अगले साल नौसेना में शामिल होगा पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, जानिये क्या होगा खास
भारत का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC-1) अगले साल नौसेना में शामिल हो जाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को यह ऐलान करते हुए कहा कि यह एयरक्राफ्ट कैरियर देश की शान और आत्मनिर्भर भारत का सुनहरा उदाहरण होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बावजूद इसका काम तेजी से पूरा किया जा रहा है और यह अगले साल नौसेना मे शामिल कर लिया जाएगा। आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर यह शानदार उपहार होगा।
सिंह ने नौसेना प्रमुख के साथ लिया जायजा
राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को निर्माणाधीन स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर पर सवार होकर इसका जायजा लिया। उनके साथ नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। इस मौके पर सिंह ने कहा कि इस युद्धपोत के शामिल होने से देश की रक्षा क्षमता में भारी बढ़ोतरी होगी और यह समुद्र में भारत के हितों की सुरक्षा में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि इस युद्धपोत के निर्माण में लगा 75 प्रतिशत सामान भारत में बना हुआ है।
2005 में शुरू हुआ था युद्धपोत का निर्माण
भारतीय नौसेना के पास फिलहाल एक ही एयरक्राफ्ट कैरियर है। देश के दूसरे और पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने के रास्ते में लगातार अड़चनें आ रही हैं। दो दशक से भी अधिक समय से इस पर काम चल रहा है। 40,000 टन वजनी इस युद्धपोत को तैयार करने पर 3,500 करोड़ रुपये की लागत आएगी। 2003 में इसका निर्माण कार्य शुरू करने की मंजूरी मिली थी, लेकिन कोच्चि शिपयार्ड पर इसका काम दो साल बाद शुरू हुआ।
260 मीटर लंबे युद्धपोत पर होंगे दो रनवे
द वीक के अनुसार, शुरुआती लक्ष्यों के हिसाब से इसे 2010 में पानी में उतार दिया जाना था, लेकिन यह तीन साल की देरी के बाद 2013 में लॉन्च किया गया। इसे नौसेना को सौंपने की समयसीमा 2018 तय की गई थी, लेकिन रूस से आने वाले कुछ उपकरणों में देरी के चलते ऐसा नहीं हो पाया। 260 मीटर लंबे इस युद्धपोत में दो टेक-ऑफ रनवे और तीन अरेस्टर के साथ एक लैंडिंग स्ट्रिप होगी।
एक समय पर ले जा सकेगा 30 विमान और हेलिकॉप्टर
इस युद्धपोत पर एक समय में 20 मिग 29K लड़ाकू विमानों और 10 हेलिकॉप्टरों को ले जाया जा सकता है। इसे खास तौर से मिग-29K और अन्य हल्के लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए तैयार किया जा रहा है। नौसेना में शामिल होने के बाद इसे INS विक्रांत नाम से जाना जाएगा। यह संस्कृत का शब्द है, जिसका हिंदी में मतलब साहसी होता है। अलग-अलग तरीकों से कई भारतीय कंपनियां इसके निर्माण कार्य में सहयोग दे रही हैं।
अभी भारत के पास महज एक एयरक्राफ्ट कैरियर
अभी भारतीय नौसेना के INS विक्रमादित्य के रूप में एकमात्र एयरक्राफ्ट कैरियर है, जो एक साथ 30 विमानों और हेलिकॉप्टरों को ले जा सकता है। इस पर एक समय में 1,600 नौसैनिक तैनात हो सकते हैं और एक बार में 45 दिनों तक समुद्र में रहकर 13,000 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। पाकिस्तान और चीन की तरफ से बढ़ते दोहरे खतरे को देखते हुए नौसेना इस वक्त दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत महसूस कर रही है।
नौसेना में शामिल होने के बाद भी होंगे परीक्षण
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नौसेना को मिलने के बाद इस युद्धपोत का समुद्र में उड़ानों के साथ परीक्षण किया जाएगा। इन परीक्षणों को पूरा होने में दो साल का समय लग सकता है।
चीन का सामना करने के लिए शक्तिशाली हथियार- प्रकाश
एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत बताते हुए पूर्व नौसेना प्रमुख अरुण प्रकाश ने द वीक को बताया था कि आक्रामक चीन का मुकाबला करने के लिए यह युद्धपोत शक्तिशाली हथियार होगा। उन्होंने कहा था, "मान लें कि अगर चीन हिंद महासागर में तीन एयरक्राफ्ट कैरियर भेजता है तो कितनी भी पनडुब्बियां और विध्वंसक उनका सामना नहीं कर पाएंगे। उस वक्त सिर्फ एयरक्राफ्ट कैरियर ही एकमात्र हथियार होगा।" जानकारी के बता दें कि चीन अपना तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बना रहा है।
दुनिया के 13 देशों के पास 41 एयरक्राफ्ट कैरियर
फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकतों में से अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, फ्रांस और इटली समेत अधिकतर ऐसे युद्धपोतों का संचालन कर रही हैं। दुनिया के 13 देशों के पास इस वक्त 41 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जबकि कई अन्य देशों ने इन्हें खरीदने की इच्छा जताई है। 2012 में चीन ने अपना पहला स्वदेशी युद्धपोत नौसेना में शामिल किया था और अब वह तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर बना रहा है। उसका लक्ष्य 2050 तक 10 ऐसे युद्धपोत तैयार करना है।