मुंबई: 2017-18 में ड्रग्स के मामलों में से 97 प्रतिशत इन्हें रखने से जुड़े थे- अध्ययन
साल 2017 और 2018 में मुंबई की अदालतों में आए ड्रग्स से जुड़े 97 प्रतिशत मामले निजी इस्तेमाल के लिए इन्हें रखने से जुड़े थे। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा गिरफ्तार की गईं बॉलीवुड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती पर भी ऐसे ही आरोप हैं। विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के एक अध्ययन में सामने आया है कि मुंबई में ड्रग्स लेने के आरोप और जुर्म में हुईं कुल गिरफ्तारियों और सजाओं में से 87 प्रतिशत गांजा पीने से जुड़ी हुई थीं।
महाराष्ट्र में NDPS एक्ट के तहत सबसे ज्यादा मामले
साल 2017 में ड्रग्स से जुड़े कुल 12,995 मामले सामने आए थे। इनमें से 97.7 प्रतिशत निजी इस्तेमाल के लिए ड्रग्स रखने से जुड़े थे। वहीं 298 मामले ड्रग्स तस्करी से जुड़े थे, जो ज्यादा संगीन अपराध है। इसी तरह 2018 में निजी इस्तेमाल के लिए ड्रग्स रखने के 9,743 मामले, जबकि तस्करी से जुड़े 263 मामले थे। 2014 के बाद से नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टांस (NDPS) एक्ट के तहत महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं।
2014 में पांच गुना बढ़ी सजा होने की दर
इस अध्ययन के अनुसार, 2013-14 में निजी इस्तेमाल के लिए ड्रग्स रखने के मामलों में सजा होने की दर पिछले साल की तुलना में पांच गुना अधिक हो गई थी। वहीं तस्करी से जुड़े मामलों में सजा होने की दर एक समान बनी रही।
ड्रग्स रखने से ज्यादा संगीन अपराध है तस्करी
निजी इस्तेमाल के लिए ड्रग्स रखने और लेने से तस्करी को ज्यादा संगीन अपराध माना गया है। निजी इस्तेमाल के लिए 'कम मात्रा' में ड्रग्स रखने के मामलों में छह महीने से एक साल तक के जेल की सजा होती है, वहीं तस्करी के मामलों में सजा की अवधि ज्यादा होती है। 2014 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिसके तहत भारी मात्रा में तस्करी का अपराध साबित होने पर अपराधी की सपंति को जब्त करने का प्रावधान है।
दूसरी बार पकड़े जाने पर मौत की सजा का प्रावधान
अगर अपराधी दूसरी बार भी बड़ी मात्रा में ड्रग्स की तस्करी करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे मौत की सजा भी हो सकती है। दूसरी तरफ यह कानून अदालत को नशे के आदी व्यक्ति को इलाज के लिए छोड़ने का भी अधिकार देता है।
गिरफ्तारी के लिए कमजोर तबके के लोग बनते हैं निशाना- अध्ययन
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि मुंबई में गिरफ्तारी दर बढ़ाने के लिए पुलिस कमजोर तबके के लोगों को ज्यादा निशाना बनाती हैं। इन लोगों के पास कानूनी सहायता के अधिक विकल्प नहीं होते, जिस कारण इन्हें डराना और गिरफ्तार करना ज्यादा आसान होता है। अध्य्यन के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए लोगों में से अधिकतर रिक्शा चालक, कचरा उठाने वाले, मजदूर, ड्राइवर आदि दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग शामिल होते हैं।
एक दिन में निपटा दिए जाते हैं अधिकतर मामले
अध्ययन में कहा गया है कि पुलिस सजा दिलाने की दर को सुधारने के लिए गांजा पीने वाले लोगों को उठाती हैं। ऐसा अक्सर रात को किया जाता है। इसके बाद उन्हें तुरंत मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दोषी करार देने की मांग की जाती है। अपराध साबित होने पर उन्हें थोड़ी-बहुत सजा सुनाकर जुर्माना लगा दिया जाता है और यह सब महज एक दिन के भीतर होता है। ऐसे लगभग 90 प्रतिशत एक दिन में निपट जाते हैं।