प्रोफेसर साईबाबा की मौत पर NGO का आरोप, कहा- लंबा कारावास और अपर्याप्त देखभाल बनी कारण
नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप में 10 साल जेल में रहने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (50) की शनिवार को हैदराबाद के निजी अस्पताल में ऑपरेशन के बाद की जटिलताओं के कारण मौत हो गई। अब उनकी मौत को लेकर गैर सरकारी संगठन (NGO) राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच (NPRD) ने गंभीर आरोप लगाए हैं। NPRD का कहना है कि साईबाबा की असामयिक मौत लंबे समय तक कारावास और अपर्याप्त चिकित्सा देखभाल के कारण हुई है।
कारावास के दौरान बिगड़ी साईबाबा की तबीयत- NPRD
NPRD ने कहा कि 10 साल की कैद में साईबाबा को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा। जेल में रहने के दौरान उनकी रीढ़ की हड्डी और तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएं बढ़ गई थी। NPRD के अनुसार, गिरफ्तारी के दौरान लगी चोटों से उनका एक हाथ काम करना बंद कर चुका था। वह अग्नाशयशोथ और पित्ताशय की पथरी से पीड़ित थे, लेकिन बार-बार अनुरोध के बावजूद उनकी आवश्यक सर्जरी नहीं कराई गई।
NPRD ने की आपराधिक न्याय प्रणाली की आलोचना
NPRD ने आपराधिक न्याय प्रणाली की आलोचना करते हुए साईबाबा के मामले की तुलना फादर स्टेन स्वामी के मामले से की है, जिनकी भी हिरासत में मृत्यु हो गई थी। संगठन ने पहले भी जेल में साईबाबा के साथ किए गए व्यवहार के खिलाफ विरोध जताया था और इसे उनके अधिकारों का उल्लंघन बताया था। NPRD के अनुसार, उचित आवास और उपचार का अभाव विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों और घरेलू कानूनों का उल्लंघन है।
साईबाबा ने नक्सलियों से संबंध के आरोप में 10 साल जेल में बिताए
साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कालेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। महाराष्ट्र पुलिस ने नक्सलियों से संबंध के आरोप में उन्हें 2014 में गिरफ्तार किया था। उसके बाद उन्हें कालेज ने निलंबित कर दिया था। वह इस मामले में 10 साल तक नागपुर के केंद्रीय कारागार में रहे, लेकिन अभियोजन उनके खिलाफ मामला साबित करने में विफल रहा। इसके बाद मार्च 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उनको बरी कर दिया था।