केरल विधानसभा हंगामा: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी विधायकों को राहत देने वाली याचिका को किया खारिज
क्या है खबर?
केरल विधानसभा में हंगामा करने और फर्नीचर को नुकसान पहुंचाने वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के विधायकों को बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी विधायकों की मामले में राहत देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दर्ज मामले की ट्रायल जारी रखने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उपद्रवी विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेना पूरी तरह से जनहित और लोक न्याय के विरुद्ध होगा।
प्रकरण
दोषी विधायकों ने किया था वित्त मंत्री बजट पेश करने से रोकने का प्रयास
बता दें कि केरल विधानसभा में 13 मार्च, 2015 में बड़ी अप्रत्याशित घटना हुई थी। उस समय राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की सरकार थी और LDF विपक्ष की भूमिका में था।
उस दौरान LDF विधायकों ने तत्कालीन वित्त मंत्री केएम मणि को बजट पेश करने से रोकने का प्रयास किया था।
इतना ही नहीं विधायकों ने अध्यक्ष की कुर्सी को मंच से फेंकने के अलावा फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भी तोड़ दिया था।
कार्रवाई
UDF सरकार ने विधायकों के खिलाफ दर्ज किया था मुकदमा
इस मामले को सरकार ने बेहद गंभीरता से लेते हुए वर्तमान शिक्षा और श्रम मंत्री वी शिवनकुट्टी और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री केटी जलील सहित पूर्व विधायक ईपी जयराजन, के अजित, सीके सदाशिवन और के कुंजामेद के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
इसके अलावा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी गई थी। हालांकि, राज्य में LDF की सरकार बनने के बाद इन नेताओं के खिलाफ मामले में प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाई थी।
खारिज
केरल हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी मामला वापस लेने की याचिका
मामले में LDF सरकार ने इस साल की शुरुआत में केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए मंत्री और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की अनुमति देने की मांग की थी।
इस पर 12 मार्च को सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था।
इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 15 जुलाई को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने दिया मामले में ट्रायल जारी रखने का आदेश
इस मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया और दोषियों के खिलाफ ट्रायल जारी रखने का आदेश दिया है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि चुने हुए लोग कानून से ऊपर नहीं हो सकते और उन्हें उनके अपराध के लिए छूट नही दी जा सकती है। दोषियों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेना पूरी तरह से जनहित और लोक न्याय के विरुद्ध होगा।
टिप्पणी
विधायकों को लोगों के काम करने के लिए मिले हैं विशेषाधिकार- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा विधायकों को विशेषाधिकार लोगों के लिए काम करने के लिए दिए गए हैं, न कि विधानसभा में तोडफ़ोड़ करने के लिए।
कोर्ट ने कहा कि विधायकों के लिए छूट आपराधिक कानूनों के खिलाफ इम्यूनिटी तक नहीं बढ़ाई जा सकती है। सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का एक कथित कार्य सदन के सदस्यों के रूप में कार्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक नहीं है। विशेषाधिकार विधायको को आपराधिक कानून से संरक्षण नही देते हैं।
दलील
फैसले के पीछे कोर्ट ने दी यह दलील
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा आपराधिक कानून से छूट का दावा करने का दरवाजा नहीं है। यह नागरिकों के साथ विश्वासघात होगा। दोषी विधायक अपने विशेषाधिकारों से कुछ भी करके बचकर नहीं निकल सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि उपद्रवी विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेना जनहित और लोक न्याय के विरुद्ध होगा।
ट्रायल कोर्ट ने इनकी अर्जी ठुकरा कर बिल्कुल सही किया है। सरकार की अपील में कोई दम नहीं है।
सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार से पूछे तीखे सवाल
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केरल सरकार से पूछा कि उपद्रवी विधायकों के खिलाफ दर्ज शिकायत वापस लेने और कार्यवाही निरस्त करना कौन से जनहित में आता है? कोर्ट के फैसले से यह नजीर बनेगी कि सदन में उपद्रव करने के नतीजे क्या हो सकते हैं? विशेषाधिकार की लक्ष्मण रेखा कहां तक है? राजनीतिक मुद्दे पर विरोध कहां तक हो सकता है?
कोर्ट ने कहा कि विधायकों को भी मालूम होना चाहिए कि कानून सबके लिए समान है।