करना चाहिए था, जो नहीं किया गया।
सरकार फैसले को कैसे सही ठहरा रही है?
वहीं सरकार नई परियोजना के बचाव में कह रही है कि मौजूदा संसद की इमारत लगभग 100 साल पुरानी है और इससे सुरक्षा संबंधी चिंताएं उभर रही हैं। मौजूदा इमारत न तो भूकंपरोधी है और इसमें आग से बचाव के प्रबंध कमजोर हैं। वहीं मेहता ने विशेषज्ञों के साथ राय-मशविरा न करने के आरोपों का खंडन करते हुए दलील दी कि योजना से पहले विचार-विमर्श किया गया है और इसके व्यावहारिक पक्ष को भी ध्यान में रखा गया है।
2024 तक पूरा होगा प्रोजेक्ट
मेहता ने कहा कि सेंट्रल विस्टा बनने के बाद हर साल खर्च होने वाले 1,000 करोड़ रुपये की बचत होगी और सभी मंत्रालयों के साथ आने से कामकाज में भी सुधार होगा। बता दें कि पूरा प्रोजेक्ट 2024 तक पूरा होने का अनुमान है।