
शिलांग से सिलचर तक हाईवे बनाएगा भारत, बांग्लादेश को कैसे देगा जवाब?
क्या है खबर?
केंद्र सरकार मेघालय के शिलांग से असम के सिलचर तक एक अहम और रणनीतिक राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने जा रही है। 30 अप्रैल को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी।
इस परियोजना से पूर्वोत्तर के राज्यों तक पहुंचने के लिए सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम हो जाएगी।
परियोजना को रणनीतिक तौर पर अहम माना जा रहा है, क्योंकि हाल में पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर बांग्लादेश ने विवादित बयान दिए हैं।
हाईवे
166 किलोमीटर लंबा ग्रीनफील्ड हाईवे बनाएगी सरकार
इस परियोजना की लंबाई 166.80 किलोमीटर होगी। इसमें से 144.80 किलोमीटर हिस्सा मेघालय और 22 किलोमीटर हिस्सा असम में होगा।
परियोजना पर कुल 22,864 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। परियोजना के तहत एक ग्रीनफील्ड हाई-स्पीड कॉरिडोर और फोर लेन हाईवे को मंजूरी दी गई है। हाईवे शिलांग के नजदीक मावलिंग्खुंग से असम के सिलचर के पास पंचग्राम तक NH-6 पर बनाया जाएगा।
माना जा रहा है कि 2030 तक इसका काम पूरा हो जाएगा।
पूर्वोत्तर
ये पूर्वोत्तर में पहली हाई स्पीड परियोजना
इस परियोजना के पूरा होने से असम-मेघालय के बीच आवाजाही आसान होगी। ये पूर्वोत्तर में पहली हाई स्पीड परियोजना है।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मेघालय के शिलांग से असम के सिलचर तक प्रस्तावित राजमार्ग म्यांमार में एक प्रमुख मल्टी-मॉडल परिवहन परियोजना का विस्तार बन जाएगा, जिससे पूर्वोत्तर राज्यों और कोलकाता के बीच समुद्र के रास्ते एक वैकल्पिक संपर्क स्थापित होगा।
फायदा
परियोजना से क्या फायदा होगा?
हाईवे बनने के बाद सड़क के जरिए माल की आवाजाही आसान होगी, जो क्षेत्र में आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देगी।
ये गुवाहाटी हवाई अड्डे, शिलांग हवाई अड्डे और सिलचर हवाई अड्डे से आने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की जरूरतों को भी पूरा करेगा।
अधिकारी ने बताया कि शिलांग और सिलचर महत्वपूर्ण है, क्योंकि सिलचर मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुर के साथ-साथ असम के बराक घाटी क्षेत्र को जोड़ने के लिए प्रवेश बिंदु है।
कनेक्टिविटी
हाईवे से पूर्वोत्तर को कैसे कोलकाता तक मिलेगी कनेक्टिविटी?
म्यांमार में विदेश मंत्रालय कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना पर काम कर रहा है। यह कोलकाता बंदरगाह को राखीन राज्य में कलादान नदी पर स्थित सित्तवे बंदरगाह से जोड़ता है।
सित्तवे बंदरगाह एक अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से म्यांमार के पलेटवा से और एक सड़क खंड के माध्यम से मिजोरम के जोरिनपुई से जुड़ता है।
कलादान परियोजना के जरिए कोलकाता से माल बांग्लादेश पर निर्भर हुए बिना उत्तर-पूर्व तक पहुंच जाएगा।
बांग्लादेश
परियोजना का बांग्लादेश से क्या संबंध है?
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने चीन में भारत और पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर बयान दिया था।
उन्होंने पूर्वोत्तर के 7 राज्यों को लैंड लॉक्ड यानी जमीन से घिरा हुआ बताया था और इस आधार पर बांग्लादेश को इस क्षेत्र का हिंद महासागर का एकमात्र संरक्षक घोषित कर दिया था।
युनुस के इस बयान पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी।
इसीलिए परियोजना को बांग्लादेश से जोड़कर देखा जा रहा है।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
चिकन नेक को सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी कहा जाता है। 60 किलोमीटर लंबा और 22 किलोमीटर चौड़ा यह कॉरिडोर पूर्वोत्तर के 7 राज्यों को भारत के साथ जोड़ता है।
यह भूटान, नेपाल और बांग्लादेश से सटा हुआ है। यह इलाका रणनीतिक रूप से काफी अहम है, क्योंकि अगर इस क्षेत्र में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है तो पूरे पूर्वोत्तर भारत का बाकी देश से संपर्क टूट सकता है।
यही वजह है कि भारत इसे लेकर बहुत संवेदनशील रहता है।