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    आखिरी इच्छा से लेकर काला नकाब पहनाने तक, जानिए फांसी से पहले की पूरी कहानी

    आखिरी इच्छा से लेकर काला नकाब पहनाने तक, जानिए फांसी से पहले की पूरी कहानी

    लेखन भारत शर्मा
    Mar 19, 2020
    12:02 pm

    क्या है खबर?

    फांसी! एक ऐसा शब्द, जिसे सुनते ही पूरे शरीर में सनसनी फैल जाती है। कई लोग इस पर बात करने से बचते हैं।

    अभी फांसी की चर्चा इसलिए है क्योंकि निर्भया केस के चारों दोषियों मुकेश सिंह, अक्षय सिंह, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को 20 मार्च की सुबह फांसी पर लटकाया जाना है।

    इस लेख में हम आपको फांसी से पहले दोषियों की आखिरी इच्छा से लेकर काला नकाब पहनाने तक की पूरी कहानी बताएंगे।

    डाटा

    आजाद भारत में 57 को हो चुकी है फांसी

    आजाद भारत में पहली फांसी नाथूराम गोडसे को दी गई थी। अब तक कुल 57 अपराधियों को फांसी की सजा दी जा चुकी है। अंतिम बार याकूब मेनन को 30 जुलाई, 2015 को फांसी पर लटकाया गया था।

    समय

    सुबह के समय ही दी जाती है फांसी

    अमूमन फांसी दिए जाने के लिए सुबह जल्दी का ही समय तय किया जाता है।

    जेल नियमों के अनुसार जेल के सभी काम सूर्योदय के बाद ही किए जाते हैं। ऐसे में जेल में होने वाले अन्य कार्यों को प्रभावित होने से बचाने के लिए सभी दोषियों की फांसी के लिए सुबह का ही समय तय किया जाता है।

    फांसी के बाद जेल के नियमों के अनुसार सभी कार्य किए जाते हैं।

    चाय-नाश्ता

    मुजरिम को दिया जाता है उसकी पसंद का नाश्ता

    जिस दोषी को फांसी की सजा दी जाती है, उसे फांसी वाले दिन सुबह 04.30 से 05.00 बजे के बीच उठाकर पीने के लिए चाय दी जाती है।

    इसके बाद उसके नहाने का प्रबंध किया जाता है। बाद में नाश्ते के लिए उसकी पसंद पूछी जाती है और उसे उसकी पसंद का नाश्ता कराया जाता है।

    इस दौरान यदि वह कोई ग्रंथ पढ़ना चाहे तो उसकी भी इजाजत दी जाती है।

    वसीयत

    लिखवाई जाती है वसीयत

    चाय-नाश्ते के बाद मजिस्ट्रेट को दोषी के पास भेजा जाता है। मजिस्ट्रेट उससे उसकी संपत्ति के बारे में पूछता है और कहता है कि वह अपनी संपत्ति या जायदाद किसी के भी नाम कर सकता है।

    यदि आरोपी अपनी वसियत लिखना चाहता है तो उसकी प्रक्रिया पूरी की जाती है।

    बता दें कि जो दोषी वसीयत के सभी दस्तावेज तैयार कर दोषी के हस्ताक्षर लेता है, उसे एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट कहते हैं।

    काला नकाब

    हाथ बांधकर पहनाया जाता है काला नकाब

    वसीयत लिखवाने के बाद फांसी देने के लिए निर्धारित किया गया जल्लाद दोषी के पास जाता है और उसके दोनों हाथ पीछे की ओर रस्सी से बांधता है।

    हाथ बांधने के बाद दोषी को फांसी वाली जगह ले जाया जाता है। अधिकारियों के इशारे पर जल्लाद उसे काली पोशाक पहनाकर मुंह पर काला नकाब पहनाता है।

    काला नकाब पहचाने के पीछे वजह यह होती है कि फांसी के दौरान आरोपी का तड़पता हुआ चेहरा किसी को दिखाई ना दे।

    फंदा

    ...और दे दी जाती है फांसी

    काला नकाब पहनाए जाने के बाद जल्लाद आरोपी के गले में फांसी के लिए तैयार किया गया फंदा डालता है और उसे सही तरह से कस देता है।

    इसके बाद जैसे ही सुपरिटेंडेंट इशारा करता है जल्लाद बोल्ट हटा लेता है और दूसरे इशारे पर लिवर खींच देता है।

    इसके बाद तख्ता वेल में गिर जाता है और आरोपी फंदे से लटक जाता है।

    लीवर खींचने के दो घंटे बाद डॉक्टर को अपराधी की मौत की पुष्टि करनी होती है।

    जानकारी

    जल्लाद अपराधी के कान में मांगता है क्षमा

    अपराधी को फांसी देने के लिए लीवर खींचने से पहले जल्लाद अपराधी के कान में यह कहता है, 'मुझे माफ कर देना, मैं तो एक सरकारी मुलाजिम हूं। कानून के हाथों मजबूर हूं।'

    लटकाव

    अपराधी के वजन का होता है अहम योगदान

    फांसी दिए जाने के दौरान कैदी को उसके वजन के हिसाब से 1.830 मीटर से लेकर 2.440 मीटर तक ड्रॉप यानी नीचे रस्सी से लटकाया जाना होता है।

    फांसी की तारीख से चार दिन पहले मेडिकल ऑफिसर अपराधी का वजन लेकर उससे संबंधित रिपोर्ट जल्लाद को देता है और इसके आधार पर ही इसकी तैयारी की जाती है।

    पोस्टमार्टम

    जेल अधीक्षक करता है शव सुपुर्द करने का निर्णय

    सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार फांसी के बाद शव का पोस्टमार्टम कराया जाना आवश्यक होता है।

    हालांकि, पोस्टमार्टम के बाद शव को परिजनों के सुपुर्द करना है या नहीं इसका निर्णय जेल अधीक्षक को करना होता है।

    यदि जेल अधीक्षक को लगता है कि अपराधी के शव का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है तो वह परिजनों को शव देने से इनकार भी कर सकता है और इस पर कोई आपत्ति भी नहीं जताई जा सकती है।

    आखिरी ख्वाहिश

    आखिरी ख्वाहिश में होता है यह

    कहते हैं कि मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश पूरी की जाती है, लेकिन फांसी दिए जाने वाले अपराधी के लिए आखिरी ख्वाहिश पूरी किए जाने के भी कुछ नियम है।

    उदयपुर सिटी सेंट्रल जेल से सेवानिवृत्त जेलर ओमप्रकाश का कहना है कि आखिरी ख्वाहिश में मनपसंद खाना, ग्रंथ, किताब या किसी परिजन से मिलाया जा सकता है।

    यदि वह फांसी नहीं दिए जाने की मांग करता है तो उस पर गौर नहीं किया जाता है।

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