
राष्ट्रपति मुर्मू ने बीआर गवई को नियुक्त किया अगला मुख्य न्यायाधीश, 14 मई को संभालेंगे कार्यभार
क्या है खबर?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को 14 मई, 2025 से भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्ती की मंजूरी दे दी है।
मौजूदा CJI संजीव खन्ना ने अगले CJI के लिए जस्टिस गवई के नाम की सिफारिश कानून मंत्रालय को भेजी थी, जिसे 16 मई को मंजूरी मिल गई थी।
अब राष्ट्रपति ने भी उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी है और वह 14 मई को शपथ ग्रहण के बाद पदभार संभालेंगे।
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कानून मंत्री ने सोशल मीडिया के जरिए दी जानकारी
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया के जरिए राष्ट्रपति द्वारा गवई की नियुक्ति को मंजूरी दिए जाने की जानकारी दी है।
उन्होंने एक्स पर लिखा, 'भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को 14 मई, 2025 से भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करते हुए प्रसन्नता हो रही है।'
बता दें कि मौजूदा CJI खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होंगे।
दलित
देश के दूसरे दलित CJI होंगे जस्टिस गवई
जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित CJI बनने जा रहे हैं। उनसे पहले अनुसूचित जाति के जस्टिस केजी बालाकृष्णन भी CJI रह चुके हैं।
केरल से आने वाले बालाकृष्णन जनवरी, 2007 से मई, 2010 तक CJI रहे थे। जस्टिस गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था।
इससे पहले वे बॉम्बे हाई कोर्ट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनका कार्यकाल 23 नवंबर, 2025 तक का होगा।
परिचय
कौन हैं जस्टिस गवई?
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वे बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल आरएस गवई के बेटे हैं।
उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की। वे 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करते रहे। उन्हें 1992 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में महाराष्ट्र सरकार का सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।
जस्टिस गवई 2003 में हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश और 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने।
फैसले
जस्टिस गवई के कुछ अहम फैसले
जस्टिस गवई अपने कार्यकाल के दौरान 600 से ज्यादा फैसले सुना चुके हैं और 200 से ज्यादा पीठों का हिस्सा रहे हैं।
उन्होंने बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ कहा था कि केवल अपराध में आरोपी/दोषी होने पर संपत्तियों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता।
वे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में कोटे के भीतर कोटा, अनुच्छेद 370, दिल्ली शराब नीति मामला, चुनावी बॉन्ड और नोटबंदी जैसे अहम फैसले सुनाना वाली पीठ का भी हिस्सा थे।