क्या गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे? रिपोर्ट में सामने आई ये बात
क्या है खबर?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजादी के बाद गुमनामी बाबा के तौर पर छुप कर रहने की बातें तो शायद आपने सुनी ही होंगी। आपने शायद इन पर भरोसा भी किया हो।
लेकिन गुमनामी बाबा की असली पहचान का पता लगाने के लिए बनाई गए जस्टिस (रिटायर्ड) विष्णु सहाई आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा है कि गुमनामी बाबा नेताजी बोस नहीं थे।
उनके सुभाष बोस का अनुयायी होने की संभावना जाहिर की गई है।
पृष्ठभूमि
1945 में विमान दुर्घटना में हुई थी नेताजी की मौत
बता दें कि 18 अगस्त, 1945 को नेताजी बोस ने ताइवान के ताईहोकु एयरपोर्ट से उड़ान भरी थी, लेकिन उनका विमान रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
सारे सबूत इस ओर इशारा करते हैं कि नेताजी की इस विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी।
लेकिन इसके बावजूद उनके दुर्घटना से बच निकलने को लेकर भी कई तरह की कहानियां बनती रहती हैं। इन्हीं में से एक गुमनामी बाबा की कहानी है।
कहानी
गुमनामी बाबा को नेताजी बोस मानते हैं कई लोग
कई लोग मानते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के राम भवन में रहने वाले गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी और कोई नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे।
इस पर विश्वास करने वाले लोगों का कहना है कि विमान दुर्घटना से बच निकलने के बाद नेताजी फैजाबाद आकर गुमनामी में रहने लगे थे क्योंकि अगर वो अपनी पहचान सार्वजनिक करते तो अंग्रेज उन्हें युद्ध अपराधी के तौर पर पकड़ सकती थी।
जानकारी
गुमनामी बाबा के पास से मिला नेताजी से जुड़ा सामान
इन कहानियों को और हवा तब मिली जब 16 सितंबर 1985 को गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके पास से नेताजी बोस से संबंधित कई सामान और दस्तावेज मिले। इसी की जांच करने के लिए 2016 में सहाई आयोग बनाया गया था।
रिपोर्ट
रिपोर्ट को गुरूवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में रखा गया
सहाई आयोग ने सितंबर 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसे गुरुवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में रखा गया।
अपनी 130 पेज की रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि फैजाबाद के राम भवन से प्राप्त सामानों से ये साबित नहीं होता कि गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे।
इसमें कहा गया है कि गुमनामी बाबा नेताजी बोस के अनुयायी थे और जब लोगों ने उन्हें नेताजी कहना शुरू किया तो उन्होंने अपना निवास बदल लिया।
विशेषताएं
ये थीं गुमनामी बाबा की विशेषताएं
आयोग ने कहा है कि गुमनामी बाबा संगीत, सिगार और खाने के शौकीन थे और उनकी आवाज नेताजी जैसी थी।
वो बंगाली थे और बंगला, अंग्रेजी व हिंदी भाषाओं के अच्छे जानकार थे। उन्हें युद्ध, राजनीतिक और सामयिक विषयों की गहन जानकारी थी। जो लोग पर्दे के पीछे से उनसे बात करते थे, वे उनसे सम्मोहित हो जाते थे।
आयोग के अनुसार, भारत में शासन की स्थिति से उनका मोहभंग हो गया था।