उत्तर प्रदेश सरकार का दावा- चुनावी ड्यूटी पर केवल तीन शिक्षक कोरोना संक्रमण से मरे
उत्तर प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि हाल ही में हुए पंचायत चुनाव के दौरान महज तीन शिक्षकों की ड्यूटी के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हुई। इसके लिए उसने राज्य चुनाव आयोग के नियमों का हवाला दिया है। सरकार का यह दावा राज्य के प्रमुख शिक्षक संगठनों के दावों के बिल्कुल उलट है जो चुनावी ड्यूटी के दौरान 1,600 से अधिक शिक्षको के कोरोना संक्रमण से मरने की बात कह चुके हैं।
सरकार ने क्या कहा?
राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग ने मंगलवार को अपने बयान में कहा कि राज्य चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार अगर किसी शिक्षक की मृत्यु घर से चुनावी ड्यूटी के लिए निकलने के बाद और वापस घर पहुंचने से पहले होती है, तभी उसे ड्यूटी पर हुई मौत माना जाएगा। उसने कहा है कि इस परिभाषा के तहत राज्य में केवल तीन शिक्षकों की चुनावी ड्यूटी के दौरान मौत हुई है और केवल उनके परिजनों को मुआवजा दिया जाएगा।
शिक्षक संगठन ने कहा- सरकार का दावा असंवेदनशील और दुर्भाग्यपूर्ण
सरकार की इस परिभाषा का मतलब हुआ कि जो शिक्षक चुनावी ड्यूटी के दौरान कोरोना से संक्रमित हुए और बाद में घर जाकर उनकी मौत हुई, उन्हें ड्यूटी पर हुई मौत नहीं माना जाएगा। राज्य के प्रमुख शिक्षक संगठनों में शामिल उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा संघ के अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने मामले पर कहा, "सरकार का दावा बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण, गैर-जिम्मेदाराना और असंवेदनशील है। हम अपने शिक्षकों को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और सड़कों पर उतरेंगे।"
शिक्षा संघ ने रविवार को ही लिखा था मुख्यमंत्री को पत्र
बता दें कि शिक्षा संघ ने रविवार को ही मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखते हुए 1,621 शिक्षकों और शिक्षामित्रों की चुनावी ड्यूटी के दौरान या इसके बाद कोरोना संक्रमण से मौत की बात कही थी। संघ ने महामारी के दौरान पंचायत चुनाव कराने के राज्य सरकार के फैसले पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि उसने सरकार से लगातार चुनावों और मतगणना को टालने की अपील की थी।
संघ ने की थी 1 करोड़ रुपये मुआवजा देने की मांग
संघ ने मुख्यमंत्री से कोरोना संक्रमण से मरे शिक्षकों के परिजनों को 1-1 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मांग भी की थी। उसने इसके लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी का हवाला दिया था कि जिसमें उसने 30 लाख रुपये के मुआवजे को बहुत कम बताया था। हालांकि सरकार ने उनकी यह बात नहीं मानी और जिन तीन शिक्षकों के चुनावी ड्यूटी पर मरने की बात स्वीकारी है, उनके परिजनों को 30 लाख रुपये ही दिए जाएंगे।