अयोध्या फैसला: जानें कौन हैं रामलला, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने माना विवादित जमीन का मालिक
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने सालों से लंबित अयोध्या भूमि विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन पर रामलला का हक बताया है। कोर्ट ने सरकार से तीन महीनों में ट्रस्ट बनाने को कहा है जो इस जमीन पर मंदिर निर्माण की योजना बनाएगी।
वहीं मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने को कहा गया है।
आइये, जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने रामलला का हक दिया है, वह रामलला कौन हैं।
रामलला
कौन हैं रामलला?
सुप्रीम कोर्ट ने जिस रामलला को विवादित जमीन का मालिक बताया है वो कोई ट्रस्ट या संस्था नहीं बल्कि स्वयं भगवान राम के बाल स्वरुप है।
यानी सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को न्यायिक व्यक्ति मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।
हिंदू कानून में देवताओं की मूर्तियों को वैध व्यक्ति माना गया है। विवादित स्थल पर जहां राम लला की जन्मभूमि मानी जाती है, वहां रामलला एक नाबालिग रूप में थे।
घटनाक्रम
1949 में रखी गई थीं मूर्तियां
इस पूरे मामले में रामलला को भी नाबालिग और न्यायिक व्यक्ति मानते हुए उनकी तरफ से कोर्ट में ये मुकदमा विश्व हिंदू परिषद के नेता त्रिलोकी नाथ पांडे ने रखा था।
बता दें कि 1949 में 22 और 23 दिंसबर के बीच की रात को मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की मूर्तियां रखी गईं थी।
ये मूर्तियां पहले राम चबूतरे पर विराजमान थीं और इनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था।
फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी रामलला को माना था हिस्सेदार
राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थे। इस अखाड़े के साधू-संत वहां पूजा-पाठ आदि करते थे।
यह पहली बार नहीं है जब अदालत के फैसले मे रामलला को जमीन का हक सौंपा गया है।
इससे पहले 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार देते हुए इसे तीन हिस्से में बांटने का आदेश दिया था।
ये हिस्से सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच होने थे।
फैसला
आस्था के आधार पर नहीं सुनाया जा सकता फैसला- CJI
भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI रंजन गोगोई ने फैसले को पढ़ते हुए कहा कि सदियों से हिंदुओं की ये आस्था रही है कि अयोध्या में ही भगवान राम का जन्म हुआ था और इस पर कोई विवाद नहीं है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि आस्था उसे मानने वाले व्यक्ति की निजी भावना है और कोर्ट आस्था के आधार पर जमीन विवाद का फैसला नहीं सुना सकती।
उन्होंने कहा कि कानून को हमेशा राजनीति, धर्म और आस्था से परे रहना चाहिए।
जानकारी
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