#NewsBytesExplainer: भाषाओं को मिलने वाला 'शास्त्रीय' दर्जा क्या है और इसके क्या लाभ हैं?
केंद्र सरकार ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है और यह प्रधानमंत्री मोदी के सभी भारतीय भाषाओं और समृद्ध विरासत पर गर्व करने के दर्शन के अनुरूप है। आइए शास्त्रीय भाषाओं के बारे में जानते हैं
क्या होती हैं शास्त्रीय भाषाएं?
शास्त्रीय भाषाएं स्वतंत्र परंपराओं और समृद्ध साहित्यिक इतिहास वाली प्राचीन भाषाएं हैं, जो विभिन्न साहित्यिक शैलियों और दार्शनिक ग्रंथों को प्रभावित करती हैं। इन भाषाओं का लिखित साहित्य का एक बड़ा और प्राचीन संग्रह होता है। आमतौर पर ये ऐसी भाषाएं होती हैं, जिसे विशेष सांस्कृतिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण उच्च स्तर का माना जाता है। इन भाषाओं में विशेष पुराने लेखन की समृद्धि और शैली होती है।
किसी भाषा को कैसे मिलता है शास्त्रीय भाषा का दर्जा?
फरवरी, 2014 में संस्कृति मंत्रालय ने किसी भाषा को 'शास्त्रीय' घोषित करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे। इसके मुताबिक, भाषा के प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1,500 से 2,000 साल से अधिक पुराना हो। भाषा प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक हिस्सा हो, जिसे बोलने वाले लोगों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता हो। भाषा की साहित्यिक परंपरा मौलिक और अद्वितीय हो और किसी अन्य भाषा से नहीं ली गई होनी चाहिए।
कब शुरू हुई थी भाषाओं को दर्जा देने की पहल?
केंद्र सरकार ने 2004 में इस पहल की शुरुआत की थी और सबसे पहले तमिल भाषा को यह दर्जा मिला था। 2005 में सरकार ने संस्कृत को भारत की शास्त्रीय भाषा घोषित किया। इसके बाद 2008 में कन्नड़ और तेलुगु को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला। 2013 में मलयालम को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और 2014 में ओडिया को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। अब 5 और भाषाओं को इस श्रेणी में रखा गया है।
भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा मिलने के क्या फायदे हैं?
इन भाषाओं के ऐतिहासिक महत्व को मान्यता दी जाती है और बढ़ावा दिया जाता है, ताकि सांस्कृतिक पहचान कायम रहे। शास्त्रीय भाषाओं को अपने राज्यों में आधिकारिक मान्यता मिलती है। सरकार शास्त्रीय भाषाओं से संबंधित शोध और प्रचार के लिए अनुदान देती है। इन भाषाओं को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है। शास्त्रीय भाषाओं के विद्वानों को फेलोशिप और स्कॉलरशिप मिलती है। शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
शास्त्रीय भाषाओं को मिलते हैं ये फायदे
शास्त्रीय भाषाओं में प्रख्यात विद्वानों के लिये 2 प्रमुख वार्षिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों का वितरण किया जाता है। इन भाषाओं में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की जाती है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से अनुरोध किया जाता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिये पेशेवर अध्यक्षों के कुछ पदों की घोषणा करें। इसके अलावा शास्त्रीय भाषाओं से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं से पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
जिन 5 भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा मिला, उनके बारे में जानिए
मराठी भाषा की 1,000 साल से भी पुरानी समृद्ध साहित्यिक परंपरा है। इस साहित्य में संत तुकाराम जैसे प्रमुख कवियों की रचनाएं शामिल हैं। पाली थेरवाद बौद्ध धर्म की धार्मिक भाषा मानी जाती है। इसमें पाली कैनन जैसे प्राचीन ग्रंथ शामिल हैं। प्राकृत भाषा में विशेष रूप से जैन ग्रंथों और नाटकों को लिखा गया। असमिया में भूपेन हजारिका और लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ जैसे कवियों की रचनाएं हैं। बंगाली भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है।
प्रधानमंत्री ने जताई खुशी
फैसले पर प्रधानमंत्री मोदी ने खुशी जताते हुए कहा, 'हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को संजोती है और उसका जश्न मनाती है। हम क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता में भी अडिग रहे हैं। मुझे बेहद खुशी है कि कैबिनेट ने असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा देने का फैसला लिया है। ये सभी खूबसूरत भाषाएं हैं, जो हमारी जीवंत विविधता को उजागर करती हैं। सभी को बधाई।'