92 वर्षीय वकील के सफर पर एक नजर, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लड़ा रामलला का केस
शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाए जाने का आदेश दिया। वहीं उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही एक अलग जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाएगी। विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दिया गया है, जिसका पक्ष 92 वर्षीय वकील के पारासरण ने रखा। आइए पारासरण के अब तक के सफर पर एक नजर डालते हैं।
पारासरण को विरासत में मिली वकालत और धर्म की शिक्षा
पारासरण का जन्म 9 अक्टूबर 1927 को तमिलनाडु के श्रीरंगम में हुआ था और उन्हें वकालत और धर्म की जानकारी दोनों विरासत में मिलीं। उनके पिता केशव अयंगर वकील और वैदिक विद्वान थे। उन्होंने 1949 में अपनी पत्नी सरोजा से शादी की। सरोजा की 2010 में मौत हो गई। दिलचस्प ये है कि पारासरण के तीनों बेटे, मोहन, सतीश और बालाजी, भी वकील हैं। मोहन तो 2013-14 में कुछ समय के लिए सॉलिसिटर जनरल भी रहे।
रह चुके हैं भारत के अटॉर्नी जनरल, पद्म विभूषण से सम्मानित
पारासरण ने सुप्रीम कोर्ट की अपनी प्रैक्टिस 1958 में शुरू की और आपातकाल के समय वह तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे। 1980 में उन्हें भारत का सॉलिसिटर जनरल बनाया गया और 1983-89 के बीच वह अटॉर्नी जनरल रहे। पारासरण को दो पद्म सम्मान भी मिल चुके हैं। 2003 में पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया और फिर 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा।
राम सेतु और सबरीमाला केस भी लड़े
1970 के दशक से लगभग हर सरकार का पारासरण पर भरोसा रहा है। लेकिन इस बीच उन्होंने राम सेतु मामले में सरकार के खिलाफ केस लड़ा था। उन्होंने कहा था कि वह राम सेतु का केस इसलिए लड़ रहे हैं क्योंकि ये न्यूनतम है जो वो भगवान राम के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा बहुचर्चित सबरीमाला केस में उन्होंने महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी के पक्ष में कोर्ट में दलीलें दीं।
CJI ने दिया बैठकर बहस करने का प्रस्ताव तो कहा- खड़े होकर ही बहस करूंगा
2016 से पारासरण को कोर्ट में कम ही देखा जाता है, लेकिन वह अयोध्या केस के लिए आगे आए। मामले में सुप्रीम कोर्ट की मैराथन 40 दिन सुनवाई के शुरूआत में जब मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने पारासरण से पूछा कि क्या वो बैठकर बहस करना चाहेंगे तो उन्होंने जबाव दिया कि वो खड़े होकर ही बहस करेंगे क्योंकि इसकी परंपरा रही है। ये कोर्ट की परंपरा को लेकर उनके समर्पण को दर्शाता है।
रामलला के पक्ष में दी ये मुख्य दलीलें
सुनवाई में रामलला का पक्ष रखते हुए पारासरण ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान होने के नाते जमीन अपने आप में एक स्वयंभू देवता है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में पूजा करने के लिए मूर्ति की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए उन्होंने वेदों से सूर्य भगवान आदि की पूजा का उदाहरण दिया। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन हिंदू राम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते।
कहा जाता है 'भारतीय बार का पितामह'
सुनवाई के दौरान पारासरण ने कहा था कि मरने से पहले उनकी अंतिम इच्छा इस केस को खत्म करने की है। कानून और हिंदू धर्मशास्त्रों पर उनकी पकड़ के कारण मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश उन्हें 'भारतीय बार का पितामह' कह चुके हैं।