सिर्फ कुछ दिन साथ रहना 'लिव-इन' संबंध के दावे के लिए नहीं है पर्याप्त- हाई कोर्ट
क्या है खबर?
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने लिव-इन संबंध के आधार पर परिवार से सुरक्षा मुहैया कराने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि केवल कुछ दिनों तक साथ रहने की खोखली दलीलें किसी के लिव-इन संबंध के दावे के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।
कोर्ट युगल की याचिका को खारिज करते हुए इस तरह की मांग करने और कोर्ट का समय खराब करने के लिए 25,000 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
प्रकरण
हरियाणा निवासी युगल ने परिवार से सुरक्षा की मांग के लिए दायर की थी याचिका
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, हरियाणा के यमुनानगर निवासी 18 वर्षीय युवती और 20 वर्षीय युवक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर परिवार से सुरक्षा दिलाने की मांग की थी।
याचिका में कहा था कि वह दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं और वयस्क होने पर शादी करेंगे। युवती के माता-पिता को इश्ते से ऐतराज है और वह उसकी शादी अपनी पसंद के युवक के करना चाहते हैं। ऐसे में युवती घर छोड़कर युवक के साथ लिव-इन में रही है।
जानकारी
युवती ने परिजनों ने लगाया आपराधिक धमकी देने का आरोप
याचिका में युवती ने परिजनों पर युवक को झूठे आपराधिक मामले में फंसाने का आरोप लगाते हुए उनसे सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की थी। युवती ने कहा था कि वह 24 नवंबर, 2021 से युवक के साथ लिव-इन संबंध में रह रही है।
सुनवाई
"कुछ समय के लिए साथ रहना लिव-इन का आधार नहीं"
मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस मनोज बजाज ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि दो वयस्क महज कुछ दिनों तक साथ रहे हैं, सिर्फ 'खोखली दलीलों' के आधार पर यह तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि दोनों वाकई लिव-इन संबंध में हैं।"
उन्होंने कहा, "इस बात को हमेशा दिमाग में रखें कि संबंध की अवधि, एक-दूसरे के प्रति कुछ तय कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन आदि ही इस संबंध को वैवाहिक संबंध के बराबर खड़ा करता है।"
खारिज
हाई कोर्ट ने युवती के दावों को किया खारिज
हाई कोर्ट ने कहा कि द्वारा व्यक्त की गई धमकी की आशंका सही नहीं लगती है। इसका कारण है कि उसके परिजनों ने अभी तक भी उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं दी है। ऐसे में भविष्य में भी उनके ऐसा कदम उठाने की संभावना कम है।
इसके बाद हाई कोर्ट ने युवती की याचिका को खारिज करते हुए इस तरह से बिना आधार के याचिका दायर करने को लेकर उस पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
टिप्पणी
हाई कोर्ट ने मामले में की यह टिप्पणी
हाई कोर्ट ने कहा कि विपरीत लिंग के दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा को भारत में मान्यता मिली है। हालांकि, समाज के कुछ वर्ग ऐसे रिश्तों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
कोर्ट ने कहा कि पिछले कुछ सालों से सामाजिक मूल्यों में बड़ा परिवर्तन आया है। युवा पूर्ण स्वतंत्रता और पसंद के साथी के साथ रहने के लिए घर और नौकरी छोड़ देते हैं और बाद में परिवार से खतरे की याचिका दायर करते हैं।
ऐतराज
केवल युवती के परिजनों को ही होता है ऐतराज- हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिकाओं में देखा जाता है कि आमतौर पर केवल लड़की के माता-पिता को ही रिश्ता अस्वीकार होता है, और उन्हे खतरा महसूस होता है। लिव इन में रहने वाले युगल में युवक के परिवार द्वारा शायद ही कभी विरोध किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की अधिकांश याचिकाओं में कार्रवाई के काल्पनिक कारण के आधार पर होती है और उनके वास्तविक खतरे का अस्तित्व नजर नहीं आता है।