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    मनरेगा में सुधार के लिए सरकार ने बनाई समिति, तीन महीनों में देगी रिपोर्ट

    मनरेगा में सुधार के लिए सरकार ने बनाई समिति, तीन महीनों में देगी रिपोर्ट
    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 26, 2022, 08:58 am 1 मिनट में पढ़ें
    मनरेगा में सुधार के लिए सरकार ने बनाई समिति, तीन महीनों में देगी रिपोर्ट
    केंद्र सरकार ने मनरेगा में सुधार के लिए बनाई समिति

    केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना में सुधार के लिए एक समिति का गठन किया है। यह समिति गरीबी उन्मूलन के साधन के तौर पर इस योजना की प्रभावकारिता को परखेगी। पूर्व ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा की अध्यक्षता वाली इस समिति की पहली बैठक 21 नवंबर को हुई थी इसे अपने सुझाव देने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। इस हिसाब से यह समिति फरवरी में पेश होने वाले बजट से पहले अपनी रिपोर्ट सौंप देगी।

    पहले मनरेगा के बारे में जानिये

    मनरेगा का पूरा नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) है। दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में से एक मनरेगा का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में हर साल कम से कम 100 दिन तक रोजगार प्रदान करना है। इसे 2006 में लाया गया था और फिलहाल 15 करोड़ से अधिक श्रमिक इस योजना के तहत पंजीकृत हैं। लॉकडाउन के दौरान शहरों से लौटे ग्रामीण लोगों को बड़ी संख्या में मनरेगा से रोजगार मिला था।

    सिन्हा समिति को क्या-क्या काम दिए गए हैं?

    सिन्हा समिति को मनरेगा काम के पीछे की मांग, खर्च के तरीके, अलग-अलग राज्यों में मांग में अंतर और योजना की शुरुआत के बाद से रोजगार मुहैया कराने की बढ़ी लागत की समीक्षा करने को कहा गया है। साथ ही यह समिति सुझाव देगी कि इस योजना को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए क्या बदलाव किए जा सकते हैं। समिति को गरीब इलाकों में इस योजना को बेहतर तरीके से लागू करने की सिफारिशें भी सौंपनी होंगी।

    मूल ढांचे में नहीं होगा बदलाव- बयान

    द हिंदू के अनुसार, एक अधिकारी ने बताया कि इस योजना को ग्रामीण इलाकों में गरीबी उन्मूलन के साधन के तौर पर लाया गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य, जहां गरीबी का स्तर ज्यादा है, वहां इस योजना का उचित फायदा नहीं लिया गया है। एक और अधिकारी ने बताया कि योजना के मूल ढांचे में बदलाव होने की संभावना न के बराबर है क्योंकि इसमें बड़े बदलाव के लिए संसद से मंजूरी लेनी होती है।

    समिति का क्या कहना है?

    समिति के एक सदस्य ने कहा कि इस तरह की योजनाओं में अकसर बड़ा अंतर देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर बिहार में गरीबी का स्तर अधिक है, लेकिन यहां इस योजना में पर्याप्त काम नहीं लिया जा रहा। वहीं दूसरी तरफ आर्थिक रूप से अधिक सक्षम केरल इस योजना का बेहतर इस्तेमाल कर रहा है। उन्होंने कहा कि बिहार को मनरेगा की ज्यादा जरूरत है, लेकिन केरल को भी पैसे के लिए मना नहीं किया जा सकता।

    इस कारण होती है मनरेगा की आलोचना

    आलोचका का कहना है कि मनरेगा के जरिये श्रमिकों से ऐसा काम नहीं लिया जाता है, जिससे संपत्ति का निर्माण हो सके। अब यह समिति यह भी देखेगी कि क्या इस योजना के तहत होने वाले काम में बदलाव की जरूरत है। बता दें कि इस साल योजना के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, जिनमें से लगभग 60,000 करोड़ खर्च हो चुके हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने केंद्र सरकार से और 25,000 करोड़ की मांग की है।

    महामारी के दौरान मनरेगा ने दिया बड़ा सहारा

    तमाम आलोचनाओं के बावजूद कोरोना महामारी के दौरान इस योजना ने सुरक्षा कवच के तौर पर काम किया। शहरों से वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिला और उनकी आजीविका चली।

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